"यूनानी भाषा": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 64:
 
== होमर तथा महाकाव्य साहित्य ==
ग्रीक काव्यसाहित्य का आरंभ [[होमर]] के [[महाकाव्य]]- "[[ईलियदइलियड]]" तथा "[[ओदैसीओडेसी]]" से होता है और उनको अपने साहित्य का [[वाल्मीकि]] कहना अनुचित नहीं होगा। अंतर केवल इतना ही है कि होमर ग्रीक काव्य के जन्मदाता नहीं थे क्योंकि उनके पहले भी एक लोकप्रिय काव्य परंपरा थी, जिससे वे प्रभावित हुए और जिसके बिखरे हुए तत्वों को एकत्र आकलित कर उन्होंने अपने महाकाव्यों का निर्माण किया। विद्वानों का मत है कि होमर के महाकाव्यों का धीरे-धीरे विकास हुआ और उनके निर्माण में कई व्यक्तियों का हाथ रहा है। होमर की भाषा "मिश्रित आयोनियाक" है और छंद विशेष हेक्सामीटर है। होमर का जन्म अनुमानत: एशिया माइनर के इस्मर्ना नामक स्थान पर ईसा के लगभग 900 वर्ष पूर्व हुआ था। पंरतु उनकी जीवनगाथा अंधकार में है। उनके महाकाव्य वीररस पूर्ण हैं और उनके पात्र देवोपम हैं। देवता भी मानवोचित गुणों तथा मनोविकारों से युक्त हैं, यद्यपि उनकी शक्ति तथा सुंदरता अलौकिक है। मानवजीवन का उत्थान पतन नियति के संकेत पर निर्भर है यद्यपि देवगण भी मनुष्य के सुख दु:ख, जय तथा पराजय के निर्णायक हैं और कुछ देवता को प्रसन्न करने के लिये वीरशिरोमणि तथा शक्तिशाली शासक (अगामेम्नन) भी अपनी कन्या का बलिदान कर देने के लिये सहर्ष तैयार हो सकता है। होमर के महाकाव्यों ने समस्त ग्रीक साहित्य को प्रभावित किया क्योंकि प्रशिक्षित प्रचारकों की टोली यूनान के विभिन्न भागों में घूम घूमकर जनता के सामने उनका पाठ करती थी। ऐसे कथावाचकों का रैप्सोदिस्त कहते थे जो कि हाथ में लारेस वृक्ष की छड़ी लेकर कवितापाठ करते थे और मुख्य स्थलों पर अभिनय भी करते थे।
 
होमर के प्रभाव के सबसे सबल साक्षी हेसियद हैं जो वोयतिया के नागरिक थे और जिनका प्रसिद्ध काव्य "कार्य ओर दिन" होमर की शैली में लिखा गया है। यद्यपि उनका दृष्टिकोण वैयक्तिक है और उनकी कविता उपदेशात्मक। इसमें उन्होंने अपने आलसी भाई को परिश्रम तथा कृषि की उपादेयता की शिक्षा दी है और राजनीतिक क्षेत्र में न्याय का सबल समर्थन किया है। उनका दूसरा काव्यग्रंथ "थियोग्री" के नाम से प्रसिद्ध है जिसके मुख्य विषय हैं सृष्टि का आरंभ तथा देवताओं की विभिन्न पीढ़ियों का इतिहास। होमर तथा हेसियद ग्रीक पौराणिक साहित्य के परिपोषक माने जाते हैं और उनके ग्रंथों से यह स्पष्ट है कि यूनानी विचार बहुदेवत्ववाद से एक देवाधिकदेव की कल्पना की ओर अग्रसर हो चला था।