"अरुन्धती": अवतरणों में अंतर
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'''अरुन्धती''' [[कर्दम]] ऋषि और [[देवहूति]] की नौ कन्याओं में से आठवीं कन्या थी। अरुन्धति का विवाह महर्षि [[वशिष्ठ]] के साथ हुआ। महर्षि [[वशिष्ठ]] और अरुन्धती से चित्रकेतु, सुरोचि, विरत्रा, मित्र, उल्वण, वसु, भृद्यान और द्युतमान नामक पुत्र हुये।
जीवन परिचय
मेधाततिथि के यज्ञकुंड से उत्पन होने के कारण इन्हें मेधातिथि की कन्या भी कहा जाता है। चंद्रभागा नदि के तट पर मेधातिथी का आश्रम था वाहि उनका लालन पालन हुआ। केवल पाँच वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपने सद्गुणों से संसार को पृकाशित किया। एक बार अरुंधति अपने पिता का साथ खेल रही थी,तभी बृहमा.जी. आये पिता और पुत्री ने उनके चरणों में मस्तक झुका कर प्रणाम किया। भउन्होंने ने अरुंधति के पिता से अरुंधति को शिक्षित करने की बात कही ।
मेथातिथी अरुंधति को लेकर सूर्यलोक में सावित्री जी के पास गये । वहा प्रतिदिन सावित्री,गायात्री,सरस्वती और द्रुपद एकात्रित होकर धर्मचर्चा करते थे। मेधातिथि ने अपनी कन्या पूर्ण शिक्षा के लिया सावित्री को सौप दी। अरुंधति ने सावित्री के पास सात वर्ष में ही संपूर्ण शिक्षा ली।
तदन्तर अपनी कन्या का विवाह ऋषि वशिष्ठ जी के साथ किया। वशिष्ठ जी ने हिमालय की तलहटी में अपना आश्रम बनाया और उन्होंने लंबे समय तक तपस्या की । महाराज दिलीप ने अपनी पत्नी सुदेष्णा के साथ उनके आश्रम में कामधेनु की पुत्री नंदनी की सेवा की।
अरुंधति का इतना प्रभाव था की एक बार त्रिदेव की जिज्ञासा का समाधान करने उनके पास आये ।अरुंधति उस समय जल लाने जा रही थी । त्रिदेव ने कहा की हम आपका घडा अपने प्रभाव से भर देगे ।त्रिदेव ने कोशिश की पर एक चौथाई घडा ही बार पाये ।1/4 घडा खाली रहा । वह अरुंधति ने सतीधार्म के प्रभाव से भर दिया।देवताओ को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया ।वे तीनो नतमस्तक हुई। और वापस लौट गये।
इस माना जाता है की अरुंधति गुरुकुल भी चलती थी। आज भी उस तेजस्वी स्त्री को सप्तमंदल में चमकते हुये तारे के रूप में देख सकते है।
== सन्दर्भ ==
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