"लेव तोलस्तोय": अवतरणों में अंतर

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[[लेनिन]] सहित विश्व के अनेकानेक विद्वानों ने तोलस्तोय के साहित्य, विशेषतः '[[युद्ध और शान्ति]]' की [[युद्ध और शान्ति#प्रख्यात विद्वानों की सम्मति|सर्वश्रेष्ठता]] मुक्तकंठ से स्वीकार की है; परंतु तोलस्तोय एक विचारक भी थे और साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ निबंधों तथा अन्य विधाओं में भी उन्होंने अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है। उनके युगीन सन्दर्भ विचारों की उपयोगिता के सम्बन्ध में लेनिन का मानना है कि "तोलस्तोय ने ऐसा ललित साहित्य रचा है, जो तब जनता के लिए सदा मूल्यवान और पठनीय होगा, जब वह जमींदारों और पूंजीपतियों का तख्ता उलट कर अपने लिए मनुष्योचित सामाजिक जीवन की व्यवस्था कर लेगी। साथ ही तोलस्तोय उल्लेखनीय ओज के साथ वर्तमान व्यवस्था में पददलित आम जनता की मनोदशा को व्यक्त करने तथा उसकी दशा का वर्णन करने तथा उसके विरोध एवं रोष के स्वतःस्फूर्त भावों को मुखरित करने में समर्थ हुए हैं।तोलस्तोय मुख्यतः 1861 से 1904 तक के युग के थे और उन्होंने -- एक कलाकार, विचारक एवं उपदेशक के नाते -- अपनी कृतियों में समूची प्रथम रूसी क्रांति की ऐतिहासिक विशिष्टताओं को, उसकी क्षमताओं और त्रुटियों को आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ उभारा है।"<ref>साहित्य और सौंदर्यशास्त्र (बीसवीं शताब्दी का साहित्य, भाग-1), साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली, संस्करण-1987, पृष्ठ-34.</ref>
 
इसके बावजूद प्राचीन व्यवस्था की विविध खामियों, अमीर वर्ग की आंतरिक निस्सारता तथा उसके विरुद्ध प्रकट तोलस्तोय के विचारों के संदर्भ में लेनिन का कहना है कि "तोलस्तोय की आलोचना में कोई नयी बात नहीं थी। उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं कही जो उनसे बहुत अरसे पहले यूरोपीय तथा रूसी साहित्य में मेहनतकशों के हिमायतियों द्वारा न कही गयी हो। तोलस्तोय की आलोचना की विशेषता एवं ऐतिहासिक महत्व इस बात में है कि हमारे विचाराधीन काल के रूस -- देहाती, किसानों के रूस -- के व्यापक जन समुदाय के दृष्टिकोण में जो आमूल परिवर्तन आ रहा था, उसकी अभिव्यक्ति उसमें ऐसे ओजसे की गयी है, जो किसी प्रतिभावान कलाकार के ही बस का काम था।"<ref>लेनिन : तोलस्तोय के बारे में, राहुल फाउंडेशन, लखनऊ, संस्करण-2002, पृष्ठ-23.</ref>
 
तोलस्तोय के साहित्यिक महत्व को लेनिन बखूबी समझते थे और इसलिए उन्होंने उसकी भारी प्रशंसा भी की है; परंतु साथ-साथ युगीन संदर्भ में उनके विचारों के कई हानिकारक पहलुओं से सचेत रहने की अनिवार्यता भी वे अच्छी तरह समझते थे। इसलिए दिसंबर 1910 में उन्होंने स्पष्टतया यह विचार व्यक्त किया था कि तोलस्तोय की साहित्यिक रचनाओं का अध्ययन करके रूसी मजदूर वर्ग अपने दुश्मनों को ज्यादा अच्छी तरह पहचान सकेगा। उनके सिद्धांतों का अध्ययन करके समस्त रूसी जनता यह जरूर जानेगी कि उसकी निजी कमजोरी, जिसने उसे अपनी आजादी का लक्ष्य पूरा करने से रोका, किस बात में निहित थी। आगे बढ़ने के लिए यह जानना जरूरी है।