"वैदिक संस्कृत": अवतरणों में अंतर

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*(1) प्रथमतः, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, वैदिक साहित्य, प्रधानतः धार्मिक है जब कि लौकिक संस्कृत अपने वर्ण्यविषय की दृष्टि से धर्म के साथ-साथ लौकिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बद्ध है।
 
*(2) दोनों की आत्मा यद्यपि अभिन्न है तथापि अभिन्नता में भी भिन्नता के दर्शन होते हैं। वैदिक वांमयवाङ्मय, मुख्यतः जैसा कि [[ऋग्वेद]] तथा [[अथर्ववेद]] में हमें प्राप्त होता है, आशावादी है जबकि लौकिक संस्कृत साहित्य निराशावादी है, इस निराशावाद की झलक बौद्धों के ‘सर्व दुःखं’ में भी है। बौद्धों के व्यवहार्यपक्ष ‘करुणा’ और ‘मैत्री’ का उद्घोष भी वैदिक साहित्य की मौलिकता है।
 
*(3) वैदिक धर्म भी परवर्ती काल में अव्यक्त रूप से विशिष्ट परिवर्धित हुआ दिखाई देता है। यहाँ तक कि वैदिक युग के प्रधान देवता जैसे [[इन्द्र]], [[अग्नि]], [[वरुण]] को लौकिक संस्कृत में अपेक्षाकृत विशिष्टता प्राप्त नहीं हुई परन्तु ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों को वेदों में केवल गौण स्थान ही प्राप्त था, परवर्ती काल में इन्हें एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो गया। इस काल में कुछ नए देवी देवताओं : [[गणेश]], [[कुबेर]], [[लक्ष्मी]] और [[दुर्गा]] इत्यादि का भी वैदिक मूल से विकास हुआ।
 
*(4) परवर्ती, विशेषतः आठवीं और नवीं शताब्दी के बाद के, कवियों में अत्युक्ति का आश्रय ग्रहण करने की ओर अधिक झुकाव है, जैसे [[माघ]], [[श्रीहर्ष]] आदि में जबकि पूर्ववर्ती कवियों जैसे [[अश्वघोष]] (बौद्ध कवि), [[भास]] और [[कालिदास]] में अत्युक्ति का अभाव है। वैदिक वांमयवाङ्मय में अत्युक्ति का महा अभाव है।
 
*(5) लौकिक संस्कृति में छन्दोबद्ध रूपों के प्रयोगों की ओर हमें एक विशिष्ट आग्रह दिखायी देता है। वैदिक युग में भी छन्दोबद्ध रूपों का आधिक्य मिलता है, किन्तु वहां विशेषतः [[यज्ञ]] सम्बन्धी साहित्य में गद्य का भी प्रयोग हुआ, जैसे यजुर्वेद और [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] में। लौकिक संस्कृत काल में छन्दोबद्ध रूपों के प्रयोग की ओर इतना अधिक झुकाव है कि यहाँ तक कि वैद्यक ग्रन्थ ([[चरकसंहिता]], [[सुश्रुतसंहिता]] इत्यादि) भी पद्य में ही लिखे गये। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि [[कोश|कोशों]] की रचना (जैसे [[अमरकोश]]) भी छन्दों में ही हुई। कुछ आगे चलकर परवर्ती काल में बाण और सुबन्धु ने गद्य काव्यों के लेखन की शैली का विकास किया, जो कि बड़े-बड़े समासों से मिश्रित होने के कारण अत्यन्त कृत्रिम कही जाती है। इसके अतिरिक्त पूर्ववर्ती काल में [[सूत्र]]-रूप में दार्शनिक ग्रंथों को लिखने की प्रणाली का भी प्रचलन हुआ।