"देवनागरी": अवतरणों में अंतर

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→‎देवनागरी लिपि में सुधार: एक हजार साल पुरानी है देवनागरी लिपि । उस समय न तो टाईप राईटर था और न ही कम्प्यूटर। वर्तमान में पुरानी लिपि की कमियाँ लिखने, पढ़ने और टाइपिंग में कठिनाइयां पैदा कर रही है। लिपि को अपग्रेड करने की आवश्यकता है।
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भारत के स्वाधीनता आंदोलनों में हिंदी को [[राष्ट्रभाषा]] का दर्जा प्राप्त होने के बाद लिपि के विकास व मानकीकरण हेतु कई व्यक्तिगत एवं संस्थागत प्रयास हुए। सर्वप्रथम [[बाल गंगाधर तिलक]] ने 'केसरी फॉन्ट' तैयार किया था। आगे चलकर [[विनायक दामोदर सावरकर|सावरकर बंधुओं]] ने [[बारहखड़ी]] तैयार की। गोरखनाथ ने मात्रा-व्यवस्था में सुधार किया। डॉ. [[श्यामसुंदर दास]] ने [[अनुस्वार]] के प्रयोग को व्यापक बनाकर देवनागरी के सरलीकरण के प्रयास किये।
 
देवनागरी के विकास में अनेक संस्थागत प्रयासों की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। १९३५ में [[हिंदी साहित्य सम्मेलन]] ने [[नागरी लिपि सुधार समिति]]<ref>[https://ia802800.us.archive.org/14/items/NaikTypoDevaV21971bOCR/Naik_TypoDeva_v2_1971b_OCR.pdf Notes on the works of Script Reforms]</ref> के माध्यम से बारहखड़ी और शिरोरेखा से संबंधित सुधार किये। इसी प्रकार, १९४७ में [[आचार्य नरेन्द्र देव|नरेन्द्र देव]] की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने बारहखड़ी, मात्रा व्यवस्था, अनुस्वार व अनुनासिक से संबंधित महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये।देवनागरी लिपि के विकास हेतु [[भारत सरकार]] के शिक्षा मंत्रालय ने कई स्तरों पर प्रयास किये हैं। सन् १९६६ में मानक देवनागरी वर्णमाला प्रकाशित की गई और १९६७ में ‘हिंदी वर्तनी का मानकीकरण’ प्रकाशित किया गया।गया।एक हजार साल पुरानी देवनागरी लिपि और हिंदी की नई लिपि ' होडो़ सेंणा लिपि ' में क्या फर्क है ?
1.देवनागरी के ग, ण और श में आकार लगे होने का भ्रम होता है। होडो़ सेंणा लिपि में ऐसा कोई वर्ण नहीं है।
2.देवनागरी में ' र ' ध्वनि के लिए कई संकेत चिह्न हैं । होडो़ सेंणा में सिर्फ एक ही है।
3. संयुक्ताक्षरों के कारण देवनागरी में अच्छी खासी परेशानी है। इसका समाधान होडो़ सेंणा में है। नई लिपि में आधे अक्षरों का व्यवहार नहीं होता है। जिसके कारण ध्वनि संकेत चिह्नों में कमी आई है।
4. स्वर वर्ण और इनकी मात्राओं को दर्शाने की व्यवस्था बदली गयी है। जिसके कारण कई अक्षरों का इस्तेमाल नहीं होता है। इस तरह से कुछ संकेत चिह्नों की आवश्यकता नहीं रह गयी है।
5. महाप्राण ध्वनियों की दूसरी व्यवस्था की गई है। जिसके कारण कई अक्षरों की आवश्यकता नहीं रही।
6. समय की मात्राओं में चौथाई मात्रा का प्रावधान जोडा़ गया है। जिसके कारण उच्चारण को स्पष्ट लिखना आसान हुआ है।
7. इन परिवर्तनों से बहुत कम याने 45 ( पैंतालीस) संकेत चिह्नों से ही स्पष्ट वर्तनी की व्यवस्था हो जाती है। जबकि देवनागरी में 140 ( एक सौ चालीस) संकेत चिह्नों की आवश्यकता होती है। ( विराम चिह्नों को छोड़कर )
पूरी जानकारी वेबसाइट में उपलब्ध है --
www.hindikinailipi.com
 
एक हजार साल पुरानी देवनागरी लिपि में ' र ' के उच्चारण के लिए 6 ( छः) प्रकार के चिह्नों का व्यवहार होता है--
1. र , 2. ऋ , 3. क्रम , 4. कर्म , 5. ट्रेन , 6. कृष्ण
हिंदी की नई लिपि ' होडो़ सेंणा लिपि ' में ' र ' के उच्चारण के लिए सिर्फ एक ही चिह्न का व्यवहार होता है और वर्तनी अधिक स्पष्ट लिखी जा सकती है।
लिपि शोधक -- रवीन्द्र नाथ सुलंकी
www.hindikinailipi.com
 
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