"जय जिनेन्द्र": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 7:
:''चार मिले चौंसठ खिले,मिले बीस कर जोड़।''
:''सज्जन से सज्जन मिले, हर्षित चार करोड़।।''
अर्थात्-:जब भी हम किसी समाजबंधु से मिलते हैं तो दूर से ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और दोनों हाथ जुड़ जाते हैं हमारे मुख से जय जिनेन्द्र निकल ही जाता है।
 
==इन्हें भी देखें==