"देवनागरी": अवतरणों में अंतर

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भारत के स्वाधीनता आंदोलनों में हिंदी को [[राष्ट्रभाषा]] का दर्जा प्राप्त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम [[बाल गंगाधर तिलक]] ने 'केसरी फॉन्ट' तैयार किया था। आगे चलकर [[विनायक दामोदर सावरकर|सावरकर बंधुओं]] ने [[बारहखड़ी]] तैयार की। गोरखनाथ ने मात्रा-व्यवस्था में सुधार किया। डॉ. [[श्यामसुंदर दास]] ने [[अनुस्वार]] के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये।
 
देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। १९३५ में [[हिंदी साहित्य सम्मेलन]] ने [[नागरी लिपि सुधार समिति]]<ref>[https://ia802800.us.archive.org/14/items/NaikTypoDevaV21971bOCR/Naik_TypoDeva_v2_1971b_OCR.pdf Notes on the works of Script Reforms]</ref> के माध्यम से बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार किये। इसी प्रकार, १९४७ में [[आचार्य नरेंद्रनरेन्द्र देव|नरेन्द्र देव]] की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये।देवनागरी लिपि के विकास हेतु [[भारत सरकार]] के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास किये हैं। सन् १९६६ में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई और १९६७ में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया।
 
== देवनागरी के सम्पादित्र व अन्य सॉफ्टवेयर ==