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[[चित्र:India statue of nataraja.jpg|thumb|right|200px|चोल वंश कालीन नटराज शिव शंकर की मूर्ति]]
‘शिवपुराण’ एक प्रमुख तथा सुप्रसिद्ध पुराण है, जिसमें परात्मपर परब्रह्म परमेश्वर के ‘शिव’ (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा एवं उपासना का सुविस्तृत वर्णन है। भगवान शिवमात्र पौराणिक देवता ही नहीं, अपितु वे पंचदेवों में प्रधान, अनादि सिद्ध परमेश्वर हैं एवं निगमागम आदि सभी शास्त्रों में महिमामण्डित महादेव हैं। वेदों ने इस परमतत्त्व को अव्यक्त, अजन्मा, सबका कारण, विश्वपंच का स्रष्टा, पालक एवं संहारक कहकर उनका गुणगान किया है। श्रुतियों ने सदा शिव को स्वयम्भू, शान्त, प्रपंचातीत, परात्पर, परमतत्त्व, ईश्वरों के भी परम महेश्वर कहकर स्तुति की है। ‘शिव’ का अर्थ ही है- ‘कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’। परमब्रह्म के इस कल्याण रूप की उपासना उच्च कोटि के सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों एवं सर्वसाधारण आस्तिक जनों-सभी के लिये परम मंगलमय, परम कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक और सर्वश्रेयस्कर है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व ही नहीं, अपितु ब्रह्मा-विष्णु तक इन महादेव की उपासना करते हैं। इस पुराण के अनुसार यह पुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतल पर भगवान शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधनरूप है। इससे शिव भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थिति में पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है। इसलिये सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यों ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है- अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवंछित फलों के देनेवाला है। भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस जीवन में बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का उपभोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है। यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है। सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है।
 
== संक्षिप्त शिव पुराण ==
 
==== भाग 1 ====
'''प्रथम अध्याय - शौनकजी के साधन विषयक प्रश्न पूछने पर सूतजी का उन्हें शिव पुराण'''
 
'''की उत्कृष्ट महिमा सुनना'''
 
श्रीशौनकजी ने पूछा - महाज्ञानी सूतजी ! आप सम्पूर्ण सिद्धांतो के ज्ञाता
 
है | प्रभो ! मुझसे पुराणो के कथाओ के सारतत्व. विशेष रूप से वर्णन कीजिये | ज्ञान
 
और वैराग्य सहित भक्ति से प्राप्त होनेवाले विवेक की वृद्धि कैसे होती है ?तथा साधुपुरुष
 
किस प्रकार अपने काम क्रोध आदि मानसिक विकारो का निवारण करते है ? इस घोर
 
कलिकाल में जीव प्रायः आसुर स्वभाव के हो गए है | उस जीव समुदाय को शुद्ध (
 
दैवीसंपति से युक्त ) बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? आप इस समय मुझे ऐसा
 
कोई शास्वत साधन बताइये , जो कल्याणकारी वस्तुओ में सबसे उत्कृष्ट एवं परम
 
मंगलकारी हो तथा पवित्र करने वाले उपयो में भी सबसे उत्तम पवित्रकारी उपाय हो |
 
तात ! वह साधन ऐसा हो , जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तः कारन की विशेष शुद्धि
 
हो जाये तथा उसमे निर्मल चित्तवाले पुरुषो को सदा के लिए शिव की प्राप्ति हो जाये |
 
अब सूतजी कहते है -- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! तुम धन्य हो ; क्योंकि तुम्हारे
 
ह्रदय में पुराण कथा सुनने का विशेष प्रेम एवं लालसा है | इसलिए मै शुद्ध बुद्धि से
 
विचारकर तुमसे परम उत्तम शाश्त्र का वर्णन करता हु | वत्स ! यह सम्पूर्ण शास्त्रो के
 
सिद्धांत से संपन्न , भक्ति आदि को बढ़ाने वाला , तथा शिव को संतुष्ट करने वाला है |
 
कानो के लिए रसायन अमृत स्वरूप तथा दिव्य है , तुम उसे श्रवण करो | मुने ! वह
 
परम उत्तम शास्त्र है -- शिव पुराण , जिसका पूर्वकाल मे भगवान शिव ने ही प्रवचन
 
किया था | यह काल रूपी सर्प से प्राप्त होने वाले महान त्रास का विनाश करने वाला
 
उत्तम साधन है | गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर बड़े आदर से इस
 
पुराण का संक्षेप में ही प्रतिपादन किया है | इस पुराण के प्रणय का
 
उदेश्य है --कलयुग में उत्पन होने वाले मनुष्यो के परम हित का साधन |
 
यह शिव पुराण बहुत ही उतम शास्त्र है। इसे इस भुतल पर शिव का वाक्मय स्वरुप
 
समक्षना चाहीये और सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये । इसका पठन और
 
श्रवण सर्वसाधारणरुप है । इससे शिव भक्ति पाकर श्रेष्ठम स्थितियों में पहुंचा हुआ
 
मनुष्य शीघ्र ही शिव पद को प्राप्त कर लेता है | इसलिए सम्पूर्ण यत्न करके मनुष्यो ने
 
इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है - अथवा इसके अध्ययन को अभीष्ट साधन माना
 
है | इसी तरह इसका प्रेम पूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवांछित फलों को देने वाला है |
 
भगवान शिव के इस पुराण को सुनने से मनुष्य सब पापो से मुक्त हो जाता है तथा इस
 
जीवन में बड़े बड़े उत्कृष्ट भोगो का उपभोग करके अंत में शिव लोक को प्राप्त होता है
 
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यह शिव पुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोको से युक्त है | इसकी
 
सात सहिताये है | मनुष्य को चाहिए की वो भक्ति ज्ञान वैराग्य से संपन्न हो बारे
 
आदर से इसका श्रवण करे | सात संहिताओं से युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रम्हा
 
परमात्मा के समान विराजमान है और सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है | जो
 
निरंतर अनुसन्धान पूर्वक शिव पुराण को बोलता है या नित्य प्रेमपूर्वक इसका पाठ मात्र
 
करता है वह पुण्यात्मा है -- इसमें संशय नहीं है | जो उत्तम बुद्धि वाला पुरुष अंतकाल
 
में भक्तिपूर्वक इस पुराण को सुनता है , उसपर अत्यंत प्रसन्न हुए भगवन महेश्वर उसे
 
अपना पद ( धाम ) प्रदान करते है | जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिव पुराण की पूजा
 
करता है वह इस संसार मे संपुर्ण भोगो को भोगकर अन्त मे भगवान शिव के पद को
 
प्राप्त कर लेता है ।जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदि के वेष्टन से इस
 
शिव पुराण का सत्कार करता है , वह सदा सुखी रहता है । यह शिव पुराण निर्मल तथा
 
भगवान का सर्वस्व है ; जो इहलोक और परलोक मे भी सुख चाहता हो , उसे आदर के
 
साथ प्रयत्नपुर्वक इसका सेवन करना चाहिये । यह निर्मल एवं उतम शिव पुराण धर्म ,
 
अर्थ , काम और मोक्ष रुपी चार पुरुशार्थो को देने वाला है । अतः सदा इसका प्रेमपुर्वक
 
श्रवन एवं इसका विशेष पाठ करना चाहिये ।
 
== सन्दर्भ ==