"लाइकेन": अवतरणों में अंतर

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ये तीनों प्रकार के वर्ग क्रमश: पर्पटीमय (crustose), पर्णिल (foliose) और क्षुपिल (fructose) लाइकेन कहे जाते हैं।
 
'''पर्पटीमय लाइकेन''' चपटे और पतले होते हैं तथा वृक्ष की छाल, या शिलाओं से चिपके हुए उगते हैं। इनमें अधिकांश का तो कुछ भाग आधार के भीतर होता है और ये आधार पर भूरे रंग की धारियों तथा बिंदुओं की भाँति दिखाई देते हैं। इनकी विभिन्न जातियाँ आधार के रंग से मिलती हैं, अत: ये चट्टान के समान ही दिखाई देती है। '''पर्णिल लाइकेन''' मुड़ी हुई पत्ती की भाँति होते हैं, जिनमें आरोह अवरोह होते हैं। ये पतले पतले मूलाभासों (rhizoids) की सहायता से शिलाओं, या शाखाओं से चिपके रहते हैं। मूलाभास इनके निचले धरातल से निकलते हैं। '''क्षुपिल लाइकेन''' अत्यधिक विभाजित बेलनाकार तथा फीते की भाँति होते हैं, जो अपने अध: स्तर (substratum) से आधारिक (basal) भाग द्वारा ध्वजा की भाँति जुड़े होते हैं। सभी लाइकेन [[अधिपादप]] (epiphyte) हैं, परजीवी नहीं। ये अपने परपोषी (host) पर केवल सहारे (anchorage) के लिए ही आश्रित होते हैं।
 
वास्तव में लाइकेन दो पूर्णतया भिन्न वनस्पतियों से बना एक द्वैध पादप होता है। इन वनस्पतियों में से एक है शैवाल (algae) और दूसरा है कवक (fungus), किंतु इन दोनों में इतना निकटतम साहचर्य होता है कि इनसे बना लाइकेन एक ही पौधा प्रतीत होता है। इस साहचर्य में अधिकांशत: कवक ही होता है, जो शैवालवाले अंग के ऊपर एक थैले की भाँति आवरण होता है तथा थैलस के आकार के लिए उत्तरदायी होता है। दोनों वनस्पतियों की मिश्रित वृद्धि से ही लाइकेन को एक विशेष आकार और आंतर संरचना प्राप्त होती है, जिससे लाइकेन कई कुल और जातियों में विभक्त हो जाते हैं। इनके लगभग 400 वंश और 15,000 स्पीशीज़ ज्ञात हैं।