"शरीरक्रिया विज्ञान": अवतरणों में अंतर

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[[File:Claude Bernard and his pupils. Oil painting after Léon-Augus Wellcome V0017769.jpg|thumb|upright=1.5| क्लॉड बर्नार्ड, आधुनिक शरीरक्रियाविज्ञान के जनक, को उनके शिष्यों के साथ दर्शाता तैल चित्र]]
#पुनर्प्रेषित [[शरीरविज्ञान]]
 
'''शरीरविज्ञान''' या '''शरीरक्रियाविज्ञान''' या '''कार्यिकी''' जो अंग्रेज़ी में '''फ़िज़ियॉलोजी''' (Physiology) कहलाता है, मूलतः [[यूनानी भाषा]] से व्युत्पन्न है जिसका मूल अर्थ "प्राकृतिक ज्ञान" है। इसका [[लैटिन]] समानार्थक शब्द है '''फ़िजियॉलोजिया''' (Physiologia)। इस शब्द का प्रथमतः उपयोग 16वीं शताब्दी में हुआ, हालांकि व्यवहार में 19वीं सदी में आया। शरीरक्रियाविज्ञान के अंतर्गत जीवित प्राणियों से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन और उनका वर्गीकरण किया जाता है, साथ ही घटनाओं का अनुक्रम और सापेक्षिक महत्व के साथ प्रत्येक कार्य के उपयुक्त अंगनिर्धारण और उन अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे प्रत्येक क्रिया निर्धारित होती है।
 
== मूल प्राकृतिक घटनाएँ ==
सभी जीवित जीवों के जीवन की मूल प्राकृतिक घटनाएँ एक सी है। अत्यंत असमान जीवों में क्रियाविज्ञान अपनी समस्याएँ अत्यंत स्पष्ट रूप में उपस्थित करता है। उच्चस्तरीय प्राणियों में शरीर के प्रधान अंगों की क्रियाएँ अत्यंत विशिष्ट होती है, जिससे क्रियाओं के सूक्ष्म विवरण पर ध्यान देने से उन्हें समझना संभव होता है।<ref name=OnlineEtDict>{{cite web|title=physiology|url=http://www.etymonline.com/index.php?term=physiology&allowed_in_frame=0|publisher=[[Online Etymology Dictionary]]}}</ref>)
निम्नलिखित मूल प्राकृतिक घटनाएँ हैं, जिनसे जीव पहचाने जाते हैं:
 
'''(क) संगठन''' - यह उच्चस्तरीय प्राणियों में अधिक स्पष्ट है। संरचना और क्रिया के विकास में समांतरता होती है, जिससे शरीरक्रियाविदों का यह कथन सिद्ध होता है कि संरचना ही क्रिया का निर्धारक उपादान है। व्यक्ति के विभिन्न भागों में सूक्ष्म सहयोग होता है, जिससे प्राणी की आसपास के वातावरण के अनुकूल बनने की शक्ति बढ़ती है।
 
'''(ख) ऊर्जा की खपत''' - जीव ऊर्जा को विसर्जित करते हैं। मनुष्य का जीवन उन शारीरिक क्रियाकलापों (movements) से, जो उसे पर्यावरण के साथ संबंधित करते हैं निर्मित हैं। इन शारीरिक क्रियाकलापों के लिए ऊर्जा का सतत व्यय आवश्यक है। भोजन अथवा ऑक्सीजन के अभाव में शरीर के क्रियाकलापों का अंत हो जाता है। शरीर में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होने पर उसकी पूर्ति भोजन एवं ऑक्सीजन की अधिक मात्रा से होती है। अत: जीवन के लिए श्वसन एवं स्वांगीकरण क्रियाएँ आवश्यक हैं। जिन वस्तुओं से हमारे खाद्य पदार्थ बनते हैं, वे ऑक्सीकरण में सक्षम होती हैं। इस ऑक्सीकरण की क्रिया से ऊष्मा उत्पन्न होती है। शरीर में होनेवाली ऑक्सीकरण की क्रिया से ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो जीवित प्राणी की क्रियाशीलता के लिए उपलब्ध रहती है।
 
'''(ग) वृद्धि और जनन''' - यदि उपचयी (anabolic) प्रक्रम प्रधान है, तो वृद्धि होती है, जिसके साथ क्षतिपूर्ति की शक्ति जुड़ी हुई है। वृद्धि का प्रक्रम एक निश्चित समय तक चलता है, जिसके बाद प्रत्येक जीव विभक्त होता है और उसका एक अंश अलग होकर एक या अनेक नए व्यक्तियों का निर्माण करता है। इनमें प्रत्येक उन सभी गुणों से युक्त होता है जो मूल जीव में होते हैं। सभी उच्च कोटि के जीवों में मूल जीव क्षयशील होने लगता है और अंतत: मृत्यु को प्राप्त होता है।
 
'''(घ) अनुकूलन (Adaptation)''' - सभी जीवित जीवों में एक सामान्य लक्षण होता है, वह है अनुकूलन का सामथ्र्य। आंतर संबंध तथा बाह्य संबंधों के सतत समन्वय का नाम अनुकूलन है। जीवित कोशिकाओं का वास्तविक वातावरण वह ऊतक तरल (tissue fluid) है, जिसमें वे रहती हैं। यह आंतर वातावरण, प्राणी के सामान्य वातावरण में होनेवाले परिवर्तनों से प्रभावित होता है। जीव की उत्तरजीविता (survival) के लिए वातावरण के परिवर्तनों को प्रभावहीन करना आवश्यक है, जिससे सामान्य वातावरण चाहे जैसा हो, आंतर वातावरण जीने योग्य सीमाओं में रहे। यही अनुकूलन है।
 
== शरीरक्रियाविज्ञान की विधि ==
फ़िज़ियॉलोजी का अधिकांश ज्ञान दैनिक जीवन और रोगियों के अध्ययन से उपलब्ध हुआ है, परंतु कुछ ज्ञान प्राणियों पर किए गए प्रयोगों से भी उपलब्ध हुआ है। [[रसायन]], [[भौतिकी]], [[शरीररचना विज्ञान]] (anatomy) और [[ऊतकविज्ञान]] से इसका अत्यंत निकट का संबंध है।
 
इस प्रकार विश्लेषिक फ़िज़ियॉलोजी, जीवित प्राणियों पर, अथवा उनसे पृथक्कृत भागों पर, जो अनुकूल अवस्था में कुछ समय जीवित रह जाते हैं, किए गए प्रयोगों से प्राप्त ज्ञान से निर्मित है। प्रयोगों से विभिन्न संरचनात्मक भागों के गुण और क्रियाएँ ज्ञात होती हैं। '''संश्लेषिक फ़िज़ियॉलोजी''' में हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि किस प्रकार संघटनशील प्रक्रमों से शरीर की क्रियाएँ संश्लेषित होकर, विभिन्न भागों की सहकारी प्रक्रियाओं का निर्माण करती हैं और किस प्रकार जीव समष्टि रूप में अपने भिन्न भिन्न अंगों को सम्यक् रूप से समंजित करके, बाह्य परिस्थिति के परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करता है।
 
'''प्रतिमान (Normal) '''- संरचना और शरीरक्रियात्मक गुणों में एक ही जाति के प्राणी आपस में बहुत मिलते जुलते हैं और जैव लक्षणों के मानक प्ररूप की ओर उन्मुख यह प्रवृत्ति जीव और उसके वातवरण के बीच सन्निकट सामंजस्य की अभिव्यक्ति है। एक ही जनक से, एक ही समय में, उत्पन्न प्राणियों में यह समानता सर्वाधिक होती है। ज्यों ज्यों हम अन्य जातियों के प्राणियों की समानताओं के संबंध में विचार करते हैं, उनमें भेद बढ़ता जाता है और प्राणियों के वर्गीकरण में जंतुजगत् के छोरों पर स्थित प्राणियों का अंतर इतना अधिक होता है कि उनकी तुलना अस्पष्ट होती है।
 
फिर भी, व्यष्टि प्राणियों में जहाँ बहुत निकट का संबंध होता है, जैसे मनुष्य जाति में, वहीं इनमें अंतर भी स्पष्ट होता है। सामान्य मानव व्यष्टि का अध्ययन करना, मानव फ़िज़ियॉलोजी का कर्तव्य है, क्योंकि इससे रोग के अध्ययन की महत्वपूर्ण आधारभूमि तैयार होती है, परंतु यह कहना कि किसी प्रस्तुत लक्षण (character) का प्राकृतिक स्वरूप क्या है, कठिन है। इसके अतिरिक्त सभी शरीरक्रियात्मक प्रयोगों के परिणामों में पर्याप्त स्पष्ट अंतर प्रदर्शित होता है, जो प्रयोज्य प्राणियों की व्यत्तिगत प्रकृति पर निर्भर करता है। इसीलिए महत्वपूर्ण समुचित नियंत्रणों का और महत्वपूर्ण परिणाम का अधिमूल्यन नहीं होना चाहिए। प्राय: परिणाम के निश्चय के लिए आदर्श परिणामों का विचार किया जाता है। प्रयोगों की पुनरावृत्तियाँ आवश्यक हैं। प्रेक्षण की त्रुटि, जो यथार्थ विज्ञानों में प्राय: अल्प होती है, जैविकी में बहुत अधिक होती है, क्योंकि परिवर्ती व्यष्टि के कारण प्रेक्षण में परिवर्तनशीलता आ जाती है। जिस प्रकार अन्य विज्ञानों में परिणामों को सांख्यिकी द्वारा विवेचित किया जाता है, वैसे ही फ़िज़ियॉलोजी को परिणामों की संभाविता के नियम की प्रयुक्ति से विवेचित किया जाता है। सीमित संख्या में किए प्रयोगों से निर्णय लेने में बहुत सावधानी इस दृष्टि से अपेक्षित है कि प्राप्त परिणाम नियंत्रित श्रेणियों से भिन्न हैं अथवा नहीं।
 
कठिनाइयों को दूर करने की एक विधि के रूप में [[माध्य|औसतों]], अर्थात् [[समांतर माध्य]] (arithmetic mean), का आश्रय लिया जाता है, जैसे हम कहते हैं, मानव के किसी समुदाय विशेष में प्रति घन मिलिमीटर रक्त में लाल सेलों की औसत संख्या 5 करोड़ 20 लाख है। यह विधि यद्यपि सबसे तरल और अति व्यवहृत है, परंतु यह इसलिए असंतोषजनक है कि इससे यह ज्ञात नहीं होता कि माध्य से [[विचलन]] किस परिमाण में और आपेक्षिक रूप से कितने अधिक बार (relatively frequent) होता है। हमारे पास यह ज्ञात करने का कोई साधन नहीं रह जाता कि उपर्युक्त उदाहरण में 4 करोड़ 50 लाख सामान्य परास के अंदर है या नहीं। परिणामत:, सांख्यिकी के परिणामों की अभिव्यक्ति के लिए अधिक यथार्थ साधन के उपयोग का व्यवहार बढ़ता जा रहा है।
 
==शरीरक्रियाविज्ञान का विकास ==
[[चित्र:Vesalius, Tabulae anatomicae sex Wellcome L0027171.jpg|right|thumb|300px|विसेलियस द्वारा निर्मित शरीरक्रिया सम्बन्धी चार्ट]]
चूँकि किसी विज्ञान की वर्तमान अवस्था को समझने के लिए उसके विकास का इतिहास ज्ञात होना आवश्यक है, इसलिए फिज़ियॉलोजी से रुचि रखनेवाले व्यक्ति के लिए उसके इतिहास की रूपरेखा से परिचित होना आवश्यक है। जहाँ तक समग्र विषय के विकास का प्रश्न है, यह ध्यान रखने की बात है कि विज्ञान का कोई अंग अलग से विकसित नहीं हो सकता, सभी भाग एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। उदाहरणार्थ, एक निश्चित सीमा तक शारीर (Anatomy) के ज्ञान के बिना फ़िज़ियॉलोजी की कल्पना असंभव थी और इसी प्रकार भौतिकी और रसायन की एक सीमा तक विकसित अवस्था के बिना भी इसकी प्रगति असंभव थी।
 
[[आँद्रेस विसेलियस]] (Andreas Veasilius) द्वारा 1543 ई. में 'फ़ेब्रिका ह्यूमनी कार्पोरीज़' (Fabrica Humani Corpories) के प्रकाशन को आधुनिक शारीर का सूत्रपात मानकर, नीचे हम उन महत्वपूर्ण नामों की सूची प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने समय समय पर विषय को युगांतरकारी मोड़ दिया है :
 
{| class="wikitable"
|-
! नाम !! जीवनकाल !! वर्ष !! महत्व
|-
| विसेलियस || 1514-64 ई. || 1543 ई. || आधुनिक शारीर का प्रारंभ
|-
| हार्वि || 1578-1667 ई. || 1628 ई. || जीवविज्ञान में प्रायोगिक विधि
|-
| मालपीगि || 1628-1694 ई. || 1661 ई. || जीवविज्ञान में सूक्ष्मदर्शी के प्रयोग का आरंभ
|-
| न्यूटन || 1642-1727 ई. || 1687 ई. || आधुनिक भौतिकी का विकास
|-
| हालर || 1708-1777 ई. || 1760 ई. || फ़िज़ियॉलोजी का पाठ्यग्रंथ
|-
| लाव्वाज़्ये || 1743-1794 ई. || 1775 ई. || दहन और श्वसन का संबंध स्थापित हुआ
|-
| मूलर जोहैनीज़ || 1801-1858 ई. || 1834 ई. || महत्वपूर्ण पाठ्यग्रंथ
|-
| श्वान || 1810-1882 ई. || 1839 ई. || कोशिका सिद्धांत की स्थापना
|-
| बेर्नार (Bernard) || 1813-1878 ई. || 1840-1870 ई. || महान प्रयोगवादी
|-
| लूटविख (Ludwig) || 1816-1895 ई. || 1850-1890 ई. || महान प्रयोगवादी आरेखविधि का आविष्कारक
|-
| हेल्महोल्ट्स || 1821-1894 ई. || 1850-1890 ई. || भौतिकी की प्रयुक्ति
|}
 
1795 ई. में फ़िज़ियॉलोज़ी की पहली पत्रिका निकली। 1878 ई. में '''इंग्लिश जर्नल ऑव फ़िज़ियॉलोज़ी''' तथा 1898 ई. में अमरीक जर्नल आव फ़िज़ियॉलोज़ी प्रकाशित हुई। 1874 ई. में लंदन में युनिवर्सिटी कालेजे और अमरीका के हार्वर्ड में 1876 ई. में फ़िज़ियॉलोज़ी के इंग्लिश चेयर की स्थापना हुई। इस प्रकार हम देखते हैं कि फ़िज़ियॉलोज़ी एक नया विषय है, जिसका प्रारंभ मुश्किल से एक सदी पूर्व हुआ। [[जीवरसायन]] और भी नया विषय है तथा फ़िज़ियॉलोज़ी की एक प्रशाखा के रूप में विकसित हुआ है।
 
==विभिन्न रोग और उनसे प्रभावित अंग==
===जीवाणु (बैक्टीरिया) से होने वाले रोग===
{|class='wikitable'
|-
! रोग का नाम !! प्रभावित अंग !! रोगाणु का नाम !! लक्षण
|-
| [[हैजा]] || पाचन तंत्र || बिबियो कोलेरी || उल्टी व दस्त, शरीर में ऐंठन एवं [[निर्जलीकरण]] (डीहाइड्रेशन)
|-
| [[टी. बी.]] || फेफड़े || माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस || खांसी, बुखार, छाती में दर्द, मुँह से रक्त आना
|-
| कुकुरखांसी || फेफड़ा || वैसिलम परटूसिस || बार-बार खांसी का आना
|-
| न्यूमोनिया || फेफड़े || डिप्लोकोकस न्यूमोनियाई || छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
|-
| ब्रोंकाइटिस || श्वसन तंत्र || जीवाणु || छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी
|-
| प्लूरिसी || फेफड़े || जीवाणु || छाती में दर्द, बुखार, सांस लेने में परेशानी
|-
| [[प्लेग]] || लिम्फ गंथियां || पास्चुरेला पेस्टिस || शरीर में दर्द एवं तेज बुखार, आँखों का लाल होना तथा गिल्टी का निकलना
|-
| डिप्थीरिया || गला || कोर्नी वैक्ट्रियम || गलशोथ, श्वांस लेने में दिक्कत
|-
| कोढ़ || तंत्रिका तंत्र || माइक्रोबैक्टीरियम लेप्र || अंगुलियों का कट-कट कर गिरना, शरीर पर दाग
|-
| टाइफायड || आंत || टाइफी सालमोनेल || बुखार का तीव्र गति से चढऩा, पेट में दिक्कत और बदहजमी
|-
| टिटेनस || मेरुरज्जु || क्लोस्टेडियम टिटोनाई || मांसपेशियों में संकुचन एवं शरीर का बेडौल होना
|-
| [[सुजाक]] || प्रजनन अंग || नाइजेरिया गोनोरी || जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
|-
| [[सिफलिस]] || प्रजनन अंग || ट्रिपोनेमा पैडेडम || जेनिटल ट्रैक्ट में शोथ एवं घाव, मूत्र त्याग में परेशानी
|-
| मेनिनजाइटिस || मस्तिष्क || ट्रिपोनेमा पैडेडम || सरदर्द, बुखार, उल्टी एवं बेहोशी
|-
| इंफ्लूएंजा || श्वसन तंत्र || फिफर्स वैसिलस || नाक से पानी आना, सिरदर्द, आँखों में दर्द
|-
| ट्रैकोमा || आँख || बैक्टीरिया || सरदर्द, आँख दर्द
|-
| राइनाटिस || नाक || एलजेनटस || नाक का बंद होना, सरदर्द
|-
| स्कारलेट ज्वर || श्वसन तंत्र || बैक्टीरिया || बुखार
|-
|}
 
===विषाणु (वायरस) से होने वाले रोग===
 
{|class='wikitable'
|-
! रोग का नाम !! प्रभावित अंग !! लक्षण
|-
| [[गलसुआ]] || पेरोटिड लार ग्रन्थियां || लार ग्रन्थियों में सूजन, अग्न्याशय, अण्डाशय और वृषण में सूजन, बुखार, सिरदर्द। इस रोग से बांझपन होने का खतरा रहता है।
|-
| फ्लू या एंफ्लूएंजा || श्वसन तंत्र || बुखार, शरीर में पीड़ा, सिरदर्द, जुकाम, खांसी
|-
| रेबीज या हाइड्रोफोबिया || तंत्रिका तंत्र || बुखार, शरीर में पीड़ा, पानी से भय, मांसपेशियों तथा श्वसन तंत्र में लकवा, बेहोशी, बेचैनी। यह एक घातक रोग है।
|-
| [[खसरा]] || पूरा शरीर || बुखार, पीड़ा, पूरे शरीर में खुजली, आँखों में जलन, आँख और नाक से द्रव का बहना
|-
| [[चेचक]] || पूरा शरीर विशेष रूप से चेहरा व हाथ-पैर || बुखार, पीड़ा, जलन व बेचैनी, पूरे शरीर में फफोले
|-
| [[पोलियो]] || तंत्रिका तंत्र || मांसपेशियों के संकुचन में अवरोध तथा हाथ-पैर में लकवा
|-
| हार्पीज || त्वचा, श्लष्मकला || त्वचा में जलन, बेचैनी, शरीर पर फोड़े
|-
| इन्सेफलाइटिस || तंत्रिका तंत्र || बुखार, बेचैनी, दृष्टि दोष, अनिद्रा, बेहोशी। यह एक घातक रोग है
|}
 
 
===विटामिन की कमी से होने वाले रोग===
{|class='wikitable'
|-
! विटामिन !! रोग !! स्रोत
|-
| [[विटामिन ए]] || [[रतौंधी]], सांस की नली में परत पड़ऩा || मक्खन, घी, अण्डा एवं गाजर
|-
| विटामिन बी1 || [[बेरी-बेरी]] || दाल खाद्यान्न, अण्डा व खमीर
|-
| विटामिन बी2 || डर्मेटाइटिस, आँत का अल्सर,जीभ में छाले पडऩा || पत्तीदार सब्जियाँ, माँस, दूध, अण्डा
|-
| विटामिन बी3 || चर्म रोग व मुँह में छाले पड़ जाना || खमीर, अण्डा, मांस, बीजवाली सब्जियाँ, हरी सब्जियाँ आदि
|-
| विटामिन बी6 || चर्म रोग || दूध, अंडे की जर्दी, मटन आदि
|}
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[मानव कार्यिकी]] या 'मानव शरीरक्रियाविज्ञान' (Human physiology)
* [[पादपकार्यिकी]] (Plant Physiology)
* [[शरीररचना विज्ञान]] (Anatomy)
 
== सन्दर्भ ==
{{reflist}}
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.intellecttoday.com Scientific Discussion - Physiology]
* [http://www.physiology.info Physiology.info]
* [http://www.physoc.org The Physiological Society]
* [http://www.biol.unt.edu/developmentalphysiology/ Developmental physiology]
* [http://www.the-aps.org/ The American Physiological Society]
* [http://www.biophysics.org/ The Biophysical Society]
 
 
{{जीव विज्ञान}}
 
[[श्रेणी:शरीरविज्ञान|*]]
[[श्रेणी:आयुर्विज्ञान]]