"रामविलास शर्मा": अवतरणों में अंतर

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[[उन्नाव जिला]] के ऊँचगाँव सानी में जन्मे डॉ॰ रामविलास शर्मा ने [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] से अंग्रेजी में एम.ए. किया और वहीं अस्थाई रूप से अध्यापन करने लगे। १९४० में वहीं से पी-एच.डी. की उपाधि में प्राप्त की। [[१९४३]] से आपने बलवंत राजपूत कालेज, [[आगरा]] में अंग्रेजी विभाग में अध्यापन किया और अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे। १९७१-७४ तक कन्हैयालाल माणिक मुंशी हिन्दी विद्यापीठ, आगरा में निदेशक पद पर रहे। १९७४ में सेवानिवृत्त हुये।
 
डॉ॰ रामविलास शर्मा के साहित्यिक जीवन का आरंभ [[१९३४]] से होता है जब वह [[सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']] के संपर्क में आए।आये। [[१९३४]]इसी मेंवर्ष उन्होंने 'निराला'अपना पर एक आलोचनात्मक आलेख लिखा, जो उनका पहलाप्रथम आलोचनात्मक लेख था।'निरालाजी यहकी आलेखकविता' उसलिखा समय कीजो चर्चित पत्रिका '[[चाँद (पत्रिका)|चाँद]]' में प्रकाशित हुआ। इसके बाद वे निरंतर सृजन की ओर उन्मुख रहे। आचार्य [[रामचंद्र शुक्ल]] के बाद डॉ॰ रामविलास शर्मा ही एक ऐसे आलोचक के रूप में स्थापित होते हैं, जो भाषा, साहित्य और समाज को एक साथ रखकर मूल्यांकन करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/sansmatan/0710/09/1071009038_1.htm|title=डॉ॰ रामविलास शर्मा के आलोचना सिद्धांत |accessmonthday=[[१० नवंबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=वेबदुनिया|language=}}</ref> उनकी आलोचना प्रक्रिया में केवल साहित्य ही नहीं होता, बल्कि वे समाज, अर्थ, राजनीति, इतिहास को एक साथ लेकर साहित्य का मूल्यांकन करते हैं। अन्य आलोचकों की तरह उन्होंने किसी रचनाकार का मूल्यांकन केवल लेखकीय कौशल को जाँचने के लिए नहीं किया है, बल्कि उनके मूल्यांकन की कसौटी यह होती है कि उस रचनाकार ने अपने समय के साथ कितना न्याय किया है।
 
== प्रकाशित कृतियाँ ==