"आर के नारायण": अवतरणों में अंतर
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=== विस्तार-वैविध्य ===
उपरिवर्णित औपन्यासिक बृहत्त्रयी के बीच प्रकाशित '[[महात्मा का इंतजार]]' (वेटिंग फॉर द महात्मा) [1955] में स्पष्ट रूप से तथा बाद में प्रकाशित '[[द वेंडर ऑफ़ स्वीट्स]]' (
हालाँकि नारायण की सृजन-यात्रा जारी रही और विषय-वैविध्य से भरी कृतियाँ आती रहीं। वस्तुतः अपनी बहुआयामी कृतियों के माध्यम से दक्षिण भारत के शिष्ट समाज की विचित्रताओं का वर्णन उन्होंने सफलता के साथ किया है। लेखक का विशेष लक्ष्य अंग्रेजियत से भरा भारतीय है। अपने उपन्यासों के साथ-साथ कहानियों में भी उसका वर्णन उसके खंडित व्यक्तित्व, आत्मवंचना और उसमें अंतर्निहित मूर्खता आदि के साथ उन्होंने किया है।<ref>आज का भारतीय साहित्य, साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली, संस्करण-2007, पृष्ठ-445-46.</ref>
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