"सामवेद संहिता": अवतरणों में अंतर

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'''सामवेद''' भारत के प्राचीनतम ग्रंथ [[वेद|वेदों]] में से एक है, गीत-संगीत प्रधान है। प्राचीन आर्यों द्वारा साम-गान किया जाता था। सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और इसके १८७५ मन्त्रों में से ६९ को छोड़ कर सभी [[ऋगवेद]] के हैं। केवल १७ मन्त्र [[अथर्ववेद]] और [[यजुर्वेद]] के पाये जाते हैं। फ़िर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है, जिसका एक कारण [[गीता]] में [[कृष्ण]] द्वारा ''वेदानां सामवेदोऽस्मि'' कहना भी है।
 
सामवेद यद्यपि छोटा है परन्तु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है। सामवेद संहिता में जो १८७५ मन्त्र हैं, उनमें से १५०४ मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। सामवेद संहिता के दो भाग हैं, आर्चिक और गान। पुराणों में जो विवरण मिलता है उससे सामवेद की एक सहस्त्र शाखाओं के होने की जानकारी मिलती है। वर्तमान में प्रपंच ह्रदय, दिव्यावदान, चरणव्युह तथा जैमिनि गृहसूत्र को देखने पर १३ शाखाओं का पता चलता है। इन तेरह में से तीन आचार्यों की शाखाएँ मिलती हैं- (१) कौमुथीय, (२) राणायनीय और (३) जैमिनीय।