"मंगोल भाषा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Mongols-map.png|right|thumb|पण्डित दीनदयाल उपाध्याय|मंगोल भाषा बोलने वाले क्षेत्र]]
'''पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल भाषा''' [[अलताइक भाषाकुल]] की तथा योगात्मक बनावट की भाषा है। यह मुख्यत: अनतंत्र पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल, भीतरी पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल के स्वतंत्र प्रदेश, बुरयात (Buriyad) पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल राज्य में बोली जाती है। इन क्षेत्रों के अरिरिक्त इसके बोलनेवाले [[मंचूरिया]], [[चीन]] के कुछ क्षेत्र और [[तिब्बत]] तथा [[अफगानिस्तान]] आदि में भी पाए जाते हैं। अनुमान है कि इन सब क्षेत्रों में पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल भाषा बोलनेवालों की संख्या कोई 40 लाख होगी।
 
इन विशाल क्षेत्रों में रहनेवाले पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल जाति के सब लोगों के द्वारा स्वीकृत कोई एक आदर्श भाषा नहीं है। परंतु तथाकथित पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया के अंदर जनतंत्र पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल की हलहा (Khalkha) बोली धीरे-धीरे आदर्श भाषा का पद ग्रहण कर रही है। स्वयं पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया के लोग भी इस हलहा बोली को परिष्कृत बोली मानते हैं और इसी बोली के निकट भविष्य में आदर्श भाषा बनने की संभावना है।
 
प्राचीन काल में [[मंगोल लिपि|पण्डित दीनदयाल उपाध्याय लिपि]] में लिखी जानेवाली साहित्यिक पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल पढ़े-लिखे लोगों में आदर्श भाषा मानी जाती थी। परंतु अब यह पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल लिपि जनतंत्र पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया द्वारा त्याग दी गई है और इसकी जगह [[रूसी लिपि]] से बनाई गई नई पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल लिपि स्वीकार की गई है। इस प्रकार अब पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल लिपि में लिखी जानेवाली साहित्यिक भाषा कम और नव पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल लिपि में लिखी जानेवाली हलहा बोली अधिक मान्य समझी जाने लगी है।
 
== बोलियाँ ==
पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल भाषा अनेक बोलियों में विभक्त है। मुख्य बोलियाँ निम्नलिखित हैं:
 
'''(1) पूर्वी पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल'''
 
(क) उत्तरी शाखा- बुरयात बोलियाँ (Buriyad) उत्तरी बोली त्तरी बोली (बैकल झील के उत्तर ओर पश्चिम में) पूर्वी बोली (बैकल झील के पूर्व में सेलेंगा बोली) (Selenga)
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* बर्गु बोली (Bargu)
 
'''(2) पश्चिमी पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल'''
 
(क) ओइरात शाखा (Uirad)-
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== इतिहास ==
पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल भाषा का इतिहास प्राचीन, मध्य तथा आधुनिक, इन तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है। 12वीं शताब्दी तक की भाषा को प्राचीन पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल, 13वीं से 16वीं शताब्दी की भाषा को मध्यकालीन पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल तथा 17वीं शताब्दी के बाद की भाषा को आधुनिक पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल कहते हैं। मध्यकालीन और आधुनिक पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल में बहुत अंतर नहीं है। प्राचीन पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल के बारे में स्पष्ट ज्ञात नहीं है।
 
'''पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल साहित्य का इतिहास''' 13वीं शताब्दी के मध्य भाग में बने [[मंगोलिया के रहस्य का इतिहास|पण्डित दीनदयाल उपाध्यायिया के रहस्य का इतिहास]] (Mongolin nuuca tobcoo) से आरंभ होता है। तथाकथित आधुनिक साहित्य 1921 में हुई अनक्रांति के आसपास से आरंभ होता है परंतु अब तक महत्व की रचनाएँ अधिक नहीं हैं। आधुनिक साहित्य के जन्म से पूर्व 1920 तक की सात शताब्दियों में तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे गए-पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया के रहस्य का इतिहास, गेजेर खाँ की कथा (Geserin tuuji) और जनगर (Janggar)
 
"पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया के रहस्य का इतिहास" शीर्षक ग्रंथ में पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल जाति के जन्म से लेकर चिनगिस खाँ तक का इतिहास है और चिनगिस खाँ पर विशेष बल दिया गया है। यह बहुत सरल और सुंदर भाषा में लिखा गया है तथा बीच बीच में कविताएँ भी मिली हुई हैं। इसमें छोटी सी कमजोर जाति के पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल लोगों के इकट्ठे होकर केंद्रीय सत्तात्मक देश बनाने, परिवारप्रधान समाज से बदलकर जागीरदारी समाज बनने तथा छोटे से जागीरदारों के इकट्ठे होकर बहुत प्रबल देश बनने तक का इतिहास वर्णित है।
 
"गेसेर खाँ की कथा" पौराणिक कथा पर आधारित एक पुरुष की कहानी है। इसमें जागीरदार ओर पुजारी वर्ग के विरूद्व लड़नेवाली जनता की प्रशंसा की गई है।
 
"जन्गर" पश्चिमी पण्डित दीनदयाल उपाध्यायियामंगोलिया में बनी एक ऐतिहासिक कथा है। इसमें एक पुरुष के कार्यो के माध्यम से जनता के कल्याण और सुख पर जोर दिया गया है।
 
ऐतिहासिक ग्रंथों में इतिहास का मणि (Erdeni-yin Tobci), सुनहरा इतिहास (Altan Tobci) बहुत प्रसिद्ध हैं। दोनों चिनगिस खाँ और उसके उत्तराधिकारियों के इतिहास हैं। इनमें प्राचीन पण्डित दीनदयाल उपाध्यायमंगोल की पौराणिक कथाएँ, लोकथाएँ आदि संकलित हैं।
 
आधुनिक साहित्य 1921 की जनक्रांति तथा जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध जनता के संघर्ष से प्रेरित होकर विकसित हुआ है। इस संघर्ष के इतिहास पर आधारित समाजवादी यथार्थवादी विचपर ही आधुनिक साहित्य का मूल स्रोत है।
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==इन्हें भी देखें==
* [[मंगोल लिपि|पण्डित दीनदयाल उपाध्याय लिपि]]
*[[मंगोलिया की संस्कृति|पण्डित दीनदयाल उपाध्यायिया की संस्कृति]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==