"हबीब तनवीर": अवतरणों में अंतर
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हबीब तनवीर(1 सितंबर, 1923) देश के सबसे मशहूर पटकथा लेखकों, नाट्य निर्देशकों, कवियों और अभिनेताओं में से एक
==पुरस्कार और सम्मानः
हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969),पद्मश्री अवार्ड(1983)संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप(1996), पद्म विभूषण(2002) जैसे सम्मान मिले. वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे.उनका नाटक चरणदास चोर को एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल(1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया.
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1 जीवनवृत
1 आरंभिक जीवन
1 करियर
1 यूरोप प्रवास
1 भारत आगमन
2 नाटक
3 फिल्मों में योगदान
[edit] जीवनवृत
हबीब तनवीर का जन्म 1 सितम्बर,1932 को रायपुर में हुआ था. जो अब छत्तीसगढ़ की राजधानी है.उनके बचपन का नाम हबीब अहमद खान तनवीर था. उन्होंने लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रीक पास की.म़ॉरीस कॉलेज ,नागपुर से स्नातक किया(1944)और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की. बचपन से हीं कविता लिखने का शौक चढ़ा. पहले तनवीर के छद्मनाम नाम से लिखना शुरू किया जो बाद में उनका पुकार नाम बन गया.
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सन् 1945 में वे मुम्बई चले गये और प्रोड्यूसर के तौर पर आकाशवाणी में नौकरी शुरू की.वहां रहते हुए उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए गाने लिखा.कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया. प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गये और कलांतर में इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन के अंग बन गये.जब ब्रिटीश शासन के खिलाफ इप्टा से जुड़े कई लोग जेल चले गये तब हबीब तनवीर को संगठन की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी. 1954 वे दिल्ली आ गये और हिन्दुस्तानी थियेटर से जुड़ गये. उन्होंने बाल थियेटर के लिए भी काम किया. कई नाटकों की रचना की.यहीं रहते हुए उनकी मुलाकात अभिनेता-निर्देशक मोनिका मिश्रा से हुई जिनसे उन्होंने आगे चलकर शादी कर ली.उसी साल उन्होंने अपना चर्चित नाटक आगरा बाजार लिखा.
In 1954, he moved to New Delhi, and worked with Qudsia Zaidi’s Hindustani Theatre, and also worked with Children's theatre, and authored numerous plays. It was during this period he met actor-director, Moneeka Mishra, whom he was to later marry. Later in the same year, he produced his first significant play 'Agra Bazar', based on the works and times of the plebian 18th-century Urdu poet, Nazir Akbarabadi, an older poet in the generation of Mirza Ghalib. In this play he used local residents and folk artist from Okhla village in Delhi and students of Jamia Millia Islamia creating a palette never seen before in Indian theatre, a play not staged in a confined space, rather a bazaar, a marketplace. This experience with non-trained actors, and folk artists later blossomed with his work with folk artists of Chhattisgarh.
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