"विद्यापति": अवतरणों में अंतर

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[[File:Statue of Maha Kavi Kokil Vidyapati.jpg|thumb|विद्यापति]]
'''विद्यापति''' [[भारतीय साहित्य]] की [[भक्तिशृंगार के साथ-साथ भक्ति-परंपरा]] के भी प्रमुख स्तंभों मे से एक और [[मैथिली]] के सर्वोपरि [[कवि]] के रूप में जाने जाते हैं। इनके काव्यों में मध्यकालीन [[मैथिली]] भाषा के स्वरुपस्वरूप का दर्शन किया जा सकता है। इन्हें '''[[वैष्णव]]''' और, '''[[शैव]]''' और '''शाक्त''' भक्ति के सेतु के रूप में भी स्वीकार किया गया है। मिथिला के लोगों को 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा' का सूत्र दे कर इन्होंने उत्तरी-[[बिहार]] में [[लोकभाषा]] की जनचेतना को जीवित करने का महतीमहान् प्रयास किया है।
 
[[मिथिलांचल]] के लोकव्यवहार में प्रयोग किये जानेवाले गीतों में आज भी विद्यापति की [[श्रृंगारशृंगार]] और [[भक्ति -रस]] में पगी रचनायेंरचनाएँ जीवित हैं। [[पदावली]] और [[कीर्तिलता]] इनकी अमर रचनायेंरचनाएँ हैं।
 
==श्रृंगार रस के कवि विद्यापति==