"भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार": अवतरणों में अंतर
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१९२७ ई. में ब्रिटिश संसद एवं भारतीय वायसराय लॉर्ड डरविन ने एक घोषणा की भारत में फैल रही नैराश्य स्थिति की समाप्ति हेतु १९२८ ई. में एक कमीशन की स्थापना की घोषणा की। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे, अतः इसे साइमन कमीशन कहा जाता है किन्तु इसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं रखा गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस आयोग के बहिष्कार एवं विरोध का फैसला किया। बिहार प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति की पटना में सर अली इमाम की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें साइमन कमीशन के पटना आगमन पर पूर्ण बहिष्कार किया गया।
१८ दिसम्बर १९२८ को साइमन कमीशन बिहार आया। हार्डिंग पार्क (पटना) के सामने बने विशेष प्लेटफार्म के सामने ३०,००० राष्ट्रवादियों ने साइमन वापस जाओ के नारे से स्वागत किया गया। साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लखनऊ में पण्डित जवाहर लाल एवं लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाई गईं। लाठी की चोट से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। फलतः विद्रोह पूरे देश में फैल गया। कमीशन के विरोध में बिहार में
नवम्बर १९२१ ई. ब्रिटिश युवराज का भारत आगमन हुआ। इनके आगमन के विरोध करने का फैसला किया गया। इसके लिए बिहार प्रान्तीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। जब राजकुमार २२ दिसम्बर १९२१ को पटना आये तो पूरे शहर में हड़ताल थी। ५ जनवरी १९२२ को उत्तर प्रदेश के चौरा-चौरी नामक स्थान पर उग्र भीड़ ने २१ सिपाहियों को जिन्दा जला दिया तो गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया। गाँधी जी को १० मार्च १९२२ को गिरफ्तार कर ६ महीना के लिए जेल भेज दिया गया।
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