"आर के नारायण": अवतरणों में अंतर

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उन्होंने एक काल्पनिक शहर [[मालगुडी]] को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे।"<ref>[[मालगुडी की कहानियाँ]], आर० के० नारायण, राजपाल एंड सन्ज़, दिल्ली, दशम संस्करण-2016, पृष्ठ-6.</ref>
 
उनका पहला उपन्यास [[स्वामी और उसके दोस्त]] (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं।<ref>भारतीय अंग्रेजी साहित्य का इतिहास, एम. के. नाईक, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-1989, पृ०-166.</ref>
 
'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ईस्वी में प्रकाशित हुआ यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है।