"जम्मू और कश्मीर": अवतरणों में अंतर

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सिंधु-कोहिस्तान क्षेत्र में नंगा पर्वत संसार के सर्वाधिक प्रभावशाली पर्वतों में से एक है। सिंधु के उस पार गिललित का क्षेत्र पड़ता है। [[रूस|रूसी]] प्रभावक्षेत्र से भारत को दूर रखने के हेतु अंग्रेजी सरकार ने कश्मीर के उत्तर में एक सँकरा क्षेत्र [[अफगानिस्तान]] के अधिकार में छोड़ दिया था। गिलगित तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत कम है। गिलगित से चारों ओर पर्वतीय मार्ग जाते हैं। यहाँ पर्वतक्षेत्रीय फसलें तथा सब्जियाँ उत्पन्न की जाती हैं। बृहत्‌ हिमालय तथा ज़ास्कर पर्वत-श्रेणियों के क्षेत्र में जनसंख्या कम तथा घुमक्कड़ी है। 15,000 फुट ऊँचाई पर स्थित [[कोर्जोक]] नामक स्थान संसार का उच्चतम कृषकग्राम माना जाता है। लद्दाख एवं बल्तिस्तान क्षेत्र में लकड़ी तथा ईधंन की सर्वाधिक आवश्यकता रहती है। बल्तिस्तान में अधिकांशत: मुसलमानों तथा लद्दाख में बौद्धों का निवास है। अधिकांश लोग घुमक्कड़ों का जीवन यापन करते हैं। इन क्षेत्रों का जीवन बड़ा कठोर है। कराकोरम क्षेत्र में श्योक से हुंजा तक के छोटे से भाग में 24,000 फुट से ऊँचे 33 पर्वतशिखर वर्तमान हैं। अत: उक्त क्षेत्र को ही, न कि [[पामीर]] को, 'संसार की छत' मानना चाहिए। अनेक कठिनाइयों से भरे इन क्षेत्रों से किसी समय तीर्थयात्रा के प्रमुख मार्ग गुजरते थे।
 
== विवाद ==
[[चित्र:Maitreya Buddha the next Buddha.jpg|thumb|150px|right|थिकसे मठ लद्दाख में बुद्ध प्रतिमा का चेहरा]]
भारत की स्वतन्त्रता के समय [[महाराज हरि सिंह]] यहाँ के शासक थे, जो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। [[शेख़ अब्दुल्ला]] के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे (क्योंकि भारत धर्मनिर्पेक्ष है)। पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी)। इस लिये 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-41766767|title=कबायली हमलावर थे या मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आए थे?}}</ref>
 
उस समय प्रधानमन्त्री [[जवाहरलाल नेहरू]] ने [[मोहम्मद अली जिन्नाह]] से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था। महाराजा हरि सिंह ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। [[भारतीय सेना]] ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया। संयुक्तराष्ट्र महासभा ने उभय पक्ष के लिए दो करार (संकल्प) पारित किये :-
* पाकिस्तान तुरन्त अपनी सेना क़ाबिज़ हिस्से से खाली करे।
* शान्ति होने के बाद दोनों देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करें।
 
=== भारतीय पक्ष ===
* पाकिस्तान ने अपना अधिकृत कश्मीरी भूभाग खाली नहीं किया है, बल्कि कुटिलतापूर्वक वहाँ कबाइलियों को बसा दिया है।
* जम्मू और कश्मीर की लोकतान्त्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से 'महाराजा द्वारा कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय' को स्वीकृति दे दी और राज्य का ऐसा संविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर के भारत में स्थायी विलय को मान्यता दी गयी थी। (पाकिस्तान में लोकतंत्र का कितना सम्मान है, यह पूरा विश्व जानता है)
* भारतीय संविधान के अन्तर्गत आज तक जम्मू कश्मीर में सम्पन्न अनेक चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर एक प्रकार से भारत में अपने स्थायी विलय को ही मान्यता दी है।
*जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनैतिक दल भी पाकिस्तान के धर्माधारित दो-राष्ट्र सिद्धान्त को नहीं मानते।
* कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश "भारतीय स्वातन्त्र्य अधिनियम" के तहत क़ानूनी तौर पर सही था।
* पाकिस्तान अपनी भूमि पर आतंकवादी शिविर चला रहा है (ख़ास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है। ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक या तालिबानी अफ़ग़ान ही हैं। ये और कुछ दिग्भ्रमित कश्मीरी युवक मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ छेड़े हुए हैं।
* राज्य को संविधान के [[अनुच्छेद 370]] के तहत स्वायत्तता प्राप्त है।
* कश्मीर के भारत से अलग होने के बाद भारत की उत्तरी सीमा सुरक्षित नहीं रहेगी।
 
===भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति ===
भारत के संवैधानिक प्रावधान स्वतः जम्मू तथा कश्मीर पर लागू नहीं होते। केवल वही प्रावधान जिनमें स्पष्ट रूप से कहा जाए कि वे जम्मू कश्मीर पर लागू होंगे, उस पर लागू होते हैं। जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति का ज्ञान इन तथ्यों से होता है-
 
1. जम्मू कश्मीर संविधान सभा द्वारा निर्मित राज्य संविधान से वहाँ का कार्य चलता है। यह संविधान जम्मू कश्मीर के लोगों को राज्य की नागरिकता भी देता है। केवल इस राज्य के नागरिक ही संपत्ति खरीद सकते हैं या चुनाव लड़ सकते हैं या सरकारी सेवा ले सकते हैं।
 
2. भारतीय संसद जम्मू कश्मीर से संबंध रखने वाला ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती है जो इसकी राज्य सूची का विषय हो।
 
3. अवशेष शक्ति जम्मू कश्मीर विधान सभा के पास होती है।
 
4. इस राज्य पर सशस्त्र विद्रोह की दशा में या वित्तीय संकट की दशा में आपात काल लागू नहीं होता है।
 
5. भारतीय संसद राज्य का नाम क्षेत्र सीमा बिना राज्य विधायिका की स्वीकृति के नहीं बदलेगी।
 
6. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति राज्य मुख्यमंत्री की सलाह के बाद करेंगे।
 
7. संसद द्वारा पारित निवारक निरोध नियम राज्य पर अपने आप लागू नहीं होगा।
 
8. राज्य की पृथक [[दंड संहिता]] तथा [[दंड प्रक्रिया संहिता]] है।
 
 
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== विवाद ==
[[चित्र:Maitreya Buddha the next Buddha.jpg|thumb|150px|right|थिकसे मठ लद्दाख में बुद्ध प्रतिमा का चेहरा]]
भारत की स्वतन्त्रता के समय [[महाराज हरि सिंह]] यहाँ के शासक थे, जो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। [[शेख़ अब्दुल्ला]] के नेतृत्व में मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस (बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस) कश्मीर की मुख्य राजनैतिक पार्टी थी। कश्मीरी पंडित, शेख़ अब्दुल्ला और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थे (क्योंकि भारत धर्मनिर्पेक्ष है)। पर पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत प्रान्त भारत में रहे (इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी)। इस लिये 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा हथिया लिया।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-41766767|title=कबायली हमलावर थे या मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आए थे?}}</ref>
 
उस समय प्रधानमन्त्री [[जवाहरलाल नेहरू]] ने [[मोहम्मद अली जिन्नाह]] से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श की, जिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था। महाराजा हरि सिंह ने शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय कर दिया। [[भारतीय सेना]] ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया था, तब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया। संयुक्तराष्ट्र महासभा ने उभय पक्ष के लिए दो करार (संकल्प) पारित किये :-
* पाकिस्तान तुरन्त अपनी सेना क़ाबिज़ हिस्से से खाली करे।
* शान्ति होने के बाद दोनों देश कश्मीर के भविष्य का निर्धारण वहाँ की जनता की चाहत के हिसाब से करें।
 
=== भारतीय पक्ष ===
* पाकिस्तान ने अपना अधिकृत कश्मीरी भूभाग खाली नहीं किया है, बल्कि कुटिलतापूर्वक वहाँ कबाइलियों को बसा दिया है।
* जम्मू और कश्मीर की लोकतान्त्रिक और निर्वाचित संविधान-सभा ने 1957 में एकमत से 'महाराजा द्वारा कश्मीर के भारत में विलय के निर्णय' को स्वीकृति दे दी और राज्य का ऐसा संविधान स्वीकार किया जिसमें कश्मीर के भारत में स्थायी विलय को मान्यता दी गयी थी। (पाकिस्तान में लोकतंत्र का कितना सम्मान है, यह पूरा विश्व जानता है)
* भारतीय संविधान के अन्तर्गत आज तक जम्मू कश्मीर में सम्पन्न अनेक चुनावों में कश्मीरी जनता ने वोट डालकर एक प्रकार से भारत में अपने स्थायी विलय को ही मान्यता दी है।
*जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनैतिक दल भी पाकिस्तान के धर्माधारित दो-राष्ट्र सिद्धान्त को नहीं मानते।
* कश्मीर का भारत में विलय ब्रिटिश "भारतीय स्वातन्त्र्य अधिनियम" के तहत क़ानूनी तौर पर सही था।
* पाकिस्तान अपनी भूमि पर आतंकवादी शिविर चला रहा है (ख़ास तौर पर 1989 से) और कश्मीरी युवकों को भारत के ख़िलाफ़ भड़का रहा है। ज़्यादातर आतंकवादी स्वयं पाकिस्तानी नागरिक या तालिबानी अफ़ग़ान ही हैं। ये और कुछ दिग्भ्रमित कश्मीरी युवक मिलकर इस्लाम के नाम पर भारत के ख़िलाफ़ छेड़े हुए हैं।
* राज्य को संविधान के [[अनुच्छेद 370]] के तहत स्वायत्तता प्राप्त है।
* कश्मीर के भारत से अलग होने के बाद भारत की उत्तरी सीमा सुरक्षित नहीं रहेगी।
 
===भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति ===
भारत के संवैधानिक प्रावधान स्वतः जम्मू तथा कश्मीर पर लागू नहीं होते। केवल वही प्रावधान जिनमें स्पष्ट रूप से कहा जाए कि वे जम्मू कश्मीर पर लागू होंगे, उस पर लागू होते हैं। जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति का ज्ञान इन तथ्यों से होता है-
 
1. जम्मू कश्मीर संविधान सभा द्वारा निर्मित राज्य संविधान से वहाँ का कार्य चलता है। यह संविधान जम्मू कश्मीर के लोगों को राज्य की नागरिकता भी देता है। केवल इस राज्य के नागरिक ही संपत्ति खरीद सकते हैं या चुनाव लड़ सकते हैं या सरकारी सेवा ले सकते हैं।
 
2. भारतीय संसद जम्मू कश्मीर से संबंध रखने वाला ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती है जो इसकी राज्य सूची का विषय हो।
 
3. अवशेष शक्ति जम्मू कश्मीर विधान सभा के पास होती है।
 
4. इस राज्य पर सशस्त्र विद्रोह की दशा में या वित्तीय संकट की दशा में आपात काल लागू नहीं होता है।
 
5. भारतीय संसद राज्य का नाम क्षेत्र सीमा बिना राज्य विधायिका की स्वीकृति के नहीं बदलेगी।
 
6. राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति राज्य मुख्यमंत्री की सलाह के बाद करेंगे।
 
7. संसद द्वारा पारित निवारक निरोध नियम राज्य पर अपने आप लागू नहीं होगा।
 
8. राज्य की पृथक [[दंड संहिता]] तथा [[दंड प्रक्रिया संहिता]] है।
 
== इन्हें भी देखें ==