"पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का कोश वाङ्मय": अवतरणों में अंतर

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मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं का वांमयवाङ्मय भी कोशों से रहित नहीं था। [[पालि]] भाषा में अनेक कोश मिलते हैं। इन्हें 'बौद्धकोश' भी कहा गया है। उनकी मुख्य उपयोगिता पालि भाषा के बौद्ब-साहित्य के समझाने में थी। उनकी रचना पद्यबद्ध संस्कृतकोशों की अपेक्षा गद्यमय [[निघण्टु|निघंटुओं]] के अधिक समीप है। बहुधा इनका संबंध विशेष ग्रंथों से रहा है।
 
पालि का [[महाव्युत्पति]] कोश २८५ अध्यायों में लगभग नौ हजार श्लोकों का परिचय देनेवाला है। बौद्ध संप्रदाय के पारिभाषिक शब्दों का अर्थ देने के साथ-साथ पशु पक्षियों, वनस्पतियों और रोगों आदि के पर्यायों का इसमें संग्रह है। इसमें लगभग ९००० शब्द संकलित है। दूसरी और मुहावरों नामधातु के रूपों और वाक्यों के भी संकलन है। पाली का दूसरा विशेष महत्वपूर्ण कोश अभिधान प्रदीपिका ([[अभिधानप्पदीपिका]]) है। यह संस्कृत के अमरकोश की रचनाशैली की पद्धति पर तथा उसके अनुकरण पर छंदोबद्ध रूप में निर्मित है। 'अमरकोश' के अनेक श्लोकों का भी इसमें पालिरूपांतरण है। इसी प्रकार भिक्षु सद्धर्मकीर्ति के एकाक्षर कोश का भी नामोल्लेख मिलता है।