"बहादुर शाह ज़फ़र": अवतरणों में अंतर

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लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में,
किस की बनी है आलम-ए-नापायदार में।
 
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बुलबुल को बागबां से न सैयाद से गिला,
किस्मत में कैद लिखी थी फसल-ए-बहार में।
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देशप्रेम के साथ-साथ जफर के व्यक्तित्व का एक अन्य पहलू शायरी थी। उन्होंने न केवल गालिब, दाग, मोमिन और जौक जैसे उर्दू के बड़े शायरों को तमाम तरह से प्रोत्साहन दिया, बल्कि वह स्वयं एक अच्छे शायर थे। साहित्यिक समीक्षकों के अनुसार जफर के समय में जहां मुगलकालीन सत्ता चरमरा रही थी वहीं उर्दू साहित्य खासकर उर्दू शायरी अपनी बुलंदियों पर थी। जफर की मौत के बाद उनकी शायरी "कुल्लियात ए जफर" के नाम से संकलित की गयी।
 
== मुग़ल सम्राटों का कालक्रम ==
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