"लेव तोलस्तोय": अवतरणों में अंतर
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1854 में तॉलस्तॉय डैन्यूब के मोर्चे पर भेजे गए; वहाँ से अपनी बदली उन्होने सेबास्तोपोल में करा ली जो क्रीमियन युद्ध का सबसे तगड़ा मोर्चा था। यहाँ उन्हें युद्ध और युद्ध के संचालकों को निकट से देखने परखने का पर्याप्त अवसर मिला। इस मोर्चे पर वे अंत तक रहे और अनेक करारी मुठभेड़ों में प्रत्यक्षत: संघर्षरत रहे। इसी के परिणामस्वरूप उनकी रचना "सेबास्टोपोल स्केचेज" (1855-56) निर्मित हुई। युद्ध की उपयोगिता और जीवन पर उसके प्रभावों को निकट से देखने समझने के यथेष्ट अवसर उन्हें यहाँ मिले ओर इन उपलब्धियों का यथोचित उपयोग उन्होंने अपनी अनेक परवर्ती रचनाओं में किया।
1855 में उन्होने पीटर्सवर्ग की यात्रा की जहाँ के साहित्यिकारों ने इनका बड़ा सम्मान किया। 1857 ओर 1860-61 में इन्होंने पश्चिमी यूरोप के विभिन्न देशों का पर्यटन किया। परवर्ती पर्यटन का मुख्य उद्देश्य एतद्देशीय शिक्षापद्धतियों और दातव्य संस्थाओं के संघटन और क्रियाकलापों ही जानकारी प्राप्त करना था। इसी यात्रा में उन्हे यक्ष्मा (टीबी) से पीड़ित अपने बड़े भाई की मृत्यु देखने को मिली। घोरतम यातनाओं के अनंतर होनेवाली यक्ष्माक्रांत भाई की मृत्यु का तॉलस्तॉय पर मर्मातक प्रभाव पड़ा। [[
यात्रा से लौटकर उन्होंने अपने गाँव यास्नाया पोल्याना में कृषकों के बच्चों के लिये एक स्कूल खोला। इस विद्यालय की शिक्षा पद्धति बड़ी प्रगतिशील थी। इसमें वर्तमान परीक्षाप्रणाली एवं इसके आधार पर उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण कारने की व्यवस्था नहीं रखी गई थी। विद्यालय बड़ा सफल रहा जिसका मुख्य कारण तॉलस्तॉय की नेतृत्व शक्ति और उसके प्रति हार्दिक लगन थी। विद्यालय की ओर से, गाँव के ही नाम पर ""यास्नाया पोल्याना"" नामक एक पत्रिका भी निकलती थी जिसमें प्रकाशित तॉलस्तॉय के लेखों में विद्यालय ओर उसके छात्रों की विभिन्न समस्याओं पर बड़े ही सारगर्भित विचार व्यक्त हुए हैं।
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