"लेंज का नियम": अवतरणों में अंतर

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: "प्रेरित धारा की दिशा सदा ऐसी होती है जो उस कारण का विरोध करती है जिससे वह स्वयं उत्पन्न होती है।"
 
इस नियम का प्रतिपादन सन् 1833 में [[हिनरिक लेंज]] (Heinrich Lenz) ने किया था। उदहारण के लिए यदि हम एक चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को किसी कुण्डली के समीप लाये तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि कुण्डली का वह सीरा जो चुम्बक के ओर है उत्तरी ध्रुव बन जाता है अर्थात इधर से देखने पर धारा वामावर्त प्रवाहित होती है । उत्तरी ध्रुव बन जाने से यह सीरा आने वाले चुम्बक के प्रतिकर्षण बल लगता है। यह प्रतिकर्षण बल बल ही चुम्बक की गति (पास आने) का विरोध करता है। अब यदि हम चुम्बक को कुंडली से दूर ले जाए तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा बदल जाती है तथा कुंडली का चुम्बक के पास वाला सीरा दक्षीणी ध्रुव बन जाता है जो चुम्बक को अपनी ओर आकर्षित करता है अतः चुम्बक की गति का पुनः विरोध होता है।
इस नियम का प्रतिपादन सन् 1833 में [[हिनरिक लेंज]] (Heinrich Lenz) ने किया था।
 
[[चित्र:Lenz law demonstration.png|center|550px|thumb|लेंज के नियम का प्रदर्शन]]