"कस्तूरी मृग": अवतरणों में अंतर

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कस्तूरीमृग नामक पशु मृगों के अंग्युलेटा (Ungulata) कुल (शफि कुल, खुरवाले जंतुओं का कुल) की मॉस्कस मॉस्किफ़रस (Moschus Moschiferus) नामक प्रजाति का जुगाली करनेवाला शृंगरहित चौपाया है। प्राय: हिमालय पर्वत के २,४०० से ३,६०० मीटर तक की ऊँचाइयों पर [[तिब्बत]], [[नेपाल]], हिन्दचीन और साइबेरिया, कोरिया, कांसू इत्यादि के पहाड़ी स्थलों में पाया जाता है। शारीरिक परिमाण की दृष्टि से यह मृग अफ्रीका के डिक-डिक नामक मृग की तरह बहुत छोटा होता है। प्राय: इसका शरीर पिछले पुट्ठे तक ५०० से ७०० मिलीमीटर (२० से ३० इंच) ऊँचा और नाक से लेकर पिछले पुट्ठों तक ७५० से ९५० मिलीमीटर लंबा होता है। इसकी पूँछ लगभग बालविहीन, नाममात्र को ही (लगभग ४० मिलीमीटर की) रहती है। इस जाति की मृगियों की पूँछ पर घने बाल पाए जाते हैं। जुगाली करनेवाले चौड़ा दाँत (इनसिज़र, incisor) नहीं रहता। केवल चबाने में सहायक दाँत (चीभड़ और चौभड़ के पूर्ववाले दाँत) होते हैं। इन मृगों के ६० से ७५ मिलीमीटर लंबे दोनों सुवे दाँत (कैनाइन, canine) ऊपर से ठुड्ढ़ी के बाहर तक निकले रहते हैं। इसके अंगोपांग लंबे और पतले होते हैं। पिछली टाँगें अगली टाँगों से अधिक लंबी होती हैं। इसके खुरों और नखों की बनावट इतनी छोटी, नुकीली और विशेष ढंग की होती है कि बड़ी फुर्ती से भागते समय भी इसकी चारों टाँगें चट्टानों के छोटे-छोटे किनारों पर टिक सकती हैं। नीचे से इसके खुर पोले होते हैं। इसी से पहाड़ों पर गिरनेवाली रुई जैसे हल्के हिम में भी ये नहीं धँसते और कड़ी से कड़ी बर्फ पर भी नहीं फिसलते। इसकी एक-एक कुदान १५ से २० मीटर तक लंबी होती है। इसके कान लंबे और गोलाकार होते हैं तथा इसकी श्रवणशक्ति बहुत तीक्ष्ण हाती है। इसके शरीर का रंग विविध प्रकार से बदलता रहता है। पेट और कमर के निचले भाग लगभग सफेद ही होते हैं और बाकी शरीर कत्थई भूरे रंग का होता है। कभी-कभी शरीर का ऊपरी सुनहरी झलक लिए ललछौंह, हल्का पीला या नारंगी रंग का भी पाया जाता है। बहुधा इन मृगों की कमर और पीठ पर रंगीन धब्बे रहते हैं। अल्पवयस्कों में धब्बे अधिक पाए जाते हैं। इनके शरीर पर खूब घने बाल रहते हैं। बालों का निचला आधा भाग सफेद होता है। बाल सीधे और कठोर होते हुए भी स्पर्श करने में बहुत मुलायम होते हैं। बालों की लंबाई ७६ मिलीमीटर की लगभग होती है।
 
कस्तूरीमृग पहाड़ी जंगलों की चट्टानों के दर्रों और खोहों में रहता है। साधारणतया यह अपने निवासस्थान को कड़े शीतकाल में भी नहीं छोड़ता। चरने के लिए यह मृग दूर से दूर जाकर भी अंत में अपनी रहने की गुहा में लौट आता है। आराम से लेटने के लिए यह मिट्टी में एक गड्ढा सा बना लेता है। घास पात, फूल पत्ती और जड़ी बूटियाँ ही इसका मुख्य आहार हैं। ये ऋतुकाल के अतिरिक्त कभी भी इकट्ठे नहीं पाए जाते और इन्हें एकांतसेवी [[पशु]] ही समझना चाहिए। कस्तूरीमृग के आर्थिक महत्व का कारण उसके शरीर पर सटा [[कस्तूरी]] का नाफा ही उसके लिए मृत्यु का दूत बन जाता है।
 
== विशिष्टताएँ ==
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[[उत्तराखंड]] राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में से एक हैं। यह 2-5 हजार मीटर उंचे हिम शिखरों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम moschus Chrysogaster है। यह "हिमालयन मस्क डिअर" के नाम से भी जाना जाता है। कस्तूरी मृग अपनी सुन्दरता के लिए नहीं अपितु अपनी नाभि में पाए जाने वाली कस्तूरी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। कस्तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो इस के उदर के निचले भाग में जननांग के समीप एक ग्रंथि से स्रावित होती है। यह उदरीय भाग के नीचे एक थेलीनुमा स्थान पर इकट्ठा होती है। कस्तूरी मृग छोटा और शर्मीला जानवर होता है। इस का वजन लगभग १३ किलो तक होता है। इस का रंग भूरा और उस पर काले-पीले धब्बे होते हैं। एक मृग में लगभग ३० से ४५ ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है। नर की बिना बालों वाली पूंछ होती है। इसके सींग नहीं होते। पीछे के पैर आगे के पैर से लम्बे होते हैं। इस के जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं। इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है।
कस्तूरी मृग की घ्राण शक्ति बड़ी तेज होती है। कस्तूरी का उपयोग [[औषधि]] के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाऍं बनाने में होता है। कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी खुशबू के लिए प्रसिद्ध है। कस्तूरी मृग तेज गति से दौड़ने वाला जानवर है, लेकिन दौड़ते समय ४०-५० मीटर आगे जाकर पीछे मुड़कर देखने की आदत ही इस के लिये काल बन जाती है। कस्तूरी मृग को संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है।
 
== कस्तूरा अभयारण्य ==