"दयानन्द सरस्वती": अवतरणों में अंतर

छो the sentence was not at all related to the context
No edit summary
पंक्ति 40:
=== ज्ञान प्राप्ति के पश्चात ===
[[चित्र:Dayanand Swami.jpg|thumb|245x245px|स्वामी दयानन्द सरस्वती।]]
महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने [[हरिद्वार]] में [[कुम्भ मेला|कुंभ]] के अवसर पर 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' फहराई। उन्होंने अनेक [[शास्त्रार्थ]] किए। वे [[कलकत्ता]] में बाबू [[केशवचन्द्र सेन]] तथा [[देवेन्द्र नाथ ठाकुर]] के संपर्क में आए। यहीं से उन्होंने पूरे वस्त्र पहनना तथा [[आर्यभाषा (हिन्दी)]] में बोलना व लिखना प्रारंभ किया। यहीं उन्होंने तत्कालीन वाइसराय को कहा था, मैं चाहता हूं विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है। परंतु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक-पृथक शिक्षा, अलग-अलग व्यवहार का छूटना अति दुष्कर है। बिना इसके छूटे परस्पर का व्यवहार पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है।
 
== आर्य समाज की स्थापना ==