"आर के नारायण": अवतरणों में अंतर
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=== स्वर्ण युग ===
वस्तुतः नारायण की रचनात्मकता के तीन स्तर हैं। उनकी रचनात्मक श्रेष्ठता का 'स्वर्णयुग' भारतीय स्वतंत्रता के बाद आया। 1952 ईस्वी से 1962 ईस्वी तक के एक दशक से कुछ अधिक वर्षों का समय उनकी रचनात्मकता का स्वर्ण युग था। इससे पहले और इसके बाद के समय को स्पष्ट विभाजित किया जा सकता है। रचनात्मक प्रौढ़ता के इस श्रेष्ठ समय में लेखक के उपन्यासों की त्रयी आयी। ये तीन उपन्यास थे- [[द फ़ाइनेंशीयल एक्सपर्ट|द फाइनेंसियल एक्सपर्ट]] (1952), [[गाइड (उपन्यास)|गाइड]] (1958) तथा [[मालगुडी का आदमखोर]] (द मैनईटर ऑफ मालगुडी) [1962]।
सन् 1960 में [[साहित्य अकादमी]] से पुरस्कृत 'गाइड' नारायण की रचनात्मकता का शिखर है। इसे उनका श्रेष्ठतम उपन्यास माना गया है। उनकी व्यंग्य दृष्टि अन्यत्र कहीं भी इतनी तीक्ष्ण तथा नैतिक सरोकारों से जुड़ी हुई नहीं है और न ही तकनीक इतनी सूक्ष्म है।
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