"सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म [[बंगाल]] की [[महिषादल रियासत]] (जिला [[मेदिनीपुर]]) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सनसन् १८९९ में हुआ था।<ref name="स" /> वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई।<ref>{{cite web|url= http://rishabha.wikispaces.com/Nirala+Jayanti+|title= निराला जयंती|accessmonthday=[[१० दिसम्बर]]|accessyear=[[२००८]]|format= |publisher= ऋषभ|language=}}</ref> उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी [[उन्नाव]] (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से [[उत्तर प्रदेश]] के [[उन्नाव]] जिले का [[गढ़कोलागढ़ाकोला]] नामक गाँव के निवासी थे।
 
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में [[हिन्दी]] [[संस्कृत]] और [[बांग्ला]] का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। [[प्रथम विश्वयुद्ध|पहले महायुद्ध]] के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध [[इलाहाबाद]] में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्टूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।