"बीरबल सिंह ढालिया": अवतरणों में अंतर

No edit summary
आवश्यक संशोधन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 2:
'''बीरबल सिंह ढालिया''' () भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। १९४६ में आन्दोलन करते समय पुलिस की गोली से उनकी मृत्यु हुई थी।
 
==जीवन परिचय= ( कमल किशोर पंवार पुर्व सचिव, जीनगर युवा संगठन, धुन्धाडा़)
==जीवन परिचय==
बीरबल सिंह [[राजस्थान]] के [[गंगानगर जिला|गंगानगर जिले]] के रायसिंह नगर के निवासी थे। शिक्षा सामान्य, शरीर हृष्ट-पुष्ट था। आप रूई की आढत का व्यवसाय करते थे। आपके पिता श्री सालगराम जी व भाई जवाहर लाल ,जगमल,व सीताराम थे। परिवार सहित [[फाजिल्का]] बंगले में रहते थे। आपके विचार राष्ट्रीयता से परिपूर्ण [[बीकानेर प्रजा परिषद]] के सदस्य थे। आपने सामान्ती अत्याचारों का विरोध किया और नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए हमेशा संघर्ष किया। राज्य की ओर से प्रजा परिषद के अधिवेशन करने पर तो प्रतिबन्ध नहीं था किन्तु [[तिरंगा]] फहराने पर प्रतिबन्ध था।
 
30 जून 1946 को राज्यदेश की अवलहेलना कर निरंगा लेकर जुलूस निकाला गया। श्री बीरबल सिंह जी की बांई भूजा पर इतनी जोर की लाठियां पड़ी की भूजा से खून टपकटे लगा। किन्तु आजादी के दिवाने इससे नहीं रूके। भारतमाता की जय , इन्कलाब—जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए जब रेस्ट हाउस की ओर बढे तो सेना के जवानों ने अंधाधुन्द गोलियां चलानी शुरू करदी। इसी समय बीरबल सिंह जी की जांघ में एक साथ तीन गोलियां लगी लेकिन वे रूके नहीं चलते रहे। लोगों ने उन्हें कन्धे पर उठाया उन्हें पाण्डाल में ले गये। माहौल में ढिलाई होने पर चिकिस्तालय चारपायी समेत लेजाया गया। उनका खून काफी बह चुका था पर फिर भी हाथ में तिरंगा थामे थे। चिकिस्तक उनकी हिम्म्त देखकर स्तब्ध थे। उन्होंने अपने अन्तिम शब्दों में यही कहा <nowiki>'' इस झण्डे की लाज अब मैं आपको सोंपे जा रहा हूं''</nowiki> और इसी के साथ 1 जुलाई, 1946 को हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद ली।