"तोमर गोत्र (जाट)": अवतरणों में अंतर

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Gurjar'''तोमर''' andअथवा '''तवंर''' jatoएक ka puranikराजपूत वंश है जो चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे जाते हैं। यह गोत्र जाटों में भी पायी जाती है।<ref>{{cite book |title=Martial races of undivided India|trans_title=अविभाजित भारत की योद्धा जातियाँ |author=विद्या प्रकाश त्यागी |year= 2009 |publisher=ज्ञान बुक्स प्राइवेट लिमिटेड |isbn= 9788178357751 |page=71|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
'''तोमर''' अथवा '''तवंर''' एक
Gurjar and jato ka puranik वंश है जो चंद्रवंशी क्षत्रिय कहे जाते हैं।<ref>{{cite book |title=Martial races of undivided India|trans_title=अविभाजित भारत की योद्धा जातियाँ |author=विद्या प्रकाश त्यागी |year= 2009 |publisher=ज्ञान बुक्स प्राइवेट लिमिटेड |isbn= 9788178357751 |page=71|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
 
== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी:जाट गोत्र]]
तोमर गोत्र का परिचय
तोमर ,तंवर,शिरा तंवर ,तुर ,सुलखलान ,सुलख,चाबुक,भिण्ड तोमर ,पांडव,जाखौदिया,कुंतल एक ही जाट गोत्र है जिसकी 10 उप गोत्र शाखाएं है| तोमर गोत्र जाटों में जनसंख्या के अनुसार बड़े गोत्रो में से एक है। तोमर जाट गोत्र बहुत अधिक प्राचीन गोत्र है। तोमर जाट गोत्र भरतवंशी (राजा भरत के वंशज ) पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज है। तोमर जाट गोत्र की 10 शाखाये है। तोमर गोत्र का ही अपभ्रश तंवर है इतिहासकारों ने दिल्ली के तोमर राजाओ के लिए कही पर तोमर तो कही पर तंवर शब्द का उपयोग किया है तोमरो का दिल्ली पर शासन था उनकी शान में यह कहावत प्रचलित थी की जद कद दिल्ली तंवरा तोमरा तोमर जाट गोत्र उत्तर प्रदेश ,हरियाणा , पंजाब , राजस्थान , मध्य प्रदेश दिल्लीमें निवास करते है। तोमर गोत्र हिन्दू और सिख जाटो में भी है। जट सिख में तोमरो को तुर कहते है। तुर जाटो की एक शाखा है। जिसको गरचा कहते है। तोमर जाटों के 50 गाँव ऐसे है जिनकी जनसंख्या 10,000 से अधिक है। जैसे बावली , पृथला बच्छगॉव आदि
 
तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र शाखाएं है
1.कुंतल/(खुटेल), 2.पांडव, 3.सलकलायन, 4.चाबुक, 5.तंवर, 6.भिण्ड तोमर (भिंडा), 7.जाखौदिया, 8.सुलख, 9.देशवाले, 10.शिरा तंवर 11. मोटा,12.कपेड या कपेड़ा उप गोत्र शाखाएं है, लेकिन गोत्र तोमरहै।
उत्पत्ति
तोमर गोत्र (कुंतल/(खुटेल), पांडव, सलकलायन,तंवर, भिण्ड तोमर (भिंडा), [ सुलख , शिरा तंवर ) की उत्पत्ति पांड्वो से है इस कारण तोमर गोत्र पाण्डुवन्शी ,कुंतलवंशी (कुंती के) भी कहलाते है तोमर जाट अर्जुन के वंशज है उनकी कुल देवी मनसा देवी (योगमाया कृष्ण की बहिन) और शाकुम्भरी देवी है। यह देवी पांड्वो की भी कुल देवी थी |
 
तोमर एक संस्कृत शब्द है जिस मतलब भाला या लोहदंड है| तोमर जो कि माँ दुर्गा का एक हथियार है तोमर हथियार का वर्णन दुर्गा कवच पथ में दुर्गा माँ के हथियार के रूप उल्लेख कियागया है यह हथियार अर्जुन को महाभारत युद्ध में माँ से मिला था तोमर एक हथियार है जो अर्जुन द्वारा महाभारत युद्ध में इस्तेमाल किया गया था जो यह इंगित करता है कि तोमर महाभारत अवधि मे तोमर हथियार के साथ विशेषज्ञ योद्धा थे|. कुंतल जाट खाप मथुरा और भरतपुर में पाया जाता है तोमर जाट कुंती और पांडु के वंशज हैं, तो उन्हें कुंतल बुलाया . 36 राजवंशों के गिनाये हुए नामों के अधिकांश राजवंश जाटों में भी पाये जाते हैं। कर्नल टॉड ने तो पूरी जाट जाति को 36 राजवंशों में से एक राजवंश माना है|। कर्नल टाड ने इसी बात को इस भांति लिखा है-
“जिन जाट वीरों के प्रचण्ड पराक्रम से एक समय सारा संसार कांप गया था, आज उनके वंशधर खेती करके अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।“
तोमर जाट गोत्र ने बहुत बार अपनी वीरता के दम पर इतिहास बनाया है|तोमर गोत्र के जाट बहुत सादा जीवन, उच्च विचार, बोल्ड और मजबूत व्यक्तियों रहे हैं. दिलीप सिंह अहलावत ने तोमर जाट को मध्य एशिया में सत्तारूढ़ जाट कुलों के रूप में उल्लेख किया है.
तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र शाखाएं है
कुंतल जाट मथुरा और भरतपुर में पाया जाता है वे कुंती और पांडु के वंशज हैं, तो उन्हें कुंतल बुलाया| राजा अनंगपाल के सगे परिवार के लोग फिर मथुरा क्षेत्र में चले गए। इन्हीं लोगों ने सौख क्षेत्र की खुटेल, (कुंतल) पट्टी में महाराजा अनंगपाल की बड़ी मूर्ति स्थापित करवाई जो आज भी देखी जा सकती है। उसी समय इनके कुछ लोगों ने पलवल के पूर्व दक्षिण में (12 किलोमीटर) दिघेट गांव बसाया। आज इस गांव की आबादी 12000 के लगभग है। इन्हीं के पास बाद में चौहान जाटों ने मित्रोल और नौरंगाबाद गांव बसाए जिन्हें आज भी जाट कहा जाता है राजपूत नहीं।
पांडू- तोमर जाट पांडू पुत्र अर्जुन के वंशज होने के कारन पांडू या पांडव भी कहते है तोमर जाटो के पांडु वंशी होने के कारनपांडव जाट टाइटल कुछ तोमर आगरा और जयपुर में पांडू और पांडव उपनाम के रूप में काम लेते है
भिंडा-तोमर जाट जो भिण्ड शहर से फैल उन्हें भिण्ड तोमर बुलाया तोमर जाट गोत्र की उप गोत्र भिंडा (भिण्ड तोमर) है.भिण्ड मध्य परदेश में एक जिला है
तूर (तुअर) जाट गोत्र हिन्दी में तोमर और पंजाबी और देसी बोली में Taur (तुअर जट) कहा जाता है
जाखौदिया तंवर- जाखौदिया गोत्र नहीं होता है इनका गोत्र तोमर है तोमर(तंवर ) जाट 1857 के आसपास जब दिल्ली के जाखौद गॉव से आकर भरतपुर के छोंकरवाड़ा गाव में बसे तो यह के स्थानीय निवासयो ने इनको इनके पैतृक गाँव जाखौद के नाम पर जखोदिया कहना शुरू कर दिया . पुरे भारतवर्ष में यह एक मात्र गाँव है जाखौदिया तंवर जाटों का और किस जगह पर यदि कोई जाखौदिया तोमर निवास करते है तो वो मूल रूप से छोंकरवाड़ा से गए हुए है। दिल्ली पर तोमर जाटों का राज्य रहा है उनको ही तंवर बोला जाता है दोनों एक ही गोत्र है जाखौद गांव को एक महाराजा अनंगपाल तोमर के सात बेटे के द्वारा स्थापित किया गया था। दिल्ली में तोमर जाटों के बहुत से गाव थे जो दिल्ली से कुछ मुज़्ज़फरनगर जिले के बलेड़ा ,बहादरपुर जैसे गावो में जा बसे। 1857 की क्रांति में जाटों में अंग्रेज़ो का विरोध किया था 1857 की क्रांति के असफल हो जानेके बाद अंग्रेज़ो ने दिल्ली में बहुत से जाटों के गाँवों को उजाड़ दिया उनमे से जाखौद भी एक था।
सलकरान शाखा - सलअक्शपाल सलकपाल तोमर द्वारा उत्पन्न किया गया था. जब दिल्ली के अंतिम तोमर राजा अनंगपाल ने अपने राज्यों को खो दिया तो सलअक्शपाल तोमर फिर से अपने परिवार के 84 गांवों के 84 तोमर देश खाप की स्थापना की, राजा सलअक्शपाल तोमर की समाधि स्थल बदोत नई ब्लॉक कृषि प्रसार विभाग से सटे दिल्ली सहारनपुर रोड पर है.
सुलख - सुलख तोमरो को रोहतक , भिवानी जिले में कहते है इनको वह पर सुलखलान भी कहते है.
चाबुक- तोमर जाटो ने चाबुक से ब्राह्मण को पीटा था इसलिए इन लोग को चाबुक के रूप में जाने जाते है.
देशवाले -तोमर लोग एक समय देश क्षेत्र के मालिक (राजा) थे इस कारण तोमर जाटो को देशवाले के रूप में जाना जाता है.
कपेड - कपेड या कपेड़ा गोत्र नहीं इनको एक मोहल्ले के नाम पर मिला है। कुछ इनको कल्याण सिंह तोमर के नाम पर कपड़े नाम पड़ने बताते है। यह बागपत के बावली गाव से आकर बसे तोमर जाट है जो सब से पहले बिजनौर जिले में आकर बसे थे बिजनौर में यह सिर्फ तोमर ही लिखते है यह अपना गोत्र तोमर ही लिखते है जबकि 4 परिवार जो मुरादाबाद जिले के रामनगर उर्फ़ रामपुरा गाव में रहते है वो ही कपेड या कपेड़ा लिखते है. [1]
 
मोटा - मोटा गोत्र नहीं है यह सिर्फ एक नाम है। इनका गोत्र तोमर (तंवर) यह लोग राजस्थान में हरयाणा के जाटोली गाँव से सवाई माधोपुर जिले के वज़ीरपुर के पास आकर बसे वहां से ही खण्डार तहसील में गए, सवाई माधोपुर जिले के वज़ीरपुर के पास केकुन्साय और खेड़ला गॉवों में वो अपना गोत्र तोमर (तंवर ) ही लिखते है
पार्थ- अर्जुन का ही दूसरा नाम है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ ही सम्बोदन दिया था। महाभारत के युद्ध में श्री भगवत गीता का ज्ञान देते समय, इसलिए कुछ तोमर पार्थ को उपनाम के रूप में काम लेते है क्योकि तोमर जाट पाण्डुवंशी अर्जुन के ही वंशज है। शूरसेन कुंती के वास्तविक पिता थे कुंती के बचपन का नाम पृथा था| इसलिए अर्जुन को पार्थ ( पृथा पुत्र ) भी कहा जाता है। पृथा को बचपन में राजा कुन्तीभोज ने गोद ले लिया था। इसलिए पृथा का नाम कुन्ती रख दिया गया था। कुंती के नाम पर पांडवो को कोंतेय भी कहा जाता है| तोमर जाटो को कोंतेय से ही कुंतल कहा जाने लगा.
शीरा (शिरे)तंवर - यह तंवर जाटो की ही एक शाखा है पेहोवा के इतिहास के अनुसार यहाँ पर जाटों का शासन रहा है। पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है। महिपाल तोमर का भी पेहोवा पर शासन रहा है थानेसर जो की हिन्दू के लिए उतना ही पवित्र था जितना मुस्लिमो के लिए मक्का, थानेसर अपनी दोलत के लिए और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध था। दिल्ली के राजा अनगपाल और ग़ज़नी के राजा महमूद के बीच यह संधि थी की दोनों ही एक दुसरे के क्षेत्र में हमला नही करेगे लेकिन जैसा की गजनवी धोखे बाज़ था। उस ने धन ले लालच में हमले की योजना बनाई। और पंजाब तक आ गया। दिल्ली के तोमर (तंवर ) राजा अनगपाल तोमर तक उस के नापाक योजना की सुचना पहुच गयी थी अनगपाल तोमर ने अपने भाई को 2000 घोड़े सवारो के साथ महमूद से बात करने पंजाब भेजा दोनों बीच में बातचीत हुई और वो वापस दिल्ली अपने भाई के पास चल दिया उसको रास्ते में सुचना मिली की महमूद हमला करने वाला है इस बात की सूचना उस ने अपने बड़े भाई अनगपाल तोमर को दे दी। जो उस समय दिल्ली में थे। उन्होंने कई हिन्दुओ राजो को साथ लिया और थानेसर की तरफ चल दिए उनके पहुचने से पहले ही महमूद ने थानेसर के मंदिरों को लुटा। थानेसर से उस को बहुत धन दोलत प्राप्त हुई। फिर उसने दिल्ली पर हमले के सोची पर उसके सेनापति ने महमूद गजनवी से कहा की दिल्ली के तोमरो को जितना असम्भव है। क्यों की तोमर इस समय बहुत शक्तिशाली है ध्यान देने वाली बात है गजनवी ने भारत पर 17 बार हमले किये पर दिल्ली पर कभी हमला करने की उसकी हिम्मत नही हुई | 1025 के सोमनाथ के हमले के बाद उस को खोखर जाटों ने रास्ते में ही लुट लिया। उसको सबक सिखा दिया। और वो वापस मुल्तान लोट गया। अनंगपाल तोमर इस क्षेत्र में पहुचे हूँ बहुत दुःखी हुए और वो पालकी की जगहे सीढ़ी पर बैठ पर गये। इस कारण से ही तो तोमर जाटों को इस क्षेत्र में सिरा तोमर ,या शिरा तंवर कहते है (शिरा (सिरे)=सीढ़ी वाले ) कहा जाता है। सिरा तंवर अनंग पाल तोमर के वन्सज है जिनके आज 12 से ज्यादा गाँव गुहला और पेहोवा के पास है कुछ गाँव पंजाब में है।
गरचा जट तोमर जाटो की एक उप गोत्र शाखा है। जो की कोहरा गाँव जिला लुधियाना पंजाब से निकली है यह तोमर जाटोके निकट संबंधि है
महाभारत में तोमर जाट कुल का उल्लेख है :-
वायु पुराण के अनुसार नलिनी नदी मध्य एशिया के बिन्दसरा से निकल कर तोमर और हंस लोगो की भूमि से प्रवाहित होती है[2]
तोमरो का नाम का जिक्र वायु पुराण ,और विष्णु पुराण में भी है [3]
महाभारत के भीष्म पर्व (10.68 VI.) में तोमर जाट कुल है. [4] [5]
1337 विक्रम संवत.के बोहर शिलालेख के अनुसार तोमर दिल्ली में चौहान से पहले सत्तारूढ़ थे पेहोवा शिलालेख में एक तोमर राजा जौला और उसके बाद के परिवार का उल्लेख है.।. वायु पुराण कहते हैं वे मूल रूप से मध्य एशिया में नदी नलिनी, जो बिंदुसरोवर में उठता है और पूर्व की ओर चला जाता है पर थे|
महाभारत के आदि पर्व (I.17.11) तोमर का उल्लेख है.
महाभारत जनजाति (तामर) Tamara 'भूगोल' महाभारत (10.68 VI.) में उल्लेख किया है,
.शल्यपर्व तोमर (IX.44.105) महाभारत में भीष्म पर्व, महाभारत / बुक छठी 68 श्लोक में उल्लेख तोमर (VI.68.17) अध्याय के रूप में उल्लेख है.
कर्ण पर्व महाभारत बुक आठवीं के 17 अध्याय विभिन्न श्लोकों VIII.17.3, VIII.17.4, VIII.17.16, VIII.17.20, VIII.17.22, VIII.17.104 आदि में तोमर का उल्लेख पांडु के वंशज में उल्लेख किया हैं.
तोमरों का ऐसाह आगमन
तोमरों का ऐसाह आगमन : सन 1192 में तराइन के निर्णायक युद्ध में चाहडपाल डेव तोमर की मृत्यु के पश्चात तोमरों के दिल्ली साम्राज्य का पतन हो गय.[17] दिल्ली तथा उसके आस-पास के हिन्दु राजाओं पर विदेशी आक्रान्ताओं का दवाब बढने लगा तब वे लोग मैदानी क्शेत्रों को छोडकर मध्य भारत के बीहडों तथा दुर्गम क्षेत्रों की ओर नई सत्ता की स्थपना के लिये बढने लगे. पराजित तोमर शासक चम्बल के बीहडों मे स्थित अपने प्राचीन स्थान एसाह आ गये. [18][19]
 
चम्बल का पनी चम्बल में - प्रिन्सेप[20] ने विल्फ़ोर्ड[21] द्वार विवेचित एक अनुश्रुति का उल्लेख किया है. किसी अनंगपाल का पौत्र दिल्ली के पतन के बाद अपने देश गौर चला गया. यह गौर निश्चय ही ग्वालियर क्षेत्र है और अनंगपाल है अनंगप्रदेश का अन्तिम राजा चाहड़पाल. दिल्ली का तोमर राजवंश ग्वालियर आया था. वे चम्बल के ऐसाहगढ में आकर निवास करने लगे थे.
 
तोमर जाट और राजपूत: कुछ इतिहास कार चाहड़पाल तोमर को अनंगपाल तृतीय (अक्रपाल) (दत्तपाल) नाम से भी पुकारते हैं. दिल्ली के अंतिम तोमर राजा अनंगपाल थे। इनसे 20 पीढ़ी पहले भी एक अनंगपाल तोमर राजा हुए थे। लेकिन बाद वाले इस 20वें अनंगपाल राजा का 1164 ई० में दिल्ली पर राज था। इनको कोई पुत्र न होने के कारण इन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र (दयोहते) पृथ्वीराज को अपनी सुविधा के लिए अपने पास रख लिया और एक दिन गंगास्नान के लिए चले गए। जब वापिस लौट कर आए तो पृथ्वीराज ने राज देने से मना कर दिया। इस पर तोमर और चौहान जाटों में आपस में युद्ध हुआ जिसमें चौहान जाट विजयी रहे। राजस्थान के चौहान जाट पहले से ही अपने को राजपूत (राजा के पुत्र) कहलाने लगे थे। इस प्रकार दिल्ली पर बाद में राजपूत चौहानों का राज कहलाया। लेकिन ऐसी कौन सी विपदा आई कि दिल्ली में जाट तो रह गए लेकिन राजपूत गायब हो गए? इससे यह प्रमाणित है कि जाट और राजपूत एक ही थे। यह सब काल्पनिक बृहत्यज्ञ का ही परिणाम है। राज पुत्र होने के कारण तोमर जाट से राजपूत हो गए (पुस्तक राजपूतों कि उत्पत्ति का इतिहास)। हम कहते हैं कि तोमर राजपूत ही तोमर जाटों से निकले है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से कई शताब्दियों पहले का है क्योंकि राजपूत शब्द को कोई भी इतिहासकार छठी शताब्दी से पहले का नहीं बतलाता। लेकिन जाट शब्द जो कि पाणिनि के धातुपाठ व चन्द्र के व्याकरण में क्रमशः ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व और ईसा से 400 वर्ष पीछे का लिखा हुआ मिलता है इस बात का प्रमाण है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से प्राचीन है। ऐसी दशा में संभव यही हुआ करता है कि पुरानी चीज में से नई चीज बना करती है।
 
दिल्ली में जब जाट राजा अनंगपाल तोमर का राज था जिनके कोई पुत्र नहीं था इसलिए गंगा स्नान जाने से पहले अपने दोहते पृथ्वीराज चौहान को राज संभलवा गए परन्तु उनकी वापिसी पर पृथ्वीराज ने राज देने से इनकार कर दिया जिस पर जाटों में आपस में भारी खून-खराब हुआ और इसमें कुछ तोमर और चौहान जाटों के दल पलवल और मथुरा के पास जाकर बसे जिनके आज वहां कई गांव हैं। [22]