"वृंदावनलाल वर्मा": अवतरणों में अंतर

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इनके उत्कृष्ट साहित्यिक कार्य के लिये [[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]] तथा [[आगरा विश्वविद्यालय]] ने इन्हे क्रमशः ‘साहित्य वाचस्पति’ तथा ‘मानद डॉक्ट्रेट’ की उपाधि से विभूषित किया। [[भारत सरकार]] द्वारा उन्हें [[पद्मभूषण]] से अलंकृत किया गया। भारत सरकार ने इनके उपन्यास ‘झांसी की रानी’ को पुरूस्कृत भी किया है।
 
अंतरराष्ट्रीय जगत में इनके लेखन कार्य को सराहा गया है जिसके लिये इन्हे ‘[[सोवियत लैण्डलैंड नेहरू पुरूस्कारपुरस्कार]]’ प्राप्त हुआ है। सन् 1969 में इन्होने भौतिक संसार से विदा अवश्य ले ली परन्तु अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रेम ओर इतिहास को पुर्नसृजित करने वाले इस यक्ष साधक को हिन्दी पाठक रह रह कर याद करते रहते हैं तभी तो इनकी मृत्यु के 28 वर्षो के बाद इनके सम्मान में भारत सरकार ने दिनांक 9 जनवरी 1997 को एक डाक टिकट जारी किया।
 
इनके द्वारा लिखित सामाजिक उपन्यास ‘संगम’ और ‘लगान’ पर आधारित हिन्दी फिल्में भी बनी है जो अन्य कई भाषाओं में अनुदित हुयी हैं।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==