"संगीतरत्नाकर": अवतरणों में अंतर
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इस ग्रंथ के प्रथम छः अध्याय - स्वरगताध्याय, रागविवेकाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय, प्रबन्धाध्याय, तालाध्याय तथा वाद्याध्याय [[संगीत]] और वाद्ययंत्रों के बारे में हैं। इसका अन्तिम (सातवाँ) अध्याय 'नर्तनाध्याय' है जो [[नृत्य]] के बारे में है।
संगीत रत्नाकर में कई [[ताल|तालों]] का उल्लेख है। इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में अब बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था। १०००वीं सदी के अंत तक, उस समय प्रचलित संगीत के स्वरूप को '
: ''चतुभिर्धातुभिः षड्भिश्चाङ्गैर्यस्मात् प्रबध्यते।
: ''तस्मात् प्रबन्धः कथितो गीतलक्षणकोविदैः॥
==संरचना==
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