"शंकर शेष": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
→नाट्य साहित्य: विवरण बढ़ाया। |
|||
पंक्ति 13:
डॉ० शंकर शेष ने प्रायः 40 वर्ष की उम्र में नाटक लिखना शुरू किया और आगामी आठ-नौ वर्षों में करीब 20 नाटकों की रचना की। अपने नाटक 'एक और द्रोणाचार्य' से वे बहुत अधिक प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने अपने नाटकों एवं फिल्मों से पूरे देश में बहुत ख्याति पायी। फॉर्म और कथ्य की दृष्टि से उन्होंने अनेक प्रकार के नाटक लिखे हैं। 'मायावी सरोवर', 'शिल्पी', 'बिन बाती के दीप', 'पोस्टर', 'कोमल गांधार', 'रक्तबीज' आदि नाटकों से उनकी कला-क्षमता को पहचाना जा सकता है। खासकर 'पोस्टर' में अगर लोकधर्मिता है तो 'कोमल गांधार' में सुकुमार संवेदना और चरित्रों की आंतरिकता। एक भिन्न प्रकार की गूँज उनके हर नाटक में मिलेगी।<ref name="ग">हिन्दी नाटक का आत्मसंघर्ष, गिरीश रस्तोगी, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण-2002, पृष्ठ-257.</ref>
'एक और द्रोणाचार्य' उनका सबसे लोकप्रिय नाटक था जिसकी 30 से अधिक प्रस्तुतियों के विवरण उपलब्ध हैं। यह नाटक अत्यधिक लोकप्रियता के बावजूद हमेशा विवादास्पद भी रहा। मार्क्सवादी आलोचक शंकर शेष के कथ्य से सहमत नहीं हैं और नया निर्देशक उनकी कृति को प्रायः संपादित किए बिना प्रस्तुत नहीं करना चाहता, क्योंकि उनकी दृष्टि में इस नाटक में भावुकता, रहस्य और फिल्मी लटकों का चमत्कार कुछ अधिक हो गया है।<ref name="ग" /> फिर भी महाभारत के पात्र गुरु द्रोणाचार्य और आधुनिक महाविद्यालय के प्राध्यापक के कुछ हद तक समानान्तर चित्रण से समकालीन ज्वलंत समस्या को कलात्मक रूप से सामने रखने वाला यह नाटक एक सशक्त कृति के रूप में स्वीकृत है।<ref name="क">भारतीय रंग कोश, संदर्भ हिन्दी, खण्ड-2 (रंग व्यक्तित्व), संपादक- प्रतिभा अग्रवाल, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली की ओर से राजकमल प्रकाशन, प्रा० लि०, नयी दिल्ली, संस्करण-2006, पृष्ठ-258.</ref>
'बन्धन अपने-अपने' शंकर शेष का पहला नाटक था और उसका मंचन वाराणसी की 'शिल्पी' संस्था द्वारा 1980 में हुआ था। 'बिन बाती के दीप', 'कोमल गांधार', 'रक्तबीज', 'मायावी सरोवर' आदि का मंचन भी प्रसिद्ध नाट्य निर्देशकों द्वारा होते रहा है।
|