"दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय": अवतरणों में अंतर
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उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में [[स्वामी दयानन्द सरस्वती]] ने [[आर्य समाज]] की स्थापना की जिसका लक्ष्य भारतीय समाज को बौद्धिक, वैचारिक (emotionally) एवं आध्यात्मिक रूप से पुनर्जीवित करना था। उन्होने "वेदों की ओर वापस" जाने का आह्वान किया जिसका वास्तविक अर्थ "शिक्षा का प्रसार" करना था। स्वामी दयानन्द का विश्वास था कि शिक्षा के प्रसार के द्वारा ही देश के कोने-कोने में जागृति आयेगी।
महर्षि दयानन्द के सपनो को साकार करने के लिये उनके कुछ ज्ञानी, समर्पित एवं त्यागी अनुयियों ने "दयानन्द ऐंग्लो वैदिक कॉलेज ट्रस्ट तथा प्रबन्धन समिति" की स्थापना की। ०१ जून, सन् १८८६ में इस समिति का पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) हुआ। १८८६ में ही समिति का पहला डीएवी स्कूल [[लाहौर]] में स्थापित हुआ और [[लाला हंसराज]] इसके अवैतनिक प्रधानाचार्य बनाये गये। इस प्रकार एक शैक्षिक आन्दोलन की नींव पड़ी।
अनेक दूरदर्शी एवं [[राष्ट्रवाद|राष्ट्रवादी]] जैसे [[लाला लाजपत राय]], [[भाई परमानन्द]], [[लाला द्वारका दास]], [[बक्शी रामरतन]], [[बक्शी टेक चन्द]] आदि ने इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया और इसे पूरे देश में फैलाया।
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