"मार्टिन लुथर": अवतरणों में अंतर
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लूथर शीघ्र ही अपने व्याख्यानों में निजी आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर बाइबिल की व्याख्या करने लगे। उस समय उनके अंत:करण में गहरी अशांति व्याप्त थी। ईश्वर द्वारा ठहराए हुए नियमों को सहज रूप से पूरा करने में अपने को असमर्थ पाकर वह सिखलाने लगे कि आदिपाप के कारण मनुष्य का स्वभाव पूर्ण रूप से विकृत हो गया था (दे. आदिपाप)। चर्च की परंपरागत शिक्षा यह थी कि बपतिस्मा (ईसाई दीक्षास्नान) द्वारा मनुष्य आदिपाप से मुक्त हो जाता है किंतु लूथर की धारणा थी कि बपतिस्मा संस्कार के बाद भी मनुष्य पापी ही रह जाता है और धार्मिक कार्यों द्वारा कोई भी पुण्य नहीं अर्जित कर सता अत: उसे ईसा पर भरोसा रखना चाहिए। ईसा के प्रति भरोसापूर्ण आत्मसमर्पण के फलस्वरूप पापी मनुष्य, पापी रहते हुए भी, ईश्वर का कृपापात्र बनता है। ये विचार चर्च की शिक्षा के अनुकूल नहीं थे किंतु सन् 1517 ई तक लूथर ने खुलमखुल्ला चर्च के प्रति विद्रोह किया।
सन् 1517 की घटनाओं को समझने के लिए "दंडमोचन" विषयक धर्मसिद्धांत समझना आवश्यक है। चर्च की तत्संबंधी परंपरागत शिक्षा इस प्रकार है - सच्चे पापस्वीकार द्वारा पाप का अपराध क्षमा किया जाता है। किंतु पाप के सभी परिणाम नष्ट नहीं होते। उसके परिणाम दूर करने के लिए मनुष्य को तपस्या करना अथवा दंड भोगना पड़ता हे। पाप के उन परिणामों को दूर करने के लिए चर्च पापी की सहायता कर सकता है। वह उसके लिए प्रार्थना कर सकता है और ईसा और अपने पुण्य फलों के भंडार में से कुछ अंश पापी को प्रदान कर सकता है। चर्च की उस सहायता को इंडलजंस (Indulgence) अथवा दंडमोचन कहते हैं। पापी कोई "दंडमोचन" तभी मिल सकता है जब वह पाप स्वीकार करने के बाद पाप के अपराध से मुक्त हो चुका हो तथा उस दंडमोचन के लिए चर्च द्वारा ठहराया हुआ पुण्य का कार्य (प्रार्थना, दान, तीर्थयात्रा आदि) पूरा करे। सन् 1517 ई. में
रोम की ओर से लूथर से अनुरोध हुआ कि वह दंडमोचन के विषय में अपनी शिक्षा वापस ले किंतु लूथर ने ऐसा करने से इनकार किया और तीन नई रचनाओं में अपनी धारणाओं को स्पष्ट कर दिया। उन्होंने रोम के अधिकार का तथा पुरोहितों के अविवाहित रहने की प्रथा का विरोध किया, बाइबिल को छोड़कर ईसाई धर्म ने कोई और आधार नहीं माना तथा केवल तीन संस्कारों का अर्थात् बपतिस्मा, पापस्वीकार तथा यूखारिस्ट को स्वीकार किया। उत्तर में रोम ने सन् 1520 ई. में काथलिक चर्च से लूथर के बहिष्कार की घोषणा की। उस समय से लूथर अपने नए संप्रदाय का नेतृत्व करने लगे। सन् 1524 ई. में उन्होंने कैथरिन बोरा से विवाह किया। उनका आंदोलन जर्मन राष्ट्रीयता की भावना से मुक्त नहीं था और उन्हें अधिकांश जर्मन शासकों का समर्थन प्राप्त हुआ। संभवत: इस कारण से उन्होंने अपने संप्रदाय का संगठन जरूरत से अधिक शासकों पर छोड़ दिया। जब काथलिक सम्राट् चाल्र्स पंचम ने लूथरन शासकों से निवेदन किया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों के काथलिक ईसाइयों को सार्वजनिक पूजा करने की अनुमति दें तब लूथरन शासकों न उस प्रस्ताव के विरोध में सम्राट् के पास एक तीव्र प्रतिवाद (प्रोटेस्ट) भेज दिया और सम्राट् को झुकना पड़ा। इस प्रतिवाद के कारण उस नए धर्म का नाम प्रोटेस्टैट रखा गया था।
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