"गुरु नानक": अवतरणों में अंतर

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== दर्शन ==
[[File:Guru Nanak Dev Ji at Mecca.jpg|thumb|मक्का में गुरु नानक देव जी]]
नानक सर्वेश्वरवादी थे। [[मूर्तिपूजा]] करने वालो को उन्होंनेगालिया निरर्थकभी माना।दिया रूढ़ियोंकरते औरथे उन्होंने हिंदूओ कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे। ईश्वर का साक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन् आंतरिक साधना से संभव है। उनके दर्शन में वैराग्यसूफीयो तोजैसी हैथी ही साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नज़र डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।
 
इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये हैं। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था। लोगों ने तत्कालीन [[इब्राहीम लोदी]] से इनकी शिकायत की और ये बहुत दिनों तक कैद रहे। और खाना तक नही दिया गया अंत में पानीपत की लड़ाई में जब इब्राहीम हारा और [[बाबर]] के हाथ में राज्य गया तब इनका छुटकारा हुआ।