"झूठा सच": अवतरणों में अंतर

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नेमिचंद्र जैन ने इस उपन्यास पर अनेक आरोप लगाते हुए यह निष्कर्ष दिया था कि हिन्दी उपन्यास साहित्य की सबसे महत्त्वपूर्ण कृतियों में होने पर भी 'झूठा सच' अंततः किसी आत्यन्तिक सार्थक उपलब्धि के स्तर को छूने में असफल ही रह जाता है।
 
कवि कुँवर नारायण ने 'कविदृष्टि का अभाव' शीर्षक से इस उपन्यास की समीक्षा ही लिखी थी।
 
==इन्हें भी देखें==