"उपसर्ग": अवतरणों में अंतर
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[[संस्कृत]] एवं संस्कृत से उत्पन्न भाषाओं में उस अव्यय या शब्द को '''उपसर्ग''' (prefix) कहते हैं जो कुछ शब्दों के आरंभ में लगकर उनके अर्थों का विस्तार करता अथवा उनमें कोई विशेषता उत्पन्न करता है। उपसर्ग = उपसृज् (त्याग) + घं। जैसे - अ, अनु, अप, वि, आदि उपसर्ग है।
== उपसर्ग और उनके अर्थबोध ==
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* '''किसी प्रकार का उत्पात, उपद्रव या विघ्न'''
योगियों की योगसाधना के बीच होनेवाले विघ्न को उपसर्ग कहते हैं। ये पाँच प्रकार के बताए गए हैं : (1) प्रतिभ, (2) श्रावण, (3) दैव, (4)। मुनियों पर होनेवाले उक्त उपसर्गों के विस्तृत विवरण मिलते हैं। [[जैन धर्म|जैन]] साहित्य में विशेष रूप से इनका उल्लेख रहता है क्योंकि जैन धर्म के अनुसार साधना करते समय उपसर्गो का होना अनिवार्य है और केवल वे ही व्यक्ति अपनी साधना में सफल हो सकते हैं जो उक्त सभी उपसर्गों को अविचलित रहकर झेल लें। [[हिंदू]] धर्मकथाओं में भी साधना करनेवाले व्यक्तियों को अनेक विघ्नबाधाओं का सामना करना पड़ता है
== इन्हें भी देखें ==
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