"झूठा सच": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
→विषय-वस्तु: सन्दर्भ जोड़ा। |
→विषय-वस्तु: सन्दर्भ जोड़ा। |
||
पंक्ति 7:
झूठा सच के प्रमुख पात्र हैं जयदेव पुरी, उसकी बहन तारा और जयदेव पुरी की पत्नी कनक। तारा और जयदेव पुरी का एक परिवार है, कनक का दूसरा परिवार है। इन दोनों परिवार की कहानियों के माध्यम से उपन्यास की कहानी आगे बढ़ती है और अत्यधिक विस्तार में जाकर बहुआयामी हो जाती है।
झूठा सच की कहानी सन् 1947 में भारत की आजादी के समय मचे भयंकर दंगे की पृष्ठभूमि के रूप में बुनी गयी है। ब्रिटिश औपनिवेशिकता, उसकी 'फूट डालो और राज करो' की नीति तथा मुस्लिम लीग के 'दो राष्ट्र का सिद्धांत' से मिलकर बृहत्तर भारतीय समाज में स्वतः मौजूद छुआछूत की निम्न भावना एवं सांप्रदायिकता की दबी चेतना ऐसी उभरी कि पूरा भारत वर्ष ऐसी ज्वाला से धधक उठा जिसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिल पाता है।<ref>हिन्दी उपन्यास का इतिहास, गोपाल राय, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2009, पृष्ठ-203.</ref> मानवीय यातना के इतिहास में यह विश्व की क्रूरतम घटनाओं में से एक घटना मानी जाएगी। लगभग एक दशक (1946 से 56 तक) इस उपद्रव का प्रभाव बना रहा।<ref>आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास, बच्चन सिंह, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण-1997, पृष्ठ-330-31.</ref> तात्कालिक ही सही पर वहशी भावनाओं की गिरफ्त में आये हिंसक पशु बने मनुष्यों द्वारा सांप्रदायिक दंगों में हजारों-हजार व्यक्ति मौत के घाट उतार डाले गये, लाखों विस्थापित हो गये, स्त्रियों और बच्चों के साथ अमानुषिक अत्याचार किये गये और पूरे देश की एक विशाल जनसंख्या को अपना देश या वतन छोड़कर भारत या पाकिस्तान में नये सिरे से बसना पड़ा। झूठा सच के प्रथम भाग 'वतन और देश' में इन स्थितियों का अत्यंत मार्मिक एवं विस्तृत चित्रण किया गया है। इस भाग के अंत में शरणार्थियों को लेकर आने वाली एक बस का ड्राइवर कहता है "रब्ब ने जिन्हें एक बनाया था, रब्ब के बन्दों ने अपने वहम और जुल्म से उन्हें दो कर दिया।"<ref>यशपाल रचनावली, खण्ड-3 (झूठा सच, भाग-1 'वतन और देश') लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, पेपरबैक संस्करण-2007, पृष्ठ-415.</ref>
झूठा सच के दूसरे खंड 'देश का भविष्य' में स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के दशक में देश के विकास और भावी निर्माण में बुद्धिजीवियों और नेताओं की प्रगतिशील और प्रतिगामी भूमिका का यथार्थ तथा प्रभावपूर्ण अंकन किया गया है। जयदेव पुरी और सूद प्रतिगामी शक्तियों के प्रतिनिधि रूप में भ्रष्ट राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत करता है और तारा जैसी क्रांतिकारी चेतना से युक्त विकास की राह पर चलने वाली स्त्री भी सुख-समृद्धि एवं प्रभाव की लिप्सा में पड़कर विडंबना का दुःखद उदाहरण प्रस्तुत करती है। कर्म-कर्म की रट लगाने वाले प्रधानमंत्री स्वयं केवल भाषण का सहारा लेते और फिजूलखर्ची का भीषण उदाहरण प्रस्तुत करते दिखते हैं। कुल मिलाकर विस्तृत चित्र-फलक पर यशपाल दिखलाते हैं कि देश का भविष्य अंततः देश की सामान्य जनता के ही हाथ में है जो समग्र स्थितियों का अवलोकन कर सही वस्तुस्थिति को पहचान सके। इसीलिए यशपाल विभिन्न स्थितियों का चित्र उकेरते हैं, किसी पात्र का एक रैखिक या आदर्शवादी चित्रण नहीं करते हैं, क्योंकि व्यवहारिक जीवन में ऐसा हो पाना काम्य तो है, परंतु बहुधा संभव नहीं हो पाता है।
|