"माधवराव सप्रे": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Sapre Ji 2.jpg|thumb|right|200px|माधवराव सप्रे]]माधवराव सप्रे ([[जून]] [[१८७१]] - [[२६ अप्रैल]] [[१९२६]]) के जन्म [[दमोह जिला|दमोह]] के पथरिया ग्राम में हुआ था। [[बिलासपुर]] में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मेट्रिक शासकीय विद्यालय [[रायपुर]] से उत्तीर्ण किया। [[१८९९]] में [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे जी ने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हए अँग्रेज़ों की शासकीय नौकरी की परवाह न की। सन [[१९००]] में जब समूचे [[छत्तीसगढ़]] में प्रिंटिंग प्रेस नही था तब इन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से “छत्तीसगढ़ मित्र” नामक मासिक पत्रिका निकाली।<ref>{{cite web |url= http://aarambha.blogspot.com/2008/06/blog-post_19.html|title=पत्रकारिता व साहित्य के ऋषि माघव सप्रे|accessmonthday=[[२ मई]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=आरंभ|language=}}</ref> हालांकि यह पत्रिका सिर्फ़ तीन साल ही चल पाई। सप्रे जी ने [[लोकमान्य तिलक]] के [[मराठी]] [[केसरी]] को यहाँ [[हिंदी केसरी]] के रूप में छापना प्रारंभ किया तथा साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए [[नागपुर]] से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने ''कर्मवीर'' के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।
सप्रे जी की कहानी "एक टोकरी मिट्टी" (जिसे बहुधा लोग “टोकनी भर मिट्टी” भी कहते हैं) को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। सप्रे जी ने मौलिक लेखन के साथ-साथ विख्यात संत [[समर्थ रामदास]] के मराठी ''दासबोध'',
माधवराव सप्रे के जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के ''कर्मवीर'' में लिखा था − "पिछले पच्चीस वर्षों तक पं॰ माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।"<ref>{{cite web |url= http://www.tadbhav.com/issue_17/manager_pandey.htm#manager|title=माधवराव सप्रे का महत्व|accessmonthday=[[२ मई]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=तद्भव|language=}}</ref>
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