"अंकोरवाट मंदिर": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात प्राचीन [[कंबुज]]प्राचीनbharat की राजधानी और उसके मंदिरों के भग्नावशेष का विस्तार। अंग्कोरथोम और अंग्कोरवात सुदूर पूर्व के [[हिंदचीन]] में प्राचीन [[भारतीय संस्कृति]] के अवशेष हैं। ईसवी सदियों के पहले से ही सुदूर पूर्व के देशों में प्रवासी भारतीयों के अनेक उपनिवेश बस चले थे। हिंदचीन, सुवर्ण द्वीप, वनद्वीप, मलाया आदि में भारतीयों ने कालांतर में अनेक राज्यों की स्थापना की। वर्तमान कंबोडिया के उत्तरी भाग में स्थित ‘कंबुज’ शब्द से व्यक्त होता है, कुछ विद्वान भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर बसने वाले कंबोजों का संबंध भी इस प्राचीन भारतीय उपनिवेश से बताते हैं। अनुश्रुति के अनुसार इस राज्य का संस्थापक कौंडिन्य ब्राह्मण था जिसका नाम वहाँ के एक संस्कृत अभिलेख में मिला है। नवीं शताब्दी ईसवी में जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा हुआ और उसी ने लगभग ८६० ईसवी में अंग्कोरथोम (थोम का अर्थ 'राजधानी' है) नामक अपनी राजधानी की नींव डाली। राजधानी प्राय: ४० वर्षों तक बनती रही और ९०० ई. के लगभग तैयार हुई। उसके निर्माण के संबंध में कंबुज के साहित्य में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित है।
[[चित्र:Angkor-Wat-from-the-air.JPG|center|thumb|500px|अंकोरवाट का हवाई दृष्य]]
पश्चिम के सीमावर्ती थाई लोग पहले कंबुज के समेर साम्राज्य के अधीन थे परंतु १४वीं सदी के मध्य उन्होंने कंबुज पर आक्रमण करना आरंभ किया और अंग्कोरथोम को बारबार जीता और लूटा। तब लाचार होकर ख्मेरों को अपनी वह राजधानी छोड़ देनी पड़ी। फिर धीरे-धीरे बाँस के वनों की बाढ़ ने नगर को सभ्य जगत् से सर्वथा पृथक् कर दिया और उसकी सत्ता अंधकार में विलीन हो गई। नगर भी अधिकतर टूटकर खंडहर हो गया। १९वीं सदी के अंत में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने पाँच दिनों की नौका यात्रा के बाद उस नगर और उसके खंडहरों का पुनरुद्धार किया। नगर तोन्ले सांप नामक महान सरोवर के किनारे उत्तर की ओर सदियों से सोया पड़ा था जहाँ पास ही, दूसरे तट पर, विशाल मंदिरों के भग्नावशेष खड़े थे।