"देहरादून": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
{{main|देहरादून का इतिहास}}
देहरादून का इतिहास कई सौ वर्ष पुराना है। देहरादून से ५६ किलोमीटर दूर कालसी के पास स्थित शिलालेख से इस पर तीसरी सदी ईसा पूर्व में सम्राट [[अशोक]] का अधिकार होने की सूचना मिलती है। देहरादून ने सदा से ही आक्रमणकारियों को आकर्षित किया है। खलीलुल्लाह खान के नेत्वृत्व में [[१६५४]] में इस पर [[मुगल]] सेना ने आक्रमण किया था। सिरमोर के राजा सुभाक प्रकाश की सहायता से खान गढ़वा के राजा पृथ्वी शाह को हराने में सफल रहे। गद्दी से अपदस्त किए गए राजा को इस शर्त पर गद्दी पर आसीन किया गया कि वे नियमित रूप से मुगल [[बादशाह]] [[शाहजहाँ]] को कर चुकाएगें करेंगे।चुकाएगें। इसे [[१७७२]] में गुज्जरों ने लूटा था। तत्कालीन राजा [[ललत शाह]] जो [[पृथ्वी शाह]] के वंशज थे, की पुत्री की शादी गुलाब सिंह नामक गुज्जर से की गई थी। गुलाब सिंह के पुत्र का नियंत्रण देहरादून पर था और उनके वंशज इस समय भी नगर में मिल सकते हैं।
 
गढ़वाल के राजा ललत शाह के पुत्र प्रदुमन शाह के शासन काल में रोहिल्ला नजीब के पोते गुलाम कादिर के नेतृत्व में अफगानों का आक्रमण हुआ। जिसमें उसने गुरू राम राय के अनुयायियों और शिष्यों को मौत के घाट उतार दिया। जिन लोगों ने हिन्दू धर्म त्यागने का निर्णय लिया, उन्हें छोड़ दिया गया। लेकिन अन्य लोगों के साथ बहुत निमर्मतापूर्वक व्यवहार किया गया। सहारनपुर के राज्यपाल और अफगान प्रमुख नजीबुदौल्ला भी देहरादून को अपने अधिकार में करने के उद्देश्य में सफल रहा उसके बाद देहरादून पर गुज्जरों, सिक्खों, राजपूतों और गोरखाओं के लगातार आक्रमण हुए और यह उपजाऊ और सुंदर भूमि शिघ्र ही बंजर स्थल में बदल गई। [[१७८३]] में एक सिक्ख प्रमुख बुघेल सिंह ने देहरादून पर आक्रमण किया और बिना किसी बड़े प्रतिरोध के सहजता से इस क्षेत्र को जीत लिया। [[१७८६]] में देहरादून पर गुलाम कादिर का आक्रमण हुआ। उसने पहले [[हरिद्वार]] को लूटा और फिर देहरादून पर कहर बरपाया। उसने नगर पर आक्रमण किया और उसे जमकर लूटा तथा बाद में देहरादून को बर्बाद कर दिया। [[१८०१]] तक अमर सिंह थापा के नेत्वृत्व में गोरखा ने दून घाटी पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। [[१८१४]] में नालापानी के लिए अमर सिंह थापा के पोते बालभद्र सिंह थापा के नेत्वृत्व में गोरखा और जनरल जिलेस्पी के नेत्वृत्व में ब्रिटिश के बीच युद्ध हुआ। गोरखाओं ने इस लड़ाई में जमकर बराबरी कि और जनरल समेत कई ब्रिटिश सेनाओं को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। इस बीच गोरखाओं को एक असामान्य स्थिति का सामना करना पड़ा और उन्हें नालापानी के किले को छोड़ कर जाना पड़ा। [[१८१५]] तक गोरखाओं को हरा कर ब्रिटिश शासन ने इस पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार कर लिया।