"वर्साय की सन्धि": अवतरणों में अंतर

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विश्व इतिहास में हुई अनेक संधियों में वर्साय की संधि सर्वाधिक वर्णित और विवादित रही है। वस्तुतः इस संधि ने विश्व इतिहास की धारा को गहरे रूप से प्रभावित किया। इन संधि की तीव्र आलोचना की जाती है और इस द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज के रूप में समझा जाता है। निम्न बिंदुओं के तहत इस संधि की आलोचना को देखा जा सकता है-
 
1. '''आरोपित संधि''' : वार्साय की संधि को “एक लादी गई शांति” की संज्ञा अर्थात् “आरोपित संधि” के नाम से जाना जाता है। संधि को तैयार करते समय सम्मेलन में जर्मनी को स्थान नहीं दिया गया। यह मित्र राष्ट्रों का आदेश था जिसे स्वीकार करने के अतिरिक्त जर्मनी के समक्ष कोई दूसरा उपाय नहीं था। फलतः जर्मन जनताप्रतिनिधियों के द्वारा सिकायत करने पर भी उन्हें धमकी दी गयी की यदि वे (जर्मनी) पांच दिन के अंदर संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये तो उनके खिलाफ पुनः आक्रमण कर दिया जायेगा। अतः जर्मनी के मन में यह बात बैठ गई कि यह आरोपित संधि है जिसे मानने के लिए वह बाध्य नहीं है। यही वजह है कि जर्मनी ने आगे चलकर संधि प्रावधानों को ठुकरा दिया।
 
2. '''जनसाधारण की शांति नहीं, राजनयिकों की शान्ति''' : वर्साय की संधि में उल्लेखित प्रावधान जनसाधारण के हित और आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सके। इसमें कई ऐसी प्रादेशिक व्यवस्थाएँ थी जिसमें संशोधन की जरूरत थी। क्षतिपूर्ति में कई ऐसे प्रावधान किए गए थे जो यूरोप के औद्योगिक पुनर्जीवन को विनाशकारी आघात पहुचाए बिना वसूल नहीं किए जा सकते थे। इस तरह जनसाधारण की शांति का यह संधि पूरा नहीं करती।
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5. '''प्रतिशोधात्मक संधि''' : विजेता राष्ट्रों ने प्रतिशोधात्मक रवैया अपनाकर कठोर शर्तों को जर्मनी पर लादा। फ्रांस अपनी पुरानी पराजय और अमपान का बदला लेना चाह रहा था उस दृष्टि से संधि में जर्मनी के साथ अधिकतम कठोर प्रावधान किये गए।
 
6. '''अपमानजनक संधि :''' यह संधि जर्मनी के लिए राष्ट्रीय अपमान का कारण थी। [[कैसर विलियम]] की अपदस्ता, भारी क्षति पूर्ति राशी की वसूली। मित्र राज्यों का जर्मन तटों, करखोनो, नदियों अदि पर अधिकार और सेनाओं की जर्मनी में उपस्तिथि, जर्मनी का विभाजन,उपनिवेशों की मित्र देशों द्वारा लूट तथा भेदभावपूर्ण , असमान,अन्यायपूर्ण शर्तें अदि सभी अपमानजनक तो थे ही। संधि पत्रों पर हस्ताक्षर के लिए आने वाले जर्मन प्रतिनिधियों के साथ क्लेमेंशो का अभद्र व्यव्हार, उन्हें कैदियों के सामान रखना, जनता द्वारा गालियाँ, सड़े हुए फल, ईंटे,पत्थर को उन पर फेकना अदि प्रतिनिधियों का अपमान नहीं बल्कि जर्मनी का अपमान था।
 
6. '''विश्वासघाती संधि''' : वार्साय की संधि नैतिक दृष्टि से अनुचित व जर्मनी के साथ विश्वासघात मानी गई। जर्मनी ने विल्सन के 14 सूत्रों के आधार पर युद्ध कर संधि करना स्वीकार किया था लेकिन वार्साय की संधि में विल्सन के इन सूत्रों का खुलेआम उल्लंघन हुआ था। जर्मनी के साथ राष्ट्रीयता के सिद्धांत का पालन नहीं हुआ था। उस पर बहुत सी शर्ते लाद दी गई थी। लेकिन विजेताओं को उससे मुक्त रखा गया है। विल्सन के तीसरे सूत्र के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्त रूकावटे दूर करने का प्रयत्न करना था, किन्तु जर्मनी की सामूहिक स्व्तंत्रता सुरक्षित नहीं थी। उसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वर्षों तक मित्रराष्ट्रों के नियंत्रण में रहा। 14 सूत्रों में सभी राष्ट्रों के शस्त्रों के कमी करने का सुझाव दिया गया था, किन्तु मित्र राष्ट्रों ने अपने शस्त्रों में कमी किए बिना जर्मनी की सैनिक शक्ति को अत्यंत सीमित कर दिया। मित्र राष्ट्रों ने विल्सन के 14 सूत्रों का पालन उसी सीमा तक किया जहाँ तक उन्हें लाभ था। इस तरह वार्साय की संधि में जर्मनी के साथ विश्वासघात किया गया। इस विश्वासघात का बदला लेने के लिए आगे जर्मनी ने युद्ध किया।
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10. '''आत्मनिर्णय के सिद्धांत की अवहेलना''' : इटली की सीमाएं राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर निर्धारित नहीं की गई, न ही पोलैण्ड की भूमि पर सभी नागरिक निर्विवादित रूप से पोल थे। इसी प्रकार तुर्की के साम्राज्य के भागों को सुरक्षित संप्रभुता का वचन नहीं दिया गया। राष्ट्रसंघ विशाल व लघु राज्यों के समान राजनीतिक संप्रभुता दिलाने में असमर्थ रहा। इस संधि के नैतिक पक्ष व युक्ति संगतता के विषय में ए.जे.पी. टेलर का कथन है कि “प्रारंभ से ही वार्साय की संधि में नैतिक मान्यता का अभाव था। जर्मनी के विषय में आत्म निर्णय के सिद्धांत की अवहेलना की गई। राष्ट्रपति विल्सन के आत्मनिर्णय के सिद्धांत के अनुसार यूरोप के अनेक राष्ट्रों का पुनर्गठन किया गया था। इससे अनुसार एक ही राष्ट्र जाति, एक ही भाषा एवं सांस्कृतिक परंपरा वाले लोगों को मिलाकर उनका पृथक तंत्र बनाने का निश्चय किया गया। इसी आधार पर चेकोस्लोवाकिया, पोलैण्ड, यूगोस्लाविया के स्वतंत्र राज्यों का जन्म हुआ। किन्तु इस सिद्धांत का जर्मनी, ऑस्ट्रिया और हंगरी के संबंध में पालन नहीं किया गया। जर्मनी के हजारों नागरिकों को जर्मन साम्राज्य से पृथक करके अन्य राज्यों के अधीन कर दिया गया।” 1918 ई. में जब ऑस्ट्रिया के जर्मनों ने जर्मन-ऑस्ट्रिया गणतंत्र की स्थापना की और जर्मन के गणतंत्र के साथ सम्मिलित होने व लैंड को मिलाने की इच्छा व्यक्त की तब मित्र राज्यों द्वारा सितम्बर 1919 ई. में दोनों राज्यों के सम्मिलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस प्रकार मित्र राष्ट्रों द्वारा स्वयं द्वारा स्वीकृत सिद्धांत को जर्मनी के विषय में क्रियान्वित न कर जर्मन नागरिकों को निराश किया गया। बटलरने अनुसार “आत्मनिर्णय के सिद्धांत का युक्तियुक्त प्रयोग न करना पेरिस की व्यवस्था में अंतर्निहित कमजोरी का द्योतक था।”
 
== वर्साय की संधि एवं द्वितीय विश्वयुद्ध/ ==
विश्व इतिहास के जिन एक संधियों और उसके प्रभावों की सर्वाधिक चर्चा हुई है, उनमें वर्साय की संधि का विशिष्ट स्थान है। उस संधि के कठोर प्रावधानों और उसके स्वरूप के संदर्भ में आलोचकों ने इसे द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण के रूप में परिभाषित किया है। उनके अनुसार वार्साय की संधि शांति की व्यवस्था न होकर असंतोष की जनक थी। संधि के ठीक 20 वर्ष 2 महीने 4 दिन पश्चात् यह संसार द्वितीय विश्वयुद्ध के चपेट में आ गया।