"अतियथार्थवाद": अवतरणों में अंतर

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Achraf Baznani द्वारा असली फोटोग्राफी
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इस प्रकार अतियथार्थवाद मानस के अंतराल को, अवचेतन के तमाविष्ट गहवरों को आलोकित करता है। घनवाद से भी एक पग आगे दादावाद गया और दादावाद से भी आगे अतियथार्थवाद। अतियथार्थवाद की जड़ें दादावाद की जमीन में ही लगी हैं। स्वयं दादावाद ने क्रियात्मक कल्पना की भूमि छोड़ निर्बंध अवचेतन की आराधना की थी, अब उसके उत्तरवर्ती अतियथार्थवाद ने अवचेतन और दृश्य जगत् को परस्पर सर्वथा स्वतंत्र और पृथक् माना। मानवीय चेतनता और पार्थिव यथार्थ अथवा कायिक अनुभूति में उसके विचार से कोई संबंध नहीं। उन्होंने आत्माध्ययन, जीवन के परम तथ्य की खोज और दृश्य से भिन्न एक अंतर्जगत् की पहचान को अपना लक्ष्य बनाया। उन्होंने कहा कि सावयवीय संपूर्णता के भीतर स्थूलतः लक्षित होने वाले परस्पर विरोधी पर वस्तुतः अनुकूल तथ्यों, जैसे जीवन और मृत्यु, भूत और भविष्य, सत्य और काल्पनिक को एकत्र करना होगा। अतियथार्थवादी घोषणाकार आंद्रे ब्रेतों ने लिखाः मेरा विश्वास है कि भविष्य में दोनों परस्पर विरोधी लगने वाली स्वप्न और सत्य की स्थितियाँ परम यथार्थ, अतियथार्थ में लय हो जाएँगी।
[[चित्र:The real me by Achraf Baznani.jpg|अंगूठाकार|[[अछरफ बज़नानी|Achraf Baznani]] द्वारा असली फोटोग्राफी]]
 
चित्रण की प्रगति में अतियथार्थवाद ने परंपरागत कलाशैली को तिलांजलि दे दी। उसके आकलन और अभिप्रायों ने, चित्रादर्शों ने सर्वथा नया मोड़ लिया, परवर्ती से अंतरवर्ती की ओर। अवचेतन की स्वप्निल स्थितियों, विक्षिप्तावस्था तक, को उसने शुद्ध प्रज्ञा का स्वच्छंद रूप माना। साधारणतः अतियथार्थवाद के दो भेद किए जाते हैं: (1) स्वप्नाभिव्यक्ति और (2) आवेगांकन। उनमें पहली शैली का विशिष्ट कलाकार [[साल्वादोर दाली]] है और दूसरी का [[जोआन मीरो]]। दोनों [[स्पेन]] के हैं। अवचेतन के उपासक अतियथार्थवाद को फिर भी आकलन के क्षेत्र में राग और रेखा की दृष्टि से सर्वथा उच्छृंखल भी नहीं समझना चाहिए। यह सही है कि अभिप्राय अथवा अंकित विषय के संबंध में अतियथार्थवाद अप्रत्याशित का आकलन करता है, पर जहाँ तक अंकन की तकनीक की बात है उसके आयाम-परिणाम सर्वथा संयत, स्पष्ट और श्रमसिद्ध होते हैं। दाली के चित्र तो इस दिशा में डच चित्राचार्यों की कला से होड़ करते हैं। अप्रत्याशित यथार्थ का उदाहरण ऐसे चित्र से दिया जा सकता है जिसका सारा वातावरण तो चिकित्सालय के शल्यकक्ष (आपरेशन थियेटर) का हो पर आपरेशन की मेज पर, जहाँ मरीज के होने की आशा की जा सकती है, वहाँ वस्तुतः चित्रित होती है सिलाई की मशीन। या नारी का ऊर्ध्वार्ध अंकित करने वाले चित्र में जहाँ ऊपर मुँह होने की अपेक्षा की जाती है वहाँ वस्तुतः मेज की दराज बनी रहती है।