"बीरबल सिंह ढालिया": अवतरणों में अंतर

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अमर शहीद जीनगर बीरबल सिंह ढालिया राजस्थान के गंगानगर जिले के रायसिंह नगर के निवासी थे। शिक्षा सामान्य, शरीर हृष्ट-पुष्ट था। आप रूई की आढत का व्यवसाय करते थे। आपके पिता श्री सालगराम जी व भाई जवाहर लाल ,जगमल,व सीताराम थे। परिवार सहित [[फाजिल्का]] बंगले में रहते थे। आपके विचार राष्ट्रीयता से परिपूर्ण [[बीकानेर प्रजा परिषद]] के सदस्य थे। आपने सामान्ती अत्याचारों का विरोध किया और नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए हमेशा संघर्ष किया। राज्य की ओर से प्रजा परिषद के अधिवेशन करने पर तो प्रतिबन्ध नहीं था किन्तु [[तिरंगा]] फहराने पर प्रतिबन्ध था।
 
30 जून 1946 को राज्यदेश की अवलहेलना कर निरंगा[[तिरंगा]] लेकर जुलूस निकाला गया। श्री बीरबल सिंह जी की बांई भूजा पर इतनी जोर की लाठियां पड़ी की भूजा से खून टपकटे लगा। किन्तु आजादी के दिवाने इससे नहीं रूके। भारतमाता की जय , इन्कलाब—जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए जब रेस्ट हाउस की ओर बढे तो सेना के जवानों ने अंधाधुन्द गोलियां चलानी शुरू करदी।कर दी । इसी समय बीरबल सिंह जी की जांघ में एक साथ तीन गोलियां लगी लेकिन वे रूके नहीं चलते रहे। लोगों ने उन्हें कन्धे पर उठाया उन्हें पाण्डाल में ले गये। माहौल में ढिलाई होने पर चिकिस्तालयचिकित्सालय चारपायी समेत लेजायाले जाया गया। उनका खून काफी बह चुका था पर फिर भी हाथ में तिरंगा थामे थे। चिकिस्तकचिकित्सक उनकी हिम्म्त देखकर स्तब्ध थे। उन्होंने अपने अन्तिम शब्दों में यही कहा <nowiki>'' इस झण्डे की लाज अब मैं आपको सोंपे जा रहा हूं''</nowiki> और इसी के साथ 1 जुलाई, 1946 को हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद ली।
 
1 जुलाई, 1946 को शहीद के पार्थिव शरीर का जुलूस निकाला गया जिसमें [[आजाद हिंद फौज]] के कर्नल अमरसिंह तिरंगा झण्डा लिये सबसे आगे चल रहे थे। शव यात्रा का दृश्य अभूतपूर्व था। हजारों लोगों ने को पूष्पांजली दी । एक ओर चिता पर अमर शहीद की देह को अग्नि में समर्पित की जा रही थी तो दूसरी ओर उनकी पत्नी श्रीमती मूलीदेवी व चार वर्षीय पूत्रीपुत्री चम्पाकुमारी साहस पूर्वक उस यशस्वी को पंचभूत में विलिन होते देख रही थी। रायसिंह नगर के रेस्ट हाउस के पास जहां शहीद को गो​ली लगी जनता ने संगमरमर की मूर्ति की स्थापनी की। 30 जून व 1 जुलाई को शहीद मेला लगता है। लोग दूर दूर से श्रद्धाजंली भेंट करने सपरिवार आते हैं। गंगानगर के मुख्य चौक में शहीद जीनगर बीरबल सिंह ढालिया की मूर्ति स्थापति कर चौक का नाम 'शहीद ​बीरबल चौक' रखा तथा गंगानगर में शहीद के नाम से एक उद्यान भी है। राज्य सरकार ने राजस्थान नहर की एक वितरिका का नाम भी अमर शहीद जीनगर बीरबल सिंह वितरिका रखा है।
 
[[श्रेणी:भारत के स्वतंत्रता सेनानी]]