"झूठा सच": अवतरणों में अंतर
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कवि [[कुँवर नारायण]] ने इस उपन्यास की समीक्षा ही 'कविदृष्टि का अभाव' शीर्षक से लिखी थी।<ref>विवेक के रंग, संपादक- देवीशंकर अवस्थी, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-1995, पृष्ठ-200.</ref>
इसके बरअक्स आनंद प्रकाश का स्पष्ट मत है कि इस उपन्यास का एक बहुत बड़ा गुण है इसकी रोचकता और अत्यधिक साहित्यिकता। ...निश्चय ही 'सामाजिक वातावरण' और 'ऐतिहासिक यथार्थ' (यशपाल द्वारा प्रयुक्त शब्द) के बेबाक चित्रण को ज्यादातर सही साहित्यिक समझ और अभिव्यक्ति से जोड़ पाने में यशपाल को पर्याप्त सफलता मिली है।
==इन्हें भी देखें==
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