"सूखी धुलाई": अवतरणों में अंतर

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शुष्क धुलाई मशीनों में संपन्न होती है। एक पात्र में वस्त्रों को रखकर उस पर विलायक डालकर, ऊँचे दाब वाली भाप से गरम करते हैं और फिर पात्र में से विलायक को बहाकर बाहर निकाल लेते हैं। कभी-कभी वस्त्रों पर ऐसे दाग पड़े रहते हैं जो कार्बनिक विलायकों में घुलते नहीं। ऐसे दागों के लिए विशेष उपचार, कभी-कभी पानी से धोने, रसायनकों के व्यवहार से, भाप की क्रिया द्वारा अथवा स्पैचुला से रगड़कर मिटाने की आवश्यकता पड़ती है। अच्छा अनुभवी मार्जक (क्लीनर) ऐसे दागों के शीघ्र पहचानने में दक्ष होता है और तदनुसार उपचार करता है। धुलाई मशीन के अतिरिक्त धुलाई के अन्य उपकरणों की भी आवश्यकता पड़ती है। इनमें चिह्न लगाने की मशीन, भभके, पंप, प्रेस, मेज, लोहा करने की मशीनें, दस्ताने, रैक, टंबलर, धौंकनी, शोषित्र, शोषणकक्ष की सिलाई मशीन इत्यादि महत्व के हैं।
 
शुष्क धुलाई का प्रचार [[भारत]] में अब दिनों दिन बढ़ रहा है। देश में इस समय कपड़े की ड्राई क्लीनिंग का बाजार ३००० से u३५०० करोड़ का हो गया है।<ref>{{cite web |url= http://www.rashtriyasahara.com/NewsDetailFrame.aspx?newsid=74838&catid=4&vcatname=|title= ३५०० करोड़ का है ड्राई क्लीनिंग का बाजार
|accessmonthday=[[२ फरवरी]]|accessyear=[[२००९]]|format= एएसपीएक्स|publisher=राष्ट्रीय सहारा|language=}}</ref> धुलाई के संबंध में प्रशिक्षण और अनेक दिशाओं में अन्वेषण के लिए विशेष संस्थाएँ भी हैं।