"आदर्शवाद": अवतरणों में अंतर

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कुछ लोग मूल्य को मानव कल्पना का पद ही देते हैं। जो वस्तु किसी कारण से हमें आकर्षित करती है, वह हमारी दृष्टि में मूल्यवान या भद्र है। इसके विपरीत [[अफ़लातून]] के विचार में प्रत्यय या आदर्श ही वास्तविक अस्तित्व रखते हैं, दृष्ट वस्तुओं का अस्तित्व तो छाया मात्र है। एक तीसरे मत के अनुसार, जिसका प्रतिनिधित्व [[अरस्तू]] करता है, आदर्श वास्तविकता का आरंभ नहीं, अपितु 'अंत' है। 'नीति' के आरंभ में ही वह कहता है कि सारी वस्तुएँ आदर्श की ओर चल रही हैं।
 
मूल्यों में उच्च और निम्न का भेद होता है। जब हम कहते हैं कि 'क' , 'ख' से उत्तम है, तब हमारा आशय यही होता है कि सर्वोत्तम से ख की अपेक्षा क का अंतर थोड़ा है। मूल्य क तुलना का आधार सर्वोत्तम है। इसे 'निःश्रेयस' कहते हैं। प्राचीन [[यूनान]] और [[भारत]] के लिए निःश्रेयस या सर्वश्रेष्ठ मूल्य के स्वरूप का समझना ही नीति में प्रमुख प्रश्न था। इस प्रकार
 
== निःश्रेयस का स्वरूप ==