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असम के भक्त कवियों में [[शंकरदेव]] (1449 ई.-1568 ई.) तथा उनके शिष्य [[माधवदेव]] (1498 ई.-1596 ई.) का मुख्य स्थान है। असम के जनजीवन तथा साहित्य पर शंकरदेव तथा उनके अनुयायियों का गहरा प्रभाव पड़ा। ब्रजबुलि को इन लोगों ने अपने प्रचार का साधन बनाया। उड़ीसा के भक्त कवियों में राय [[रामानंद]] का प्रमुख स्थान था। ये उड़ीसा के [[गजपति राजा प्रताप रुद्र]] (राजत्वकाल 1504 ई.-1532 ई.) के एक उच्च अधिकारी थे। [[चैतन्य महाप्रभु]] और [[राय रामानंद]] के मिलन का जो वर्णन चैतन्य संप्रदाय के [[कृष्णदास कविराज]] ने "[[चैतन्य चरितामृत]]" में किया है उससे पता चलता है कि मधुर भक्ति के रहस्यों से दोनों पूर्ण परिचित थे। उड़ीसा के अन्य कवियों में [[प्रतापरुद्र]], [[माधवीदासी]], [[राय चंपति]] के नाम आते हैं।
 
बंगाल में [[गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय]] के भक्त कवियों की संख्या बहुत अधिक है। उनमें कुछ के नाम यों हैं : [[यशोराज खान]] (16वीं शताब्दी का प्रारंभप्रारम्भ), [[मुरारि गुप्त]] (16वीं शती का प्रारंभ), [[वासुदेव घोष]], [[रामानंदरामानन्द बसु]], [[द्विज हरिदास]], [[परमानंददासपरमानन्ददास]], [[ज्ञानदास]] (1530 ई. के लगभग इनका जन्म हुआ), [[नरोत्तमदास]], [[कृष्णदास कविराज]], [[गोविंदराज कविराज]]। ब्रजबुलि के अंतिम श्रेष्ठ कवि के रूप में [[रवींद्रनाथ ठाकुर]] का नाम लिया जा सकता है। उनकी "[[भानुसिंह ठाकुरेर पदावली|भानुसिंह ठाकुरेर पदावली]]" सन् 1886 ई. में प्रकाशित हुई। ब्रजबुलि के पद, भाषा और भाव की दृष्टि से अत्यंत मधुर हैं।
 
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