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'''गुलाम वंश ''' ({{lang-ur|{{Nastaliq|ur|سلسله غلامان}}}}) सल्तनत काल
'''गुलाम वंश ''' ({{lang-ur|{{Nastaliq|ur|سلسله غلامان}}}}) मध्यकालीन भारत का एक राजवंश था। इस वंश का पहला शासक [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] था जिसे [[मोहम्मद ग़ौरी]] ने [[पृथ्वीराज चौहान]] को हराने के बाद नियुक्त किया था। इस वंश ने [[दिल्ली]] की सत्ता पर 1206-1290 ईस्वी तक राज किया।
. महमूद गजनवी की मृत्यु के पश्चात उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिए युद्ध हुआ जिसमें मसूद की विजय हुई.
. मसूद ने 1030-40 तक शासन किया.
. परंतु मसूद के बाद आंतरिक संघर्ष व एक के बाद एक अयोग्य शासक होने की वजह से गजनी वंश दुर्बल हो गया और इसी समय मध्य एशिया में दो नवीन शक्तियों का उदय हुआ पहली ख्वारिज्‍म और गौर प्रदेश.
. गौर प्रदेश के लोगों का पेशा कृषि था. हालांकि वह घोड़े पालन वस्त्र बनाने का कार्य भी करते थे.
. गौर के लोग बौद्ध धर्म को मानते थे परंतु जब महमूद गजनवी ने गौर को जीता तो वहां के निवासियों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया.
. गजनवी वंश के शासकों के दुर्बल हो जाने पर गौर ने संघर्ष किया और विजय भी रहे.
. 1155 ई. में अलाउद्दीन हुसैन (गौर) ने गजनी को जलाकर नष्ट कर दिया अतः जहासोज कहलाया.
. 1163-1202 में ग्यासुद्दीन गौर का शासक बना रहा.
. इसके छोटे भाई शहाबुद्दीन ने गजनी को जीता, अतः गयासुद्दीन ने गजनी का राज्य शिहाबुद्दीन को ही दे दिया.
. वह शिहाबुद्दीन उर्फ मुइजुद्दीन मुहम्मद गौरी था जिसने 12वीं सदी में भारत में आक्रमण कर अपना राज्य स्थापित किया.
 
 
इस वंश के शासक या संस्थापक ग़ुलाम (दास) थे न कि राजा। इस लिए इसे राजवंश की बजाय सिर्फ़ वंश कहा जाता है।
मोहम्मद गौरी के आक्रमण के कारण -
. गौरी महत्वाकांक्षी शासक था, साम्राज्य विस्तार करना चाहता था.
. गजनी व गौर वंश में वंशानुगत शत्रुता चली आ रही थी, उस समय तक पंजाब में गजनी वंश का शासन था.
. गजनी को जीतकर गौरी पंजाब पर अपना स्वाभाविक अधिकार समझता था.
. पंजाब को जीतने से गौरी के पूर्व की ओर से राज्य की सुरक्षा संभव हो सकती थी.
. पश्चिम की ओर गौर के राज्य विस्तार को ख्वारिज्‍म के शासकों ने रोक दिया था इसके अतिरिक्त उस तरफ राज्य विस्तार का मुख्य दायित्व उसके भाई गयासुद्दीन का था.
अतः मोहम्मद गौरी को यदि राज्य विस्तार करना था तो वह पूर्व की ओर ही संभव था.
. इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार व धन की लालसा.
 
गौरी के आक्रमण के समय भारत की स्थिति -
.1027 ई. में महमूद गजनवी ने भारत पर अंतिम आक्रमण किया था और मोहम्मद गौरी ने प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर किया था.
. इसी प्रकार इस 148 वर्ष के अंतराल में भी भारतीयों ने महमूद के आक्रमण से कुछ भी सीखने का प्रयत्न नहीं किया.
. मोहम्मद गौरी के समय भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा पर सिंध, मुल्तान व पंजाब के राज्य थे जो कि मुस्लिम राज्य थे.
. सिंध में सुम्र जाति के शिया, मुल्तान में कनमाथी शिया, पंजाब में गजनी वंश के शासकों का राज्य था.
. भारत के अन्य सभी भागों में राजपूत शासक थे.
. गुजरात (काठियावाड़) में चालुक्य वंश का शासन था, जिनकी राजधानी अन्हिलवाड़ (पाटन) थी और शासक भीमराज द्वितीय (मूलराज द्वितीय) था.
. दिल्ली वह अजमेर का शासक चौहान वंशीय पृथ्वीराज तृतीय (रायपिथौरा) था.
. कन्नौज में जयचंद गढवाल का शासन था.
. बंगाल में पाल व सेन वंश के राज्य थे.
 
मोहम्मद गौरी व भारत विजय -
.शमबनी वंश के मोहम्मद गौरी ने 1175 में पहला आक्रमण मुल्तान पर किया तथा वह विजय रहा.
. 1178 में गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया. आबू के इस युद्ध में भीमराज द्वितीय से गौरी पराजित हुआ. यह गौरी की भारत में प्रथम पराजय थी.
. इसके पश्चात गौरी ने आक्रमण का मार्ग बदल लिया तथा पंजाब की ओर से बढ़ना प्रारंभ किया.
. पंजाब में गजनी वंश का अंतिम शासक मलिक खुसरव था.
. 1179 मैं गौरी ने पेशावर जीता.
. 1181 में लाहौर पर आक्रमण किया.
. मलिक खुसरव ने बहुमूल्य उपहार व अपना एक पुत्र बंधक के रूप में देकर स्वयं की रक्षा की.
. 1185 में गोरी ने सियालकोट जीता और वापस गजनी लौट गया.
. पीछे से मलिक खुसरव ने खोक्खर जाटों की सहायता से सियालकोट को जीतने का प्रयत्न किया.
. अतः मोहम्मद गौरी ने पुनः लाहौर पर आक्रमण किया व पंजाब पर अपना अधिकार स्थापित किया.
. मलिक खुसरव को कैद कर लिया व 1192 में इसका कत्ल कर दिया गया.
. पंजाब विजय के पश्चात गौरी के राज्य की सीमाएं पृथ्वीराज सीमाओं से टकराने लगी.
. 1188 मैं गौरी ने भटिंडा जीता तभी गौरी व पृथ्वीराज के मध्य टकराव की स्थिति बनी.
. 1191 में भटिंडा के पास तराईन का पहला युद्ध गौरी वे पृथ्वीराज के मध्य हुआ जिसमें पृथ्वीराज विजय रहा.
. इसके बाद पृथ्वीराज ने बठिंडा मलिक जियाउद्दीन से पुनः छीन लिया.
. मोहम्मद गौरी ने एक वर्ष की तैयारी के पश्चात 1192 में तराईन के द्वितीय युद्ध के लिए पृथ्वीराज को चुनौती दी.
. गोरी ने अपने दूत किवाम उल मुल्क को पृथ्वीराज तृतीय के पास भेजा और उसे इस्लाम व गौरी की अधीनता स्वीकार करने को कहा.
. तराईन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ.
.मिनहाज उस सिराज के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय सिरसा (हरियाणा) में पकड़ा गया और उसे वहीं मार दिया गया.
. हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज तृतीय को (अजमेर में) कैद कर लिया गया. अजमेर में पृथ्वीराज ने गौरी के मातहत शासन किया और षड्यंत्र रचने पर उसका कत्ल कर दिया गया.
. तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास का निर्णायक युद्ध था. इसके बाद भारत में तुर्की सत्ता स्थापित हो गई.
. मोहम्मद गौरी ने 1194 में कन्नौज के शासक जयचंद गढ़वाल को चन्दावर के युद्ध में पराजित किया तथा जयचंद मारा गया.
. मोहम्मद गौरी के सिक्कों पर एक तरफ कलमा खुदा रहता था व दूसरी तरफ लक्ष्मी का अंकन व मोहम्मद बिन साम अंकित रहता था .
. इन सिक्कों को देहलीवाल सिक्के कहा गया.
. 1193 में दिल्ली भारत के गौरी साम्राज्य की राजधानी बनी. इससे पहले इंद्रप्रस्थ राजधानी थी.
. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 1192 में गौरी के साथ भारत आया व अजमेर में बस गया.
. 1192 में गौरी के भाई गौर के शासक गयासुद्दीन की मृत्यु हो गई व गौरी संपूर्ण गौर वंश का शासक बना.
. गौरी ख्वारिज्‍म के शासकों में संघर्ष जारी रखा, इसी क्रम में 1205 में अंधखुद के युद्ध में पराजित हुआ व भाग कर गौर आ गया.
. भारत में गौरी की मृत्यु की अफवाह फैल गई और खोक्खर जाति ने इसका लाभ उठा कर पंजाब व लाहौर को जीतने का प्रयत्न किया. अतः गौरी 1205 में पुनः भारत आया व ऐबक की सहायता से गौरी की विजय हुई.
. जब गौरी गजनी लौट रहा था तो सिंधु नदी के तट पर दमयक नामक स्थान पर नमाज पढ़ते समय कुछ लोगों ने अचानक गौरी पर आक्रमण कर 15 मार्च 1206 में गौरी का कत्ल कर दिया. संभवतया आक्रमणकारी खोक्खर जाट थे.
 
बिहार व बंगाल विजय -
. बिहार व बंगाल जिसके बारे में गौरी ने सोचा भी न था उसे गौरी के साधारण दास इख्तियारुद्दीन बख्तियार खिलजी ने विजित किया.
. अवध के सरदार हिसामुद्दीन अबुल वक ने बख्तियार को अवध की कुछ जागीरें भेंट की.
. बख्तियार ने नालंदा, विक्रमशिला जैसे विद्या केन्द्रों को जलाकर नष्ट किया और धीरे-धीरे संपूर्ण बिहार को जीत लिया.
. 1204-05 में बख्तियार ने बंगाल की राजधानी नदिया पर आक्रमण किया तब वहां का शासक लक्ष्मण सेन बंगाल की तरफ भाग गया.
. राजा की अनुपस्थिति में नगर ने आत्मसमर्पण कर दिया.
. अतः दक्षिण पश्चिम बंगाल बख्तियार का कब्जा हो गया.
. बख्तियार ने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया.
. बाद में अली मर्दान खिलजी ने बख्तियार की हत्या कर दी.
. इस प्रकार बंगाल व बिहार को तुर्की अधीनता में लाने का श्रेय बख्तियार को जाता है.
 
गुलाम वंश - (1206-1290)
.
1206-90 तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम कहलाए.
इन शासकों के तुर्क होने के बाद भी इनके वंश अलग-अलग थे.
. कुतुबुद्दीन ऐबक- कुतुबी वंश.
. इल्तुतमिश - शम्सी वंश
. बलबन - बलबनी वंश
 
. हबीबुल्लाह ने गुलाम वंश को मामलूक वंश कहा.
. मामलूक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है स्वतंत्र माता पिता से उत्पन्न हुए दास.
. ऐबक को भारत में तुर्की राज्य का संस्थापक माना जाता है, परंतु वास्तविक संस्थापक इल्तुतमिश को माना जाता है.
. ऐबक को बचपन में निशापुर के काजी फकरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी ने दास के रूप में खरीदा था और उसी से बाद में गौरी ने खरीदा था.
. गोरी ने ऐबक को 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद भारतीय प्रदेशों का सूबेदार नियुक्त किया.
. 1206 में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद लाहौर के नागरिकों ने ऐबक को लाहौर में सत्ता ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया.
. अतः ऐबक ने जून 1206 में लाहौर में अपना राज्याभिषेक करवाया.
. ऐबक ने सिंहासन ग्रहण करने के बाद भी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की, बल्कि वह सिपहसलार व मलिक की उपाधियों से ही संतुष्ट रहा, जिसे उसने गौरी से प्राप्त किया था.
. ऐबक ने न तो अपने नाम का खुतबा पढ़वाया न ही सिक्के चलाए.
. ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया, जबकि वह दिल्ली का प्रथम तुर्क शासक था.
. गौरी के उत्तराधिकारी गयासुद्दीन महमूद (गयासुद्दीन द्वितीय) ने ऐबक को सुल्तान स्वीकार किया व 1208 में दासता से मुक्त किया.
. दासता मुक्ति हेतु गौर के दरबार में ऐबक ने निजामुद्दीन अहमद को भेजा था.
. ऐबक तुर्की की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है चंद्रमा का स्वामी.
. ऐबक को उसकी दानशीलता के कारण लाखबख्श, कुरान का पाठ करने के कारण कुरान खां कहा जाता है.
. मिनहाज ने ऐबक को हातिम द्वितीय कहा.
. गौरी के अन्य गुलामों में ताजुद्दीन यल्दौज ने गजनी में स्वतंत्र सत्ता स्थापित की, नासिरुद्दीन कुबाचा को सिंध (उच्छ) का राज्य मिला.
. ऐबक की प्रमुख कठिनाई भारत के राज्य को मध्य एशिया की राजनीति से पृथक करना था.
. ऐबक ने यल्दौज की पुत्री से विवाह किया तथा अपनी बहन का विवाह नासिरूद्दीन कुबाचा से व अपनी पुत्री का विवाह इल्तुतमिश से किया.
. यल्दौज पर ख्वारिज्‍म के शाह ने आक्रमण किया तो यल्दौज ने पंजाब में शरण ली. ऐबक ने इसका विरोध किया और यल्दौज को परास्त कर पंजाब छोड़ने के लिए बाध्य किया.
. गजनी के लोगों ने ऐबक को आमंत्रित किया परंतु ऐबक उन्हें संतुष्ट नहीं कर सका और गजनी पुनः यल्दौज को मिला.
. इस प्रकार गजनी अभियान सफल होते हुए भी असफल रहा.
. यल्दौज भारत पर अधिकार करने में असमर्थ रहा.
. इस प्रकार ऐबक ने भारत को गजनी के प्रभाव से मुक्त किया.
. ऐबक ने 1194 में अजमेर को जीतने के पश्चात इस अवसर पर हिंदू व जैन मंदिरों को नष्ट करके दिल्ली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनवाई.
. 1196 में अजमेर में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित संस्कृत विद्यालय को तुड़वाकर अढाई दिन का झोपड़ा बनवाया.
. कुतुब मीनार की नींव ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में ऐबक ने रखी व इसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया.
. बंगाल में अली मर्दान खां ने बख्तियार को मारकर सत्ता अपने हाथों में लेनी चाही परंतु खिलजी सरदारों ने मोहम्मद शेरा को इस शर्त पर सत्ता सौंपी कि वह दिल्ली की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा.
. इस प्रकार दिल्ली स्वतंत्र राज्य बन गया.
. अली मर्दान ने ऐबक की शरण ली और कैमास रूमी के प्रयत्नों से अली मर्दान बंगाल का सूबेदार बना व बंगाल दिल्ली के अधीन आ गया.
. ऐबक की मृत्यु चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण हुई और युवक को लाहौर में ही दफनाया गया ऐबक के पश्चात उसका पुत्र आरामशाह 8 माह के लिए गद्दी पर बैठा. (जो की विवादास्पद है).
. ऐबक ने हसन निजामी (ग्रंथ - ताज उल मुआसिर) व फखरुद्दीन (अदब उल हर्ज) को अपने दरबार में संरक्षण दिया.
. लेनपुल ने कहा है कि, "ऐबक न्याय प्रिय शासक था और उसके काल में बकरी और शेर एक घाट पर पानी पीते थे."
. Note - हसन निजामी सल्तनत काल का पहला इतिहासकार था जो ऐबक का समकालीन था और ऐबक के समय अपने ग्रंथ ताज उल मुआसिर की फारसी भाषा में रचना की.
. इसी ग्रंथ में 1191 से 1215 तक दिल्ली सुल्तानों का इतिहास लिखा गया है.
. बाद में इलियट व डाउसन ने इस ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया अतः यह ग्रंथ सल्तनत काल के प्रारंभिक समय की जानकारी देता है.
 
 
इल्तुतमिश (1211-1236)-
. आरामशाह को जूद के मैदान में युवक के दामाद इल्तुतमिश जो कि इस समय बदायूं का सूबेदार था ने परास्त किया.
. इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.
. ऐबक ने 1197 में इल्तुतमिश को अन्हिलवाड़ के युद्ध के पश्चात (जमालुद्दीन महमूद से) खरीदा.
. ऐबक ने इल्तुतमिश को उसकी योग्यता से खुश होकर सर ए जादार (अंग रक्षकों का प्रधान) तत्पश्चात अमीर ए शिकार (दरबार का प्रबंधक) नियुक्त किया तथा उसे बदायूं का सूबेदार बनाया.
. ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली के "अमीर ए दाद" (धार्मिक कार्यों का मुखिया व कानून का व्याख्याता) इस्माइल की सहायता से इल्तुतमिश ने दिल्ली पर अधिकार किया.
. 1205 में खोखर विद्रोह के समय मोहम्मद गौरी के कहने पर ऐबक ने इल्तुतमिश को दासता से मुक्ति प्रदान की थी, अतः सुल्तान बनते समय 1211 में इल्तुतमिश दासता से मुक्त हो चुका था.
. 1229 में इल्तुतमिश ने खलीफा मुस्तनसिर बिल्लाह से धार्मिक व राजनैतिक मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त किया. जिससे दिल्ली को औपचारिक मान्यता प्राप्त हुई तथा इल्तुतमिश दिल्ली का प्रथम वैज्ञानिक सुल्तान बना.
. खलीफा ने इल्तुतमिश नासिर अमीर उल मोमिनीन व सुल्तान की उपाधि प्रदान की.
. इल्तुतमिश ने शासक बनते ही कुतबी व मुइज्जी सरदारों के विरुद्ध अपने 40 वफादार गुलामों का एक समूह तैयार किया जिसे तुर्कान ए चहलगानी कहा गया.
. इल्तुतमिश ने अपनी राजधानी लाहौर से परिवर्तित कर दिल्ली में स्थापित की.
. 1215 में अंतिम रूप से उसको यल्दौज के तीसरे युद्ध में पराजित किया वह बाद में उसका वध करवा दिया.
. 1221 में इल्तुतमिश ने दिल्ली को मंगोल आक्रमण से बचाया जबकि चंगेज खान(तिमुचिन) ख्वारिज्‍म के युवराज जलालुद्दीन मांगबरनी का पीछा करते हुए सिंधु नदी तक आ गया.
. जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से सहायता मांगी, इल्तुतमिश ने सहायता देने से इनकार करते हुए कहा कि, "शहंशाह का जलाल इतना बड़ा है कि मेरे राज्य में समा ही नहीं सकता".
. जलालुद्दीन को शरण ना देना इल्तुतमिश का बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य था.
. ना खुबाचा जो कि उच्छ (सिंध) का सूबेदार था. उसने पंजाब, भटिंडा, लाहौर पर अधिकार कर लिया.
. जलालुद्दीन मांगबरनी का भारत आने का सर्वाधिक कुप्रभाव नासिरुद्दीन खुबाचा पर पड़ा.
. परिस्थिति का लाभ उठाकर इल्तुतमिश ने सिंध, लाहौर व मुल्तान पर अधिकार कर लिया.
. ना खुबाचा ने भाग कर भकर के किले में शरण ली.
. इल्तुतमिश ने नासिरुद्दीन को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने को कहा, अंततः निराश होकर 1228 में ना खुबाचा ने सिंधु नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली.
. अतः सिंध व मुल्तान भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गए.
 
 
बंगाल विजय -
. ऐबक के समय बंगाल में अली मर्दान शासक था.
. ऐबक की मृत्यु के बाद उसने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित किया.
. खिलजी सरदारों ने उसका कत्ल कर दिया और 1211 में हिसामुद्दीन एबाज खिलजी को गद्दी पर बिठाया.
. एबाज ने ग्यासुद्दीन की उपाधि धारण की व स्वतंत्र शासक बना.
. इल्तुतमिश के आक्रमण होने पर गयासुद्दीन ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कि व इल्तुतमिश ने मलिक जानी को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया.
. ग्यासुद्दीन ने कुछ समय बाद विद्रोह किया, जब गयासुद्दीन पूर्वी सीमा पर युद्ध के लिए गया हुआ था तब इल्तुतमिश के पुत्र नासिरुद्दीन महमूद ने 1226 में लखनौती को जीत लिया.
. अतः 1226 में बंगाल पुनः दिल्ली के अधीन आ गया.
. 1229 में नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद बलका खिलजी ने विद्रोह कर बंगाल पर अधिकार कर लिया.
. तब 1229 में इल्तुतमिश ने स्वयं जाकर विद्रोह को समाप्त किया.
. बलका खिलजी मारा गया व बंगाल पुनः दिल्ल्ली के अधीन आ गया.
. इल्तुतमिश ने बंगाल व बिहार में पृथक पृथक सूबेदारों की नियुक्ति की.
 
इल्तुतमिश की राजपूतों पर विजय-
. 1226 में इल्तुतमिश ने रणथंभौर के शासक वीर नारायण को पराजित किया और रणथंभोर पर अपना अधिकार स्थापित किया.
. 1227 में मंडोर को जीता जो तत्कालीन समय में परमारों के अधीन था.
. 1228-29 में जालौर को जीता व वार्षिक कर देने की स्वीकृति पर पुनः उदय सिंह को लौटा दिया.
. तत्पश्चात बयाना, अजमेर, सांभर, नागौर पर अधिकार किया.
. 1231 में ग्वालियर अभियान में मंगल देव को पराजित किया.
. 1233-34 में कालिंजर का दुर्ग इल्तुतमिश के सूबेदार नसरुद्दीन खिलजी ने जीता तथा कालिंजर का शासक लोक वर्मन भाग गया.
. इल्तुतमिश ने नागदा पर भी अधिकार किया पर वहां के राजा क्षेत्र सिंह से पराजित हुआ.
. 1234-35 में इल्तुतमिश ने मिलता व उज्जैन पर अधिकार किया. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर को लूटा व वहाँ से मूर्तियां लेकर दिल्ली आया.
. इल्तुतमिश ने अपने पुत्र नसीरुद्दीन महमूद की याद में मदरसा ए नासिरी का दिल्ली में निर्माण करवाया.
. मदरसा-ए-का निर्माण गौरी की याद में दिल्ली में करवाया गया.
. एकता प्रणाली इल्तुतमिश द्वारा विकसित की गई.
. एकता एक स्थानांतरण नहीं है वह भाग होता था जो नकद वेतन के बदले दिया जाता था तथा यह वंशानुगत नहीं होता था.
. इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए.
चांदी का टंका 175 ग्रेन, में तांबे के जीतल पर टकसाल का नाम पर अंकित करवाया गया.
. आरिज-ए-मुमालिक सेनापति इमाद-उल-मुल्क था. जिसे उसने रावत आज की उपाधि दी थी .
इल्तुतमिश का वजीर चुनौती था इल्तुतमिश ने कहा कि भारत अरब नहीं है, इसे दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना संभव नहीं है.
. इल्तुतमिश ने नागौर में तारकीन का दरवाजा बनवाया.
. R. P. त्रिपाठी ने इल्तुतमिश को मुस्लिम राज्य का वास्तविक संस्थापक माना है.
. ईश्वरी प्रसाद ने इल्तुतमिश को गुलाम वंश का वास्तविक संस्थापक माना.
. इल्तुतमिश के समय फख्र ए मुदब्बिर ने अदब उल हर्ब की रचना की.
. इल्तुतमिश ने मिनहाज-उस-सिराज को अपने दरबार में संरक्षण दिया.
. इब्न बत्तूता ने रेहला में इल्तुतमिश की न्यायप्रियता का वर्णन करते हुए कहा कि, "उसके महल के सामने संगमरमर के दो शेर बने हुए थे, जिनके गले में घंटियाँ लटकी रहती थी. इन घंटियों को बजाने पर फरियादी को तुरंत न्याय मिलता था.
. जलालुद्दीन मांगबरनी की बहादुरी से प्रभावित होकर, चंगेज खान ने कहा कि," एक पिता के ऐसा पुत्र होना ही चाहिए."
. R. P. त्रिपाठी ने इल्तुतमिश के लिए कहा कि, "भारत में मुस्लिम संप्रभुता का इतिहास उस से प्रारंभ होता है."
. हबीब निजामी के अनुसार, "सल्तनत अभी शैशवावस्था में थी, इसे वास्तविक ढांचा इल्तुतमिश ने प्रदान किया."
. इल्तुतमिश ने प्रशासन के स्वरूप निर्धारण के लिए बगदाद से दो पुस्तकें मंगाई थी, "अब-उस-सलातीन में महाशिवरात्रि.
. इल्तुतमिश ने शेख बहाउद्दीन जकरिया को शेखुल इस्लाम व हमीमुद्दीन नागौरी को सुल्तान की उपाधि दी.
. 1231 में इल्तुतमिश ने ग्वालियर अभियान के समय राज्य का उत्तरदायित्व रजिया को सौंपा. वापस लौटने पर उसके कार्य से इतना खुश हुआ कि चांदी के टंके पर रजिया का नाम अंकित करवाया.
. योग्य पुत्र नासिरुद्दीन महमूद 1229 की मृत्यु के बाद आत्मा को अपना उत्तराधिकारी बनाया सुल्तान किया.
. सल्तनत काल में इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत किया. इसकी मृत्यु के बाद शाह तुर्कान ने अन्य सरदारों के साथ मिलकर रुकनुद्दीन फिरोज शाह को सुल्तान बनाया.
.नासिरुद्दीन आलसी व विलासी प्रवृत्ति का था. उसकी सत्ता उसकी माता शाह तुर्कान के हाथ में थी.
. शाह तुर्कान तानाशाह प्रवृत्ति की महिला थी. उसने शाही स्त्रियों व उनके बच्चों पर अत्याचार किए.
. रुकनुद्दीन गए छात्र कॉर्नर इल्तुतमिश के छोटे पुत्र कुतुबुद्दीन को अंधा करके मरवा दिया.
. इसके बाद अमीर सरदारों का इन पर से विश्वास उठ गया.
. जब रुकनुद्दीन प्रांतीय रिश्तेदारों के विद्रोह को दबाने के लिए दिल्ली से बाहर गया, तो रजिया ने उसकी अनुपस्थिति का लाभ उठाया.
. रजिया ने शुक्रवार की नमाज के समय लाल वस्त्र पहनकर शाह तुर्कान के विरुद्ध सहायता मांगी और कहा कि यदि वह शासक के रूप में अयोग्‍य सिद्ध हो तो उसका सिर काट दिया जाए.
. जनता ने रुकनुद्दीन को अपदस्थ कर दिया और रजिया को सुल्तान बनाया.
. रजिया के संबंध में दिल्ली की जनता ने उत्तराधिकार के पक्ष में पहली बार निर्णय लिया.
 
रजिया सुल्ताना (1236 - 1240)
. रजिया को दिल्ली की जनता का समर्थन प्राप्त था, परंतु कुछ प्रान्तीय इक्तेदार उसके विरोधी थे.
जैसे-मोहम्मद सालारी - बदायूं
कबीर ए‍याज - मुल्तान
अलाउद्दीन जानी - लाहौर
सैफुद्दीन कूची - हांसी
मोहम्मद जुनैदी - वजीर
 
. सनी बदायूं के मोहम्मद सालारी व मुल्तान मुल्तान के कबीर एयाज को अपनी तरफ मिलाकर इस विद्रोह का दमन किया व अपने कृपा पात्रों को प्रमुख पद दिए.
. रजिया ने अबी सिनियाई हब्शी जलालुद्दीन याकूब को अमीर-ए-आख़ुर (अश्वशाला का प्रधान) बनाया.
. इतिहासकारों ने रजिया का याकूब के साथ प्रेम संबंध होने का आरोप लगाया.
. कबीर एयाज को लाहौर का सूबा, एतगीन को अमीर-ए-हाजिब, अल्तुनिया को भटिंडा का सूबेदार, मुहाजबुद्दीन को वजीर और बलबन को अमीर-ए-शिकार का पद दिया.
. रजिया ने पद त्याग कर पुरुषों के समान कुर्ता (कोट) और कुलाह (टोपी) पहन कर दरबार में आना प्रारंभ किया.
. 1238 ख्वारिज्‍म शाह के सूबेदार हसन कार्लूग ने मांगोलों के विरुद्ध रजिया से सहायता मांगी.
. रजिया ने उसे बरन (बुलंदशहर) की आय देने का वादा किया पर सैनिक सहायता नहीं दी.
. रजिया शासन को अपने हाथों में केन्द्रित रखना चाहती थी अतः चालीसा के प्रमुख सरदारों ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचा.
. एतगीन, अल्तुनिया व कबीर ए‍याज ने षड्यंत्र का नेतृत्व किया.
. इस क्रम में प्रथम विद्रोह 1240 में लाहौर के सूबेदार कबीर ए‍याज ने किया.
. रजिया ने उसे परास्त किया व लाहौर की सूबेदारी छीन कर सिर्फ मुल्तान का सूबेदार बनाया.
इसके पश्चात अल्तुनिया ने विद्रोह किया और रजिया उसका दमन करने बठिंडा के किले के सामने पहुंची आ तब षड़यंत्र से याकूब का कत्ल कर दिया गया तथा रजिया को कैद कर लिया गया.
. षड़यंत्रकारियों ने इल्तुतमिश पुत्र के बहरामशाह को सिंहासन पर बैठाया.
. बहराम ने एतगीन नाइब-ए-मामलिकात बनाया.
. रजिया ने चतुराई से अलतुनिया को अपनी तरफ मिला कर निकाह कर लिया.
. रजिया बहराम से पराजित हुई व वापस लौटना पड़ा.
. कैथल (हरियाणा) के निकट 13 अक्टूबर 1240 को रजिया व अल्तुनिया का वध कर दिया गया.
. रजिया ने उमदत-उल-मिस्वा की उपाधि धारण की थी. (महिलाओं में अनुकरणीय)
. मिनहाज उस सिराज के अनुसार रजिया में सभी बादशाही गुण विद्यमान थे किंतु उसके महिला होने के कारण यह सभी गुण बेकार थे.
 
 
बहराम शाह (1240 - 1242 ) -
.बाहराम शाह ने "नाइब-ए-मामलिकात " का पद सृजित किया. इख्तियारूद्दीन एतगीन प्रथम नाइब बना. अब सत्ता के तीन केंद्र हो गए, सुल्तान, नाइब व वजीर.
. एतगीन ने सुल्तान के विशेषाधिकारों जैसे - नोबत बजवना, हाथी बंधवाना का प्रयोग किया. अतः बहराम शाह ने उसकी हत्या करवा दी.
. वजीर मुहाजबुद्दीन ने बदरुद्दीन शंकर रुमी व ताजुद्दीन के द्वारा बहराम शाह को षड़यंत्र रचकर मारने की बात बता कर सुल्तान का विश्वास जीता
. बहराम शाह ने शंकर रूमी व ताजुद्दीन को मरवा दिया.
.वजीर मुहाजबुद्दीन ने 1241 में लाहौर पर मंगोल आक्रमण का लाभ उठाकर बहराम शाह को बन्दी बना लिया 1242 में उसका वध करवा दिया.
. बहराम ने बलबन को हासी व रेवाड़ी की जागीर दो थी.
 
अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-46 ) -
. यह रुकनुद्दीन फिरोजशाह का पुत्र था. इसने अपनी चलीहो के सरदारों को सौंप दी व स्वयं नाममात्र का शासक रहा.
. इसके समय नाइब का पद कुतुबुद्दीन हसन को मिला परन्तु वह तुर्की सरदारों के दल का नहीं था. अतः नाइब का पद उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया.
. मुहाजबुद्दीन की जगह नजमुद्दीन अबू वक्र को वजीर बनाया गया.
. मसूदशाह ने बलबन को अमीर-ए-हाजिब नियुक्त किया.
 
नासिरुद्दीन महमूद (1246-65 )-
. यह बलबन के सहयोग से मसूदशाह को हरा कर शासक बना.
. यह धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था. यह कुरान की नकल कर व टोपी सिलकर अपनी आजीविका चलाता था.
. बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह 1249 में नासिरुद्दीन महमूद के साथ किया. 1249 में ही बलबन को उलुग खाँ की उपाधि दी व उसे "नाइब-ए-मामलिकात " नियुक्त किया गया.
. 1253 में भारतीय मुसलमान नेता इमामुउद्दीन रेहान बलबन के स्थान पर नाइब बना व पुनः 1254 में बलबन को नाइब बनाया गया.
. नसरुद्दीन महमूद अपनी साधारण आदतों के कारण दरवेश राजा कहलाता था.
. मिन्हाज उस सिराज नासीरुद्दीन का काजी था व उसका ग्रंथ तबकात-ए-नासिरी नासीरुद्दीन महमूद को ही समर्पित है.
. 1265 में नासिर की मृत्यु के बाद बलबन सुल्तान बना.
 
बलबन (1265-1287) -
. बलबन की शासक बनने से पूर्व के पद.
अमीर ए शिकार - रजिया के समय,
अमीर ए आख़ुर - बहराम शाह, अमीर ए हाजिब - मसूदशाह, नाइब ए मामलिकात - नासिरुद्दीन.
. 1253-54 में नाइब से हटा कर नागौर भेज दिया गया.
 
. बलूनी वंश की स्थापना बलबन ने की इसका मूल नाम बहाउद्दीन बलबन था.
. इसे मंगोलों से जमालुद्दीन बसरी नामक एक व्यक्ति ने खरीदा.
. जमालुद्दीन से इल्तुतमिश ने 1233 ईस्वी में ग्वालियर विजय के बाद दिल्ली से खरीदा.
. बलबन की योग्यता से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने अपना खासदार (निजी सेवक) नियुक्त किया.
. 1265 में नासिरुद्दीन की मृत्यु के बाद बलबन सुल्तान के पद पर पदस्थ हुआ.
. बलबन को निम्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा. -
1. सुल्तान की नष्ट हुई प्रतिष्ठा को अपने प्रतिष्ठित करना.
2. दिल्ली सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर मंगोल आक्रमणकारियों से रक्षा करना.
3. बंगाल जो कि नासिरुद्दीन महमूद के समय स्वतंत्र हो गया था उसे अपने दिल्ली के अधीन करना चाहता.
4. हिंदुओं की आक्रमणकारी शक्ति को नष्ट करना.
5. चालीसा गुट का दमन करना.
. बलबन ने सैद्धांतिक रूप से राजस्व के सिद्धांत व व्यवहारिक रूप से रक्त व लौह की नीति को अपनाया.
. बलबन ने साम्राज्य विस्तार की बजाए अपने साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण पर बल दिया.
 
. राजत्व का सिद्धांत
 
. सुल्तान की प्रतिष्ठा की स्थापना- बलबन का राजत्व सिद्धांत शक्ति, प्रतिष्ठा व वैभव पर आधारित था. (power, prosperity, pes
. बलबन सुल्तान के पद को नियामत-ए-खुदाई (पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि), जिल्ले इलाही (ईश्वर की प्रतिछाया) मानता था.
. बलबन ने कहा सुल्तान का पद ईश्वरप्रदत्त है उसका स्थान पैगंबर के पश्चात आता है.
. बलबन ने बगरा खां को कहा कि, "शासक में देवत्व का अंश होता है उसकी समानता कोई और मनुष्य नहीं कर सकता".
. बलबन का राजत्व सिद्धांत ईरान के राजत्व सिद्धांत से प्रेरित था. बलबन ने खुद को फिरदौसी शाहनामा के इरानी शूरवीर आसियान /आफ्रेसियाब का वंशज बताया.
. उसने निम्न ईरानी परंपराएँ (प्रथाएँ) प्रारंभ की.
1. सजदा- घुटने के बल बैठकर सुल्तान के समक्ष सिर झुकाना.
2. पैबोस - सुल्तान के पैर चूमना.
 
. उसके दरबार में प्रतिवर्ष नौरोज (ईरानी नव वर्ष) मनाया जाता था.
. उसके पुत्रों के नाम ईरानी सम्राटों की भांति कैखुसरो, कैकुबाद, क्यूमर्स रखे.
. उसने बाह्य आडंबर, मर्यादा, दरबारी प्रतिष्ठा को भी राजत्व के लिए आवश्यक बताया.
. वह दरबार में पूरे राजसी वैभव के साथ उपस्थित होता था.
. बलबन ने विदेशों से आए विद्वानों व राजदूतों को अपने दरबार में स्थान दिया व उनके निवास ग्रहों के नाम उनके वंश के नाम पर रखे. इससे विदेशों में उसका सम्मान बढ़ा और उसे मुस्लिम सभ्यता का संरक्षक माना गया.
. इस प्रकार बलबन अपने राजत्व के सिद्धांत के माध्यम से सुल्तान की खोई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने में सफल रहा.
 
. तुर्कान-ए-चहलगामी का विघटन -
. बलवंत स्वयं चालीसा गुट (तुर्कान-ए-चहलगामी) का सदस्य था. अतः वह जानता था कि सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए तुर्कान ए चहलगामी का विघटन आवश्यक है.
बलबन जब सुल्तान बना तब 40 दल के अधिकतर सदस्य मर गए या मार दिए गए.
. बलबन ने बदायूं के इक्तेदार बकबक व अवध के सूबेदार हैबात खां को कोड़ों से पिटवाया.
. अवध का इक्तेदार अमीन खान के बंगाल से परास्त होकर लौटने पर उसे मृत्युदंड देकर अयोध्या के फाटक पर लटका दिया.
 
सेना का संगठन -
. मंगोल आक्रमण से सुरक्षा में आंतरिक विद्रोह को दबाने के लिए बलबन ने सेना का पुनर्गठन किया.
. सैनिकों की संख्या में वृद्धि की व ईमानदार व अनुभवी सैनिक नियुक्त किए.
. सैनिकों के वेतन में वृद्धि की व सैनिक प्रशिक्षण पर बल दिया.
. बलबन ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर किलों की एक श्रृंखला बनवाई तथा प्रत्येक किले में 40000 सैनिक नियुक्त किए.
. दिल्ली के चारों तरफ से जंगल को साफ करवा कर वहां भी सैनिकों की नियुक्ति की गई.
. पृथक सैन्य विभाग दीवान-ए-आरिज का गठन किया, जिसका प्रमुख आरिज-ए-ममालिक होता था.
. उसने इमादुल मुल्क को प्रथम बार आरिज-ए-ममालिक नियुक्त किया.
 
गुप्तचर विभाग -
. बलबन ने सामंतों की गतिविधियों पर नजर रखने हेतु गुप्तचर विभाग दीवान-ए-बरीद की स्थापना की. इसका अध्यक्ष बरीद-ए-ममालिक था.
. 1279 ईस्वी में ख्वाजा नामक अधिकारी की नियुक्ति की जो इक्तेदारों पर नियंत्रण रखता था.
. बलबन ने इक्ता को अपने उत्तराधिकारियों को देने पर पुनः रोक लगा दी.
 
बंगाल विजय -
. मंगोल आक्रमण से बचने के लिए बलबन ने उत्तर पश्चिमी सीमा पर किलो की श्रंखला बनाई तथा अपने सीमांत प्रांतों को दो भागों में बांटा-
1. सुमन या समाना या उच्छ - इसका जिम्मेदार बुगरा खां को बनाया.
2. मुल्तान, लाहौर, दीपालपुर - इसका सूबेदार महमूद खान या मोहम्मद खां था.
. बड़ा पुत्र महमूद खां 1286 ईस्वी में तैमूर खां के नेतृत्व में हुए मंगोल आक्रमण में मारा जाता है तथा बलबन उसे शहीद की उपाधि देता है.
. नासिरुद्दीन महमूद सुल्तान के समय अर्सला खां स्वयं को बंगाल का शासक घोषित कर देता है.
. अर्सला खां के बाद तातार खां बंगाल का शासक बनता है व दिल्ली की अधीनता स्वीकार करता है.
. बंगाल के सूबेदार तूगरिल खां ने बलबन के समय 1279 ईस्वी में विद्रोह किया जिसने युगीसुद्दीन की उपाधि धारण की व खुतबा पढ़वाया, सिक्के ढलवाए.
. बलबन ने इस विद्रोह को दबाने हेतु अवध के सूबेदार अमीन खां को भेजा और उसके परास्त होने पर उसका सिर कटवा कर अयोध्या के दरवाजे पर लटका दिया.
. इसके बाद बलबन ने स्वयं जाकर इस विद्रोह का दमन किया तथा तुगरिल खां उसके साथियों का कत्लेआम कर वहां का सूबेदार बुगरा खां को नियुक्त किया. इसी समय बुगरा खां को कभी विद्रोह ना करने की चेतावनी भी दी.
. 1287 में बीमारी के कारण बलबन की मृत्यु हो जाती है.
. बलबन अपनी मृत्यु से पूर्व बुगरा खां को दिल्ली बुलवाता है, परंतु बुगरा खां के नहीं आने पर महमूद खां के पुत्र कैखुसरव को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता है.
. 1287 में कैखुसरव दिल्ली का सुल्तान बनता है, परंतु दिल्ली का कोतवाल फखरुद्दीन उसे डरा कर मुल्तान भेज देता है तथा बुगरा के पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बनाया जाता है.
. कैकुबाद विलासी शासक था. अतः निजामुद्दीन (फकरुद्दीन का दामाद) जो कि दिल्ली का दादबैग था, नाइब का कार्य करने लगता है.
. कैकुबाद ने बुगरा खान की सलाह पर निजामुद्दीन को मरवा दिया परंतु स्वयं फिर भोगविलास में डूब गया. अतः सत्ता मलिक सुर्खाब व मलिक कच्छन के हाथों में चली गई.
. कैकुबाद ने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को सेनापति नियुक्त किया था.
. एक खिलजी सेनापति से तुर्क सरदार असंतुष्ट हो गए.
. सरदारों ने जलालुद्दीन के खिलाफ षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया.
. कैकुबाद को लकवा होने पर उसके पुत्र क्यूमर्स को (3 वर्ष का) समशुद्दीन के नाम से बनाया गया.
. जलालुद्दीन मलिक बंधु को मारकर स्वयं शमशुद्दीन का संरक्षक बना.
. बाद में उसने कैकुबाद को यमुना नदी में फेंक दिया तथा क्यूमर्स की हत्या करवा दी.
.1290 ईस्वी में खिलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन खिलजी द्वारा की गई.
 
== शासक सूची ==