"जय जिनेन्द्र": अवतरणों में अंतर

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: '''जय''' शब्द [[केवली|जिनेन्द्र भगवान]] के गुणों की प्रशंसा के लिए उपयोग किया जाता है।
: '''जिनेन्द्र''' उन आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्होंने अपने मन, वचन और काया को जीत लिया और [[केवल ज्ञान]] प्राप्त कर लिया हो।{{साँचा:Sfn|Rankin|2013|p = 37}}{{साँचा:Sfn|Sangave|2001|p = 16}}{{साँचा:Sfn|Sangave|2001|p = 164}}
:' 'चार मिले चौंसठ खिले,मिले बीस कर जोड़।' '
:''सज्जन से सज्जन मिले, हर्षित चार करोड़।।' '
 
==इन्हें भी देखें==